Saturday, 18 January 2020

कुण्डलियाँ छंद ...मेरा, सबका


[18/01 6:03 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 18.01.2020 (शनिवार )* 
समीक्षक- वीणापाणि समूह

55-   मेरा
*********
मेरा ही सब कुछ रहे, ये है कुटिल विचार।
इसके कारण ही हुई, मानवता की हार।
मानवता की हार, दूर अपनों से होते।
लालच हुआ सवार, सभी अपनों को खोते।
"अटल" जान अनजान, एक दिन उठना डेरा।
सब कुछ देना छोड़, न जाना जो भी मेरा।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏

56-  सबका
**********
सबका सबको ही सदा, रहता कभी न ख्याल।
इसी बात का बन रहा, हर दिन नया बबाल।
हर दिन नया बबाल, टूटती हैं आशायें।
जिनसे जितनी चाह, वही तो हमें रुलायें।
"अटल" अपेक्षा छोड़, भरोसा कर बस रब का।
नेक सदा कर काम, साथ मिलता है सबका।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[18/01 6:05 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु -
दिनाँक - 18.01.2020 (शनिवार )

(55)
विषय - मेरा

तेरा  मेरा  कुछ  नहीं, आया  खाली  हाथ।
चार दिनों की जिंदगी, क्या जायेगा साथ।।
क्या जायेगा  साथ, यहाँ तू  नाम  कमाले।
जग में हो पहचान, निशानी आज बनाले।।
कहे विनायक राज, जीव का यही  बसेरा।
मानव तन पर गर्व, करो मत  तेरा  मेरा।।

(56)
विषय - सबका

सबका अपना काम है,करे सुअवसर पाय।
कभी निराशा हाथ है,कभी सफल हो जाय।।
कभी सफल हो जाय,लगन जब मन में जागे।
कदम सफलता चूम,देख फिर पीछे भागे।।
कहे विनायक राज, यही  मर्जी  है  रब का।
अपना-अपना भाग्य,सँवरते हैं तब सबका।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[18/01 6:08 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंधशालाप्रणाम। 
डॉ श्रीमती कमल वर्मा। दि.18-1-2020
 कुंडलिया शतक वीर के लिए रचना। 
 कुंडलिया क्रमांक59
 विषय_ मेरे
मेरे मात ममत्व में,मिला मुझे मनमीत। 
सत,स्निग्ध संवर्धनसे,गाया गोचर गीत।। 
 गाया गोचर गीत,रहा राहें रखवाला, 
 ममता मूरत मात,मुझे उसने ही ढाला। 
 कमल कहे कर जोड़,मात के गुण गाते रे। 
 कहाँ उऋण तू होय,कहा है मन ने मेरे । 

कुंडलिया क्र.60
 विषय_ सबका
 पाया अपनी उम्र में,तुमने जो भी लक्ष्य। 
 सबका ही कर भार है,इसमें सुन प्रत्यक्ष।। 
  इस में सुन प्रत्यक्ष,सभी ने साथ दिया है, 
 थोड़ा-थोड़ा भार, उठा कर बड़ा किया है। 
 कमल कहे कर जोड़,सभी ने हाथ बढ़ाया। 
 करतें उन्हें प्रणाम,ध्येय सबका ही पाया।।
कृपया समिक्षा करें
[18/01 6:15 PM] डॉ मीना कौशल: कलम की सुगन्ध छन्दशाला


मेरा

[18/01, 13:29] Dr Meena: मेरा जग में कुछ नहीं,हरि सब तेरे हाथ।
विपदा सारे टाल दो,रहो सदा तुम साथ।।
रहो सदा तुम साथ,माथ चरणों में तेरे।
हे करुणाकर आप,सखा साथी हो मेरे।।
विपद जाल ने आकरके,मुझको है घेरा।
हे करुणाकर साथ, निभाओ प्रभुवर मेरा।।

 : सबका

सबका मालिक एक है,राजा रंक फकीर।
दाता सबके साथ है,मन हो नहीं अधीर।।
मन हो नहीं अधीर,कन्हैया सबका स्वामी।
देखे सबके कर्म,विधाता अन्तर्यामी।।
करो कृपाकर करुणा सागर,मन्थन मनका।
हो सुखमय परिवार,धरा पर जीवन सबका।।
डा.मीना कौशल
[18/01 6:16 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे

कुंडलियाँ

51. मेरा

मेरा इस संसार मे, तेरे सिवा न और।
अपने चरणों मे प्रभो, दो सेवक को ठौर।।
दो सेवक को ठौर, दया इतनी प्रभु कर दो।
रिक्त हृदय में भक्ति, भावना मेरे भर दो।।
कह अंकित कविराय, सभी कुछ जग में तेरा।
प्रभुवर दयानिधान, नहीं है कुछ भी मेरा।।

52. सबका

सबका मालिक एक है, ईश्वर जगदाधार।
और समूची सृष्टि का, एक वही आधार।।
एक वही आधार, उसे मत भूलो प्यारे।
होकर उसके आप, उसी के रहो सहारे।।
कह अंकित कविराय, हृदय है कोमल रब का।
रखता है वो ध्यान, हमेशा अपना सबका।।

53. कुनबा

मिलकर कुनबा में सभी, जहाँ करें  उद्योग।
उनकी उन्नति का वहाँ, बनता सफल सुयोग।।
बनता सफल सुयोग, वही जग में सुख पाते।
बनकर के श्रम साध्य, कर्मपथ जो अपनाते।।
कह अंकित कविराय, रहें जो खुलकर खिलकर।
होती उनकी जीत, रहा करते जो मिलकर।।

54. पीहर

डोली पीहर से उठी, चली पिया के द्वार।
बाबुल का तब हो गया, सूना सा संसार।।
सूना सा संसार, गई है बिटिया रानी।
जैसे हो गई बन्द, प्यार की मधुर कहानी।।
कह अंकित कविराय, पिता की खाली झोली।
लेकर चले कहार, जहाँ बेटी की डोली।।

----- राम लखन शर्मा ग्वालियर
[18/01 6:16 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु 
कुंडलियाँ -55
दिनांक -18-1-20

विषय -मेरा 

मेरा मेरा क्यूँ करे, हे मूरख इंसान l
जाना खाली हाथ है,  मत हो तू हैरान l
मत हो तू हैरान, जगत  से सबको  जाना l 
 माया का ये जाल, लौट केफिर  कब  आना l
कहती सुनो सरोज,ध्यान उलझन में तेरा l
नश्वर है संसार, यहाँ सब तेरा मेरा l


कुंडलियाँ -56
दिनांक -18-1-20

विषय -सबका

मालिक सबका एक है, है वो पालन हार l
उसके छाया के तले, 
मिलता सबको प्यार l
मिलता सबको प्यार,
कष्ट प्राणी  का हरता l
करता है उद्धार, काल उससे है डरता l
कहती सुनो सरोज,
रहो बनकर तुम  सालिकl
बढ़ना लेकर नाम,
जगत का है वो मालिक l

सरोज दुबे 
रायपुर छत्तीसगढ़ 
🙏🙏🙏🙏
[18/01 6:17 PM] शिवकुमारी शिवहरे: Title: छाया

Date: 18 Jan 2020

Note:
छाया बनकर मै रहूँ,हरदम माँ के साथ।
माँ के संग सदा रहूँ, पकड़ूँ माँ का हाथ।
पकड़ूँ माँ का हाथ, हमेशा डरती रहती
न आये कोई पास,सदा मै माँ से कहती।
बेटी को समझाय,बनूँगी तेरा साया।
सदा रहूँगी साथ, सदा बनकर मै छाया।

शिवकुमारी शिवहरे


Title: धरती

Date: 18 Jan 2020

Note:
धरती
काले बदरा देख के,धरती रही मुस्काय। 
पहनूँगी मे हरि चूनरी, मै जाऊँ हरियाय।
मै जाऊँ हरियाय, बदरा  से व्याह रचूँगी।
मिलता है उपहार, बुँदियाँ के साथ नचूँगी
करी धरा श्रंगार,    भरेंगे नदियाँ नाले।
सजी है धरती आज, देख के बादल काले।

शिवकुमारी शिवहरे


Title: गलती

Date: 18 Jan 2020

Note:
गलती

गलती अपनी मान ते, जो करता स्वीकार।
वह जीवन मे कभी,कभी न पाता हार।
कभी न पाता हार,साफ निर्मल बन जाओ।
गलती सभी सुधार,गिला मन मे ना लाओ।
जिससे गलती होय ,सजा उसी को मिलती।
जो करता स्वीकार, मान ले अपनी गलती।  

शिवकुमारी शिवहरे


Title: तपती

Date: 18 Jan 2020

Note:
तपती

सूखे वृक्ष है सभी, जीवन हुआ हताश।
आज ताप से है जले, धरती और आकाश
धरती और आकाश,,सूरज से तपती धरती।
सूरज का ये ताप,सभी हरियाली हरती
पशु पक्षी कुम्लाय, न खाय पिये है  भूखे।
उड़ती धूल गुबार, भू वृक्ष रहे है सूखे।

शिवकुमारी शिवहरे।


Title: मेरा

Date: 18 Jan 2020

Note:
मेरा
मेरी हरि अरजी सुनो,सब जग सर्जनहार
तुम बिन कोई नही,स्वारथ का संसार।
स्वारथ का संसार, हे ईश्वर के अविनाशी
लीजे मोहे उबार,हे प्रभु विश्वनाथ काशी।
रखलो मेरी लाज,सदा  चरणों मे  तेरी
सुमर सदा हरि नाम, अरजी सुनो हरि मेरी

शिवकुमारी शिवहरे


Title: जीवन

Date: 17 Jan 2020

Note:
जीवन को रस से भरो,दो नूतन उपहार।
तन के इस बाग मे, मन मे छलकत प्यार।
मन मे छलकत प्यार,प्रेम की बगिया फूले।
रहे वसंत बहार,कोकिला मन मे झूले।
महके धर है द्वार, कहे आ जाये सावन।
भौरो का गुंजार, प्रेम से भरता जीवन।

शिवकुमारी  शिवहरे
[18/01 6:25 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध छंद शाला.....कलम शतकवीर 
हेतु
★★★★★★★★★★★☆★★★★★
              *विषय..........मेरा*
                विधा ..........कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★★
मेरा भारत देश है,अखिल विश्व की शान।
धरती माता का करें,सदा सकल सम्मान।
सदा सकल सम्मान,कामना सुखदा तेरी।
गाये हम गुणगान , भावना  शुभदा  मेरी।
कहता  है  श्रीवास, रहे   आनंद   बसेरा।
हो तिरंग अभिराम, देश  यह पावन मेरा।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
                *विषय..........सबका*
                  विधा...........कुण्डलियाँ  
                    ★★★★★★
दाता  सबका  ईश  है,जग के पालन हार।
सारी रचना आपकी,आप ही सृजन कार।
आप ही सृजन कार,बना सब नेकी काया।
पाता  सब  उपहार , लिया मानवता माया।
जोड़े कर श्रीवास ,सदा ही सदजन भाता।
बोलो प्रभु  हरि नाम,देव  ही  सबके दाता।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
                *विषय........कुमकुम*
                  विधा.........कुण्डलियाँ
                    ★★★★★★★
नारी शोभा तब बढ़े,कुमकुम लगती माथ।
लेती  सारी  कामना,सहचर  रहती  साथ।
सहचर  रहती  साथ,करें वह पालन वाणी।
रखती  सबकी  मान,नहीं करती मनमानी।
कहता  है  श्रीवास , सभी  पर रहती वारी।
माता  महिमा गान , तभी हो शोभित नारी।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
                 *विषय.........कंगन*
                   विधा..........कुण्डलियाँ
                    ★★★★★★★★
कंगन  पहने  गोपियाँ, चलती पनघट पास।
लटकन झूले बालियाँ, रखती मनहर आस।
रखती  मनहर  आस, सखी से राधा बोली।
आ जाओ फिर आज, साथ  में खेले होली।
कहता  है  श्रीवास ,  सदा हो माधव सपने।
करती  गोपी  रास ,  हाथ  में  चूड़ी   पहने।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[18/01 6:31 PM] सरला सिंह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिन - शनिवार* 
*दिनांक-18/01/20*
*विषय:मेरा,सबका
*विधा कुण्डलियाँ*

     55-मेरा
मेरा तेरा कुछ नहीं, यही जगत की रीत,
माया खेले खेल यह,बजे उसी का गीत।
बजे उसी का गीत, रहे सब उसमें उलझे।
भूले सच औ झूठ, नहीं अब बात है सुलझे।
कहती सरला आज, नहीं कुछ जग में तेरा।
करले प्रभु का ध्यान, छोड़ कर तेरा मेरा ।।

          56-सबका
सबका मालिक एक,रहा जगत को पाल।
मंदिर मस्जिद सब वही,सुलझा ले अब जाल।
सुलझा ले अब जाल,चैन मन में आयेगा।
मंजिल सबकी जान, ज्ञान यह जब पायेगा।
कहती सरला बात, सभी का एक हो तबका।
कोई जात न पात,बने एक मालिक सबका।।

डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली
[18/01 6:31 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनांक 18 जनवरी 2020
कलम की सुगंध छंद शाला 
*कुंडलियां शतकवीर हेतु* 
विषय ----  *मेरा*
मेरा   जो है,   था कभी, किसी और का   मित्र ।
कल किसका हो क्या पता,पद्धति बड़ी विचित्र ।।
पद्धति बड़ी विचित्र,  चित्र    यह   बदला करता ।
'मेरा'    मान    निरर्थक,  खोने से   क्यों डरता।।
"निगम" अरे दिव-स्वप्न,  जगत है क्षणिक बसेरा ।
सब    माया का खेल , नहीं    कुछ  तेरा मेरा।।

 विषय   ---  *सबका* 
सबका हित हो कर सकूँ, हे प्रभु ऐसा काम ।
शक्ति और सद्बुद्धि दे,  रहूँ  सदा निष्काम ।।
रहूँ    सदा निष्काम,    बनूँ  मैं सबका अपना ।
रहे   निरापद  मान,  पूर्ण हो   सबका सपना।।
"निगम" कार्य परमार्थ,  पुण्य फल देता तप का।
मुझे मिले  सौभाग्य ,   बनूँ   मैं हित-प्रद सबका ।।

कलम से
 कृष्ण मोहन निगम
 सीतापुर, जिला सरगुजा (छत्तीसगढ़)
[18/01 6:35 PM] राधा तिवारी खटीमा: कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक -18/01/2020

मेरा(57)
मेरा जग में कुछ नहीं, सब ईश्वर के हाथ।
 हे मनमोहन दीजिए, हरदम अपना साथ।।
 हरदम अपना साथ, करूँ मैं तेरी पूजा।
 इस जग में तो मुझे, नहीं भाया है दूजा।
 कह राधे गोपाल, तुम्हीं को हरदम टेरा।
सुनलो मेरी बात,रहे मोहन भी मेरा।।

सबका (58)
सबका कहना है यही, मोहन है भगवान ।
राधा को वो दे रहे, हर पल ही वरदान।।
 हर पल ही वरदान, साथ में हँसते गाते।
  जा यमुना के तीर, सदा वो रास रचाते।
 कह राधेगोपाल, नाम है दूजा रबका।
 मोहन है भगवान, यही है कहना सबका।।


#राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा 
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[18/01 6:44 PM] कमल किशोर कमल: नमन
18.01.2020
कुंडलियाँ प्रतियोगिता हेतु।
53-मेरा
मेरा तन अर्पित सदा,देशप्रेम के नाम।
सेवा में मेवा मिले,कर -कर जनहित काम।
कर -कर जनहित काम,मनस संतोषी बनता।
अपनेपन का भाव,सदा जेहन में रहता।
कहे कमल कविराज,जा रहे डेरा- डेरा।
दूर करें तकलीफ,ध्येय हो तेरा- मेरा।
54-
सबका
सबका मालिक एक है,करते काम अनेक।
एक धरा की सेज है,हवा नीर रब एक।
हवा नीर रब एक, दृष्टि रख एक समाना।
नेह गेह संवाद,भाव में हरदम गाना।
कहे कमल कविराज,सोंच‌ रखना है अब का।
खुशी मिले हर जीव,ध्यान रखना है सबका।

कवि-कमल किशोर "कमल"
        हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
[18/01 6:50 PM] रजनी रामदेव: मेरे गीत की समीक्षा नहीं हुई आदरणीया--दोपहर 2::02 मिनट पर प्रेषित किया था। अतः संज्ञान लेने की कृपा करें

प्रदत्त पँक्ति-- उर की पीड़ा बाहर फूटे
बहती बन लावा

झूठी है मुस्कान बहुत ये
नैन करें दावा
उर की पीड़ा बाहर फूटे
बहती बन लावा

कौन देखता घायल मन को
मूक हुई सी इस अनबन को
वक्त बाँध रखते हैं मुट्ठी 
आज़ादी न पाती छुट्टी
अनुशासन की डोर पकड़कर, बोले हैं धावा....
उर की पीड़ा....

महल दुमहले सब अपने हैं
फिर भी रीते से सपने हैं
साँस न लेतीं यहाँ हवाएँ
बनकर साथी रहें बलाएँ
दुनियादारी बिके यहाँ पे
कर-कर रोज दिखावा....
उर की पीड़ा....

बिरहन ये श्रृंगार हुआ है
बेबस मन लाचार हुआ है
जख्म जीस्त के लगे झलकने
तुम अपने पर हुए न अपने
फिर भी दुल्हन जैसा रखती
अपना पहनावा....
उर की पीड़ा बाहर फूटे
बहती बन लावा
               रजनी रामदेव
                 न्यू दिल्ली
[18/01 6:55 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
.           *कलम की सुगंध छंदशाला* 

.           कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

.              दिनांक - १८.०१.२०२०

कुण्डलियाँ (1) 
विषय-  *मेरा*
मेरा मेरा  सब  करे, मैं  का भाव कुभाव!
ममता माया  मोह  मैं, कारण  द्वेष दुराव!
कारण द्वेष दुराव, अहं का भाव विनाशी!
हम का बोल  उवाच, हमारे हों  विश्वासी!
शर्मा  बाबू लाल, समझ नित नया सवेरा!
मनुज  हितैषी  मान, त्याग भव तेरा मेरा!
•.                  ••••••••••  
कुण्डलियाँ (2) 
विषय-   *सबका*
सबका पानी आसमां, सिंधु सरित परिवेश!
पृथ्वी पवन प्रकाश पर, पलता  प्रेम प्रदेश!
पलता प्रेम प्रदेश, देश हित जीवन अपना!
पर  उपकारी  भाव, भारती   सेवा  सपना!
शर्मा बाबू लाल, माल्य के हम सब मनका!
अपना  भारत देश, तिरंगा  अपना सबका!
•.                     •••••••••
रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
[18/01 6:57 PM] रजनी रामदेव: शतक वीर प्रतियोगिता हेतु
18/01/2020::
मेरा
ईश्वर ने जीवन दिया, कर ले इसका मान।
तेरा मेरा क्यूँ करे, ए!! मानव नादान।।
ए!! मानव नादान, छोड़ दे प्रीत घनेरी।
मतकर तू अभिमान, राख की है ये ढेरी।।
शिव का कर ले ध्यान, सदा जप ले तू हरहर।
मान बहुत उपकार, दिया जो जीवन ईश्वर।।

सबका
सबका मन है मोहती, कंचन सी ये देह
मानव भी करता रहे, हरपल इससे नेह।।
हरपल इससे नेह, रोज ही इसे सँवारे।
दर्पण सम्मुख आन, प्रेम से खड़ा निहारे।।
फँसे सभी भ्रम जाल, रहे कोई भी तबका।
कंचन सी ये देह, मोह लेती मन सबका।।
                    रजनी रामदेव
                        न्यू दिल्ली
[18/01 7:06 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक- 18/01/2020

*मेरा*

मेरा मेरा कह रहा,तेरा बचा न कोय।
नश्वर सारी सम्पदा,अंत समय में रोय।
अंत समय में रोय,नहीं सब कुछ है दौलत ।
क्षणभंगुर संसार,अधूरी रहती हसरत।
कहती रुचि करजोड़,मोह ने सबको घेरा।
धन का करे गुमान,और समझे सब मेरा।

*सबका*

सबका जो आदर करे,वही बड़ा विद्वान।
सबका यहाँ महत्व है,दें सबको सम्मान।
दें सबको सम्मान,मर्म को समझो सबके।
छोटा बड़ा समान,भाव है सबसे हटके।
कहती रुचि करजोड़,भक्त सच्चा जो रब का।
रखे हृदय सद्भाव,करे आदर वह सबका।

✍ सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[18/01 7:09 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध
कुण्डलियाँ शतकवीर
दिनाँक--17/1/20

53
दुनिया
दुनिया अद्भुत है बड़ी,गहरे इसके राज।
जाने कब यह कौन सा,छेड़े कोई साज।
छेड़े कोई साज,कहीं लहरों की सरगम।
दुनिया बड़ी अजीब,कभी जलती है हरदम।
कहती अनु सुन साज,कहीं पे चहकी मुनिया।
गाती मधुर गीत,बड़ी ही प्यारी दुनिया।

54
तपती
तपती धरती देख के,मानव हुआ अधीर।
करनी से खुद ही सहे,मौसम की दी पीर।
मौसम की दी पीर,सही अब जाए कैसे।
करनी का फल भोग, चला क्यों रोता ऐसे।
उपवन उजड़े देख,धरा फिर हौले कँपती।
डोले धरती जोर,हवा भी जम के तपती।

55
मेरा
तेरा मेरा सोच के, बीते जीवन शाम,
माला लेकर हाथ में,जपते सीता राम।
जपते सीता राम,करे चुगली हर उसकी।
अपना सीना तान,जड़ें काटें कब किसकी।
कहती अनु यह देख,करे जो मेरा मेरा।
छोड़े सब फिर साथ,रहो करते फिर तेरा ।

56
सबका
सबका मालिक एक है,सबका दाता राम।
पीड़ा मनकी एक है,करना है आराम।
करना है आराम,मिले सब बैठे ठाले।
मिलता रहे अनाज,नहीं खाने के लाले। 
आलस तन पे ओढ़,मिटा हर कोई तबका। 
करले श्रम फिर आज,चले यह जीवन सबका।

अनुराधा चौहान
[18/01 7:11 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय  ----   *मेरा , सबका*
दिनांक  --- 18.1.2020....

(57)              *मेरा*

मेरा तेरा जाल है , अपनेपन के भाव ।
सब अपने हो जात हैं , नहीं रखना दुराव ।
नहीं रखना दुराव , सदा मेरा हम रखना ।
मन में होगा प्यार , नेह तुम्हें है चखना ।
कह कुमकुम करजोरि , डाल ममता का डेरा ।
कहता जीवन शेष , नहीं कह तेरा मेरा ।।


(56)             *सबका*

सबका ख्याल सदा रखें , जीवन का है धर्म ।
ममता ही देना सदा , करो नित्य तुम कर्म ।
करो नित्य तुम कर्म , सदा जीवन उपयोगी ।
सदा मिलेगा अर्थ , नहीं होना तुम भोगी ।
श्रम ना जाता व्यर्थ , मिलेगा तुमको हक का ।
मिलता सबका प्यार , हमेशा हक दो सबका ।।



🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
        दिनांक  18.1.2020.......

________________________________________
[18/01 7:28 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक -18 /01/2020
दिन - शनिवार
55 - कुण्डलिया (1)
विषय - मेरा
**************
तेरा मेरा कर रहा ,खींच द्वेष दीवार ।
दया धर्म को भूलकर , करता है व्यापार ।
करता है व्यापार , प्रेम का मोल लगाया ।
घिरा हुआ है स्वार्थ , मनुजता समझ न पाया ।
आया खाली हाथ ,लोभ ने तुझको घेरा ।
संग नहीं कुछ जाय , यहीं छूटे सब तेरा ।।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
56 - कुण्डलिया (2)
विषय - सबका
****************
जीवन सबका हो सुखी , कर लें ऐसे योग ।
सबका ही कल्याण हो , मिट जाए सब रोग ।
मिट जाए सब रोग , खुशी की घड़ियाँ पाएँ।
सेवा अरु सहकार , भाव सब ही अपनाएँ ।
धरा बने फिर स्वर्ग , ईश से करते अर्चन ।
कुसुमित पुष्प समान ,रहे सबका ही जीवन ।।

********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★
[18/01 7:29 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु

दिनांक-15-01-020

51
विषय-गलती

गलती अपनी मान ले, बन जाएंगे काम।
रिश्ते भी प्रगाढ़ हों, मन को भी आराम।।
मन को भी आराम, निभेगा साथ पुराना।
ये भी है उपकार, किसी को राह दिखाना।।
जग में होता नाम, पुण्य की सीमा बढ़ती।
जो कुछ करे प्रयास, उसी से होती गलती।।


52
विषय-बदला

बदला सदा सुकर्म से, हर मानव का भाग्य।
समता के पथ पर चलो, हो दूर दुर्भाग्य।।
हो दूर दुर्भाग्य, किसी से बदला लेना।
पथ करता अवरुद्ध, क्षमा सबको कर देना।।
लेकर साहस दीप, विजय को जो भी निकला
धारा देता मोड़, उसी ने युग है बदला।।
53
विषय-दुनिया

दुनिया वालों की सहकर, तीखी कड़वी बात।
कट जाते हैं दिन सभी, कट जाती है रात।।
कट जाती है रात, तभी सुर मीठे सजते।
होता उनका नाम,जो सद्भावना रखते।।
तब ही सुख आनंद, बहे खुशियों का दरिया।
ये गीता का ज्ञान, सत्य से टिकती दुनिया।।


54
विषय-तपती

धरती तपती देखकर, भीगे नभ के नैन।
छम छम पानी बरस रहा, अब शीतल दिन रैन।।
अब शीतल दिन रैन, धरा का रूप सुहाना।
नाचे वन में मोर, लुभाए दादुर गाना।।
दमके दामिनी देख, हवा भी शीतल चलती।
चौमासे का चित्र, सुखद इतराई धरती।।

सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[18/01 7:30 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध कुंडलियां शतकवीर प्रतियोगिता
18/1/2020
दिन--शनिवार

(55) मेरा

    गंगा तट पर  हैं खड़े  , नाविक टेरे राम।
 जी हां ,हां जी कह रहा, पूछ रहा है काम।
 पूछ रहा है काम , वेष देखे वनवासी।
   मन में सोचे राम ,यही हैं क्या सुखरासी।।
सुनकर  सीता राम  , हुआ मेरा मन चंगा।
  लखन सहित सिय राम,करु अब पार  मैं गंगा।।

(56)सबका

    आकुल मन बैठे भरत,  नैनन बरसे नीर।
 पूरी होती  है अवधि , नहि आये रघुवीर।
 नहि आये रघुवीर,   धूल उड़ती नभ कारी।
 मन सबका घबराय, शोर हुआ चहुँ दिशि  भारी।
 आया पुष्प विमान,  देख सब हर्षित खग कुल।
   देखि विकल नर नारि, भये रघुकुल मणि आकुल।।

 प्रमिला पान्डेय
[18/01 7:34 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '

  🙏🙏

कुण्डलिया छंद शतकवीर सम्मान हेतु  

51 ) मेरा 
**********
मेरा मेरा सब कहें , मेरा क्या है नाथ ।
सभी छोड़ जाएँ यहीं , ले जाना क्या साथ ।।
ले जाना क्या हाथ , करो कृपा प्रभु नाम की ।
भरो भक्ति का भाव , लगी है लगन धाम की ।।
मेरा मेरा छोड़ , लगा मंदिर का फेरा ।
कृपालु कृपा निधान , छुड़ा दे मेरा मेरा ।।


52 ) सबका 
*************
पालनहारा एक है , देखे वह संसार ।
उसकी यही दयालुता , निभाये वही प्यार ।। 
निभाये वही प्यार , सदा सही मग  चलाये । 
सबका मालिक वही, सभी को सार बताये ।।
सबका है वह नाथ , सबका है वही प्यारा ।
सबका मालिक एक , वही है पालनहारा ।।
&&&&&&&&&&&

(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
18.1.2020 , 6:18 पीएम पर रचित ।
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●●
🙏🙏 समीक्षार्थ व संशोधनार्थ ।🌹🌹
[18/01 7:39 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध 
कुंडलियाँ शतक वीर हेतु 
दिनाँक-5/01 /2020 
कुण्डलियाँ
विजय 

विजय हो यह देश तो, जग में होता नाम ।
करते रोशन नाम है,  बढ़े विश्व में दाम ।।
बढ़े विश्व में दाम, काम ऊँचा है देखो।
 मिलता है परिणाम ,ध्यान से पूरी सीखो।।
 कहे निरंतर बात,मात दे बन कालजयी।
 मिल जाए सौगात ,बने जब हम भी विजयी।।

भारत 

भारत देश महान है, हम सब हैं संतान ।
हरे-भरे सब खेत हैं, गांवों का दे भान।।
 गाँवों का दे भान, भिन्न भाषा सब बोली।
 हिल मिलकर हैं साथ, मनाएँ मिलकर होली।।
 कहे निरंतर बात,बढ़ी खर्चों की लागत।
 विकसित सुंदर देश, शिखर पर चमके भारत।।

कुंडलियाँ
 दिनांक 12 /01/ 2020
 आधा

आधा खिलता चाँद है ,प्रहर बढ़े जब रात।
छिटकी रहती चाँदनी, मधुर लगे सब बात ।।
मधुर लगे सब बात, प्रेम पागल जग सारा।
करे नहीं है काम ,फिरे वह मारा -मारा ।।
खुलते आधे ओंठ, हुई दीवानी राधा।
 भर जाता है पेट ,बाँट ले रोटी आधा।।

 यात्रा

यात्रा चारों धाम की, कर ली मैं दो बार ।
पावन देवों की धरा, नमन तुझे सौ बार ।।
नमन तुझे सौ बार, धन्य जीवन हो जाता।
मिलती अनुपम सीख, नमन जब दर्शन पाता।।
कहे "निरंतर" बात,खुशी पायी है मात्रा ।
चलते नदी पहाड़, सुखद रहती है यात्रा।।

अर्चना पाठक 'निरंतर'
[18/01 7:40 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुंडलिया शतकवीर हेतु*

दिनाँक - 18.1.2020
कुंडलिया (55) *मेरा*

मेरा- मेरा क्यों करें, नाम मढ़ें क्यों माथ।
आते खाली हाथ सब, जाते खाली हाथ।।
जाते खाली हाथ, साथ क्या लेकर जाना।
नहीं कफन में जेब, रहेगा  यहीं खजाना।।
कह प्रांजलि समझाय, धरा है रैन बसेरा।
लोभ-मोह  का पाश, कराता तेरा-मेरा।।

कुंडलिया (56) *सबका*

सबका हित जब सोचते, बीत गया वह वक्त।
अब तो सब रहने लगे, निजता में ही व्यस्त।।
निजता में  ही व्यस्त, ढूँढ़ते  रहते मौका।
जहाँ निहित हो स्वार्थ, वहीं सब मारें चौका।।
कर प्रांजलि पहचान, आदमी है मतलब का।
करें दिखावा खूब, भला कब सोचें सबका।।

_____पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[18/01 7:44 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कलम की सुगंध छंदशाला!*
*कुंडलिया शतकवीर हेतु। दिनांक--१८/०१/२०२०. दिन--शनिवार।*
~~~~~~~~~~~~~~

*५७--मेरा*
~~~~~~~~~
मेरा मन लगता नहीं, इस जग में हे नाथ।
ले लो तुम अपनी शरण, रखो पकड़ कर हाथ।
रखो पकड़ कर हाथ, नाव को पार लगाओ।
डूबे न मझधार, कृपा कर उसे बचाओ।
छल प्रपंच का खेल,अँधेरों का है घेरा।
है अति दुर्गम राह, नाथ डरता मन मेरा।
~~~~~~~~~
*५८--सबका*
~~~~~~~~~~
मेरा तेरा मत करो, सबका है यह देश।
छोड़ो लड़ना व्यर्थ में,बदलो यह परिवेश।
बदलो यह परिवेश, देश खुशहाल बनाओ।
हो सर्वत्र प्रकाश, अँधेरे  दूर भगाओ।
रहे संगठित देश, शत्रु डाले हैं डेरा।
रखो न मन में वैर, छोड़ दो तेरा मेरा।।
~~~~~~~~
*विद्या भूषा  मिश्र,बलिया, उप्र।*
~~~~~~~~~~~~~~~~
[18/01 7:45 PM] +91 94241 55585: शतकवीर कुण्डलिनीयां
            शनिवार 18/1/2020
                      मेरा

मेरा तेरा कुछ नहीं ,सबका प्यारा साथ ।
मिल कर रहना तुम सदा, देना मालिक हाथ
देना मालिक हाथ,ख्याल  है रखता सबका 
माया मंत्रों उपचार ,करे वह मानव तनका
भूखे गरीब  देख, लिया है खाना तेरा
कहती गुल यह बात, कठिन है जीवन मेरा


                      सबका

सबका मालिक भगवान, जपते भजते राम जीवन खुशियों  से लदी, लेते सब हरि नाम
लेते सब हरि नाम ,वही जग पालन करता।
राधा गोपी का नाम ,सभी के संकट हरता 
 मीरा गिरिधर श्याम ,सहे ना कोई रबका 
 गुल कहती वह बात,यहां है भगवन सबका

धनेश्वरी सोनी गुल बिलासपुर
[18/01 7:47 PM] कुसुम कोठारी: कमल की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
१८/१/२०
कुसुम कोठारी।

कुण्डलियाँ (५५)

विषय-मेरा
मेरा तेरा छोड़ दें , भजले प्रभु का नाम ,
सब रहेगा यहीं धरा , करले  पावन काम ,
करले  पावन काम , काम की छोड़ पिपासा ,
गति को करले शुद्ध,उच्च गति की अभिलाषा ,
कहे कुसुम सुन बात , मिटे भव-भव का फेरा ,
अमर रहे बस नाम  ,  मोल ये तेरा मेरा ।।

कुण्डलियाँ (५६)

विषय-सबका
सबका साथ रहे सदा , हो जीवन में प्यार ,
हार विजय का हो गले , आए कभी न हार ,
आए कभी न हार  ,  निराशा दूर भगाना ,
मन में दृढ़ विश्वास, ज्ञान की अलख जगाना
कहे कुसुम रख भाल,भाल उन्नत ज्यों नभ का,
कर जग हित में काम ,दुलारा हो  तू सबका ।।

कुसुम कोठारी।
[18/01 7:48 PM] अभिलाषा चौहान: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

कुण्डलियाँ(५५)
विषय-मेरा

मेरा-मेरा कर रहे,भ्रम में भटके लोग।
माया में उलझे हुए,रहे दुखों को भोग।
रहे दुखों को भोग,जोड़ते कौड़ी-कौड़ी।
भोग सके तो भोग,मौत आती है दौड़ी।
कहती'अभि'निज बात,यहाँ पर क्या है तेरा।
पल का सारा खेल,करें क्यों मेरा मेरा।

कुण्डलियाँ(५६)
विषय-सबका

सबका जीवन प्रेम से,सदा रहे भरपूर।
काम,क्रोध ,मद, लोभ से,सभी रहें बस दूर।
सभी रहें बस दूर,बनें दुनिया ये सुंदर।
दीन-हीन से प्रेम,भाव करुणा उर अंतर।
कहती'अभि'निज बात,द्वार खोले सब मनका।
करें इसे उपयोग,भला है इसमें सबका।

रचनाकार-अभिलाषा चौहान
[18/01 7:49 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर सम्मान हेतु*
*दिनांक:- १८/०१/२०२०*

*५३ मेरा*

मेरा हृदय उदास है, कहाँ खुशी का वास |
बेचैनी बढती गई, मिला मुझे वनवास |
मिला मुझे वनवास, ईश रक्षा कर मेरी |
झेल रहा संत्रास, धरा भी हुई सुनहरी |
कह विदेह नवनीत, छुटा खुशियों का ड़ेरा |
सपने हुए मलीन,हृदय उदास है मेरा ||

*५४:- सबका*

सबका दाता राम है, उससे ही है आस |
शरणागत मैं आ गया, खत्म करो वनवास |
खत्म करो वनवास, हरो मम उर की बाधा |
कान्हा हैं बरजोर, कहाँ जाए अब राधा ||
कह विदेह नवनीत, प्रश्न उठता है रब का |
अवधपुरी का वीर, राम है दाता सबका ||

*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा, ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
[18/01 8:02 PM] अमित साहू: कलम की सुगंध~कुण्डिलयाँ शतकवीर

55-मेरा (18.01.2020)
मेरा मैं का रूप है, मुझसे ही संबंध।
मैं मैं करता जो फिरे, बसे अहं हिय गंध।।
बसे अहं हिय गंध, लगे मानुष गर्वीला।
असहज जटिल स्वभाव, दंभ से भरा हठीला।।
कहे अमित कविराज, मिटा मन बसा अँधेरा।
छोछ़ मिथक अभिमान, तुरत तज तेरा मेरा।।


57-सबका
पूरा-पूरा हक मिले, सबका है अधिकार।
मौलिक हित सबके लिये, जीवन का आधार।।
जीवन का आधार, एक ही सबको मिलता।
पाकर सब सहयोग, सभी का तन-मन खिलता।।
अमित समझ सहकार, रहे क्यों मनुज अधूरा।
इतनी सी है आस, काज हो सबका पूरा।।

कन्हैया साहू 'अमित'
[18/01 8:04 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु

(55)
विषय-मेरा
मेरा मुझको और  मैं, इसी  फेर  में  लोग।
 जकड़े  माया  मोह  में ,रहे  यंत्रणा  भोग।
रहे  यंत्रणा  भोग, लपट  माया  की  खींचे।
 लोभसिक्त नर-शलभ,  पिपासा धन की सींचे।
जीवन  बीता व्यर्थ , लिप्सा, तृष्णा ने  घेरा।
नहीं गया कुछ साथ , रटा जीवन भर मेरा।


(56)
विषय-सबका
सबका पालक एक है,रखिये  इतना  ध्यान।
रचा  उसी ने जगत  को ,फूँकी  सबमें जान।
फूँकी  सबमें जान,  गगन  जल  धरा  बनाई।
नभ चमके शशि भानु , निशा तारों  सँग आई।
प्रभु कर सबकी डोर,किसी का नाता कबका।
करे  वही  सब ठीक,रचयिता है  जो  सबका।


आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[18/01 8:09 PM] अनिता सुधीर: मेरा
मैं ,मेरा के फेर में ,फँसा हुआ इंसान ।
होड़ जीतने की लगी,कर्ता का अभिमान।
कर्ता का अभिमान,प्रबल होता ही जाता ।
रहते मद में चूर ,कहाँ फिर झुकना आता।
जीवन प्रभु की देन ,बचा क्या जीवन तेरा ।
करते रहते रार ,निहित सब कुछ मैं मेरा।

सबका
सबका मालिक एक है ,मूल तत्व पहचान।
जाति धर्म का द्वेष क्यों ,कहते संत सुजान ।
कहते संत सुजान, कर्म ही उत्तम पूजा ।
मानवता हो धर्म ,नहीं इसके सम दूजा ।
कहती अनु ये बात,लगा दें जीवन खुदका।
श्रद्धा अरु विश्वास ,नियम जीवन में सबका ।

अनिता सुधीर
[18/01 8:12 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर 

(५५) मेरा 

मेरा कुछ मुझमें नहीं, सब कुछ तेरा नाथ। 
बल तप यश गुण है तभी, जब मम शिर तव हाथ॥
जब मम शिर तव हाथ, कहें प्रभु से हनुमंता। 
सागर तरा अपार, भिड़े जब खल बलवंता। 
खाये जब फल तोड़, मुझे असुरों ने जब घेरा।
राम राम कह राम, बढ़ा था बल तब मेरा॥

(५६) सबका

मंगल सबका हो सदा, गह पद प्रभु के, भूप।
टभव सागर से पार हों, गिरें न अघ के कूप॥
गिरें न अघ के कूप, कहे कपि, सुन, हे रावण।
हिय धर मेरी सीख, हठी, कर मन को पावन॥
देंगे तुझको दान, दया का निज-जन-वत्सल।
लौटा सीता मात, प्रजा हित वर ले मंगल॥

गीतांजलि
[18/01 8:16 PM] भावना शिवहरे: विनती

 विनती  करू मैं शारदे, चरण से होय नात
 तुमसे  दूर कभी न हो, सुनती मेरी बात!!
 सुनती मेरी बात, भाव में पिरोय गहना!
 माँगू तुमसे साथ, पाथ दर्शन  बन जाना!!
 बारंबार हो नमन , वही  है सुख दुख  सुनती!
 दासी तेरी  जान, कृपा चाह  मनुज विनती!!
भावना शिवहरे
[18/01 8:28 PM] पाखी जैन: कलम की सुगंध छंदशाला 
*शतकवीर हेतु कुंडलियाँ*
18/01/2020
55- *मेरा* 
मेरा तेरा मत करो,मत तोड़ो ये प्रीत।
तेरा मेरा कर रहे,बंद सभी हैं गीत।
बंद सभी हैं गीत,रहे सवाल अनसुलझे ।
एक साँच सौ झूठ ,बात अब कभी न सुलझे ।
कहती पाखी बात,जगत है रैन बसेरा ।
चल तू सीधी राह,छोड सब तेरा मेरा ।
मनोरमा जैन पाखी

56-- *सबका*
सबका मालिक एक है, राह धर्म की नेक ।
मंदिर मस्जिद मत करो,जात सभी की एक।
जात सभी की एक,चलो, मंजिल पायेगा।
करो काम तुम नेक,सफल तू हो जायेगा।
पाखी भूली बात, बचा लेता है तिनका ।
झूठी हैं सब जात,एक है मालिक सबका।
मनोरमा जैन पाखी 
सादर समीक्षार्थ 🙏🏻🙏🏻
[18/01 8:35 PM] अनंत पुरोहित: कलम की सुगंध छंदशाला
कार्यक्रम शतकवीर कुण्डलियाँ हेतु 
अनंत पुरोहित अनंत 

दिन गुरूवार 16.01.2020

54) तपती 

तपती वसुधा पे पड़ी, बूँदों की बौछार 
सौंधी सौंधी गंध से, महक उठा संसार 
महक उठा संसार, कृषक तब जमकर झूमे
स्वाति गिरी जलधार, चकोरी बूँदें चूमे 
कह अनंत कविराय, धरा खिल खिल तब सजती
पड़ती जब बौछार, तर बतर धरती तपती

अनंत पुरोहित अनंत
[18/01 8:37 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद 
18-1-2020

मेरा 

मेरा साँई श्याम है, सब कुछ उनके हाथ ।
जैसा भी राखे सदा, चरण झुकाऊँ माथ ।
चरण झुकाऊँ माथ, सुन मेरे गिरधारी।
सिसके कभी न मात, जगत में बन दुखियारी ।
हो न कभी लाचार, तनय का स्नेह घनेरा ।
मिले सहारा श्याम, विनय बस तुमसे मेरा ।।

सबका 
सबका का दाता एक है, रख उनपे विस्वास ।
रहता तेरे साथ है, होना नहीं  निराश ।
होना नहीं निराश, वही तेरा रखवाला ।
थामे रखना हाथ, कर जपन नाम की माला ।
झूठा यह संसार, छूट ते नाता कबका ।
नैया लगाते पार, राम जी मालिक सबका ।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[18/01 8:48 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला 

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

दिनांक - 18/01/2020

कुण्डलिया (55) 
विषय- मेरा
==========

मेरा   जग   में  मान  हो, करें   सभी   सम्मान l
हर हिय में अभिलाष यह, सब समझें गुणवान Il
सब    समझें    गुणवान, हमारी    तूती   बोले l
भला   कौन  विद्वान, यहाँ  सम्मुख मुख खोले ll
कह  'माधव कविराय', यही  अभिमान  है तेरा l
प्रथम  उन्हें   सम्मान, चाह   जिनसे   हो  मेरा ll

कुण्डलिया (56) 
विषय- सबका
===========

सबका अपना ज्ञान है, सबकी अपनी थाँह I
सचमुच जो ज्ञानी बड़ा, गहे  दीन की  बाँह ll
गहे  दीन की  बाँह, नहीं कुछ  भेद करे वह l
मानव  सेवा  धर्म, न  झूठा  दम्भ  भरे  वह ll
'माधव'  बाँटे  स्नेह, पिपासा जो भी तबका l
ईश्वर का  प्रिय दूत, भला ही  सोचे  सबका Il

रचनाकार का नाम-
           सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
                        महोबा (उ.प्र.)
[18/01 9:07 PM] नीतू ठाकुर 'विदुषी': *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर सम्मान हेतु*
*दिनांक:- १८/०१/२०२०*

*मेरा*
मेरा दुख मुझमें रहा, सुख को देखे गाँव।
साँझ ढले मिटती तपिश, पा सपनों की छाँव।।
पा सपनों की छाँव, नाव जीवन की चलती।
किस्मत खेले खेल, मनुज को प्रतिपल छलती।।
मिट जाए हर भ्रांति , साथ पाकर अब तेरा।
ढूंढे मन वो मीत, बने जो दर्पण मेरा।।

*सबका*
सबका सपना एक है, सुख का हो घर वास।
धन दौलत से सज्ज हों, रहे प्रतिष्ठा पास।।
रहे प्रतिष्ठा पास, कर्म कुछ ऐसा करलें।
ज्ञान भरा संसार,रिक्त झोली को भरलें।।
कठिन बचाना मान, समय है ऐसा अब का।
संग रहें भगवान, ध्यान रखते जो सबका।।

*नीतू ठाकुर 'विदुषी'
[18/01 9:18 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंद शाला* 
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
18/1/2020
                   
           *(55)मेरा* 

मेरा मेरा सब कहे,साथ नही कुछ जाय।
दुनिया दारी छोड़ के,धन दौलत की हाय।
धन दौलत की हाय,होत है जी बीमारी ।    
खानपान  को छोड़, जोड़ के रुपया हारी।
कहती मधुर विचार,काट दो मेरा तेरा।
अहम छोड़ नम हो,होय नाही कुछ मेरा।
               *(56) सबका* 
         
अपना अपना वोट दे,चुने देख  सरकार ।
जनतांत्रिक मतदान ही, सबका है अधिकार।
 सबका है अधिकार, करें मतदान समझ के।
आय प्रलोभन फेर,मोल दे मत को छल से।
कहती मधुर विचार, बिके नेता का  सपना।
जाग समझ अधिकार, वोट का हक है अपना।
 *मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[18/01 9:33 PM] सुशीला जोशी मुज़्ज़फर नगर: *,कलम की सुगंध कुंडलियाँ प्रतियोगिता2019-2020*
18-01-2020

55,--- *मेरा*....
मेरा मेरा कर रहा ,मेरा हुआ न कोय 
जो मेरा मेरा हुआ , दूजा  और का 
 न होय , 
दूजा  और का न होय , रहे वो  अपना हो कर 
छोड़े कभी न साथ , नींद का सपना हो कर 
मेरा मेरा  सोच , लगाता जग का फेरा 
मेरा कभी न होय , कह रहा मेरा मेरा ।

56--- *सबका*
सबकी आत्मा  एक है , सबका ईश्वर एक 
नभ तो सबका एक है  , तारे बने अनेक 
तारे बने अनेक , एक ही सूरज   मग का  
 हवा पानी भी एक , एक ही दाता जग का 
शब्द सभी के एक , एक ही वाणी  लब की  
एक रहा आधार ,एक है आत्मा
सबकी ।।

सुशीला जोशी 
मुजफ्फरनगर
[18/01 9:35 PM] उमाकांत टैगोर: *कुण्डलिया शतकवीर हेतु*
*दिनाँक- 13/01/20*
कुण्डलियाँ-(49)
विषय-कोना

कोना कोना घूमकर, देखा मैंने देश।
जाना इस संसार में, अलग अलग परिवेश।
अलग-अलग परिवेश, बँटा है हर इक मजहब।
जाति वर्ण का भेद, मिटाये कौन भला अब।।
सभी रहे जी एक, रोय मत कोई रोना।
चले यही अभियान, बचे मत कोई कोना।।

कुण्डलियाँ(50)
विषय-मेला 

मेला जाते घूमने, बच्चे बूढ़े साथ।
बिछड़ न जाये सोच के, बापू पकड़े हाथ।
बापू पकड़े हाथ, झूमते सब हैं जाते।
तरह तरह पकवान, सभी मेले में खाते।।
फ़िल्म देखने रोज, लगा रहता है रेला।
बचपन में भी आप, गये होंगे जी मेला।।

रचनाकार-उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर(छत्तीसगढ़)
[18/01 9:58 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर - संशोधित 

(५५) मेरा 

मेरा कुछ मुझमें नहीं, सब कुछ तेरा नाथ। 
बल तप यश गुण है तभी, जब मम शिर तव हाथ॥
जब मम शिर तव हाथ, कहें प्रभु से हनुमंता। 
सागर तरा अपार, भिड़े जब खल बलवंता। 
खाये जब फल तोड़, मुझे असुरों ने घेरा।
राम राम कह राम, बढ़ा था बल तब मेरा॥

(५६) सबका

मंगल सबका हो सदा, गह पद प्रभु के, भूप।
भव सागर से पार हों, गिरें न अघ के कूप॥
गिरें न अघ के कूप, कहे कपि, सुन, हे रावण।
हिय धर मेरी सीख, हठी, कर मन को पावन॥
देंगे तुझको दान, दया का निज-जन-वत्सल।
लौटा सीता मात, प्रजा हित वर ले मंगल॥

गीतांजलि
संशोधित

कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिन - शनिवार*
*दिनांक-18/01/20*
*विषय:मेरा,सबका
*विधा कुण्डलियाँ*

राधा तिवारी 'राधेगोपाल
 खटीमा
उधम सिंह नगर
 उत्तराखंड

मेरा(57)
मेरा जग में कुछ नहीं, सब ईश्वर के हाथ।
 हे मनमोहन दीजिए, हरदम अपना साथ।।
 हरदम अपना साथ, करूँ मैं तेरी पूजा।
 इस जग में तो मुझे, नहीं भाया है दूजा।
 कह राधे गोपाल, तुम्हीं ने हरदम घेरा।
सनलो मेरी बात,रहे मोहन भी मेरा।।

सबका (58)
सबका कहना है यही, मोहन है भगवान ।
राधा को वो दे रहे, हर पल ही वरदान।।
 हर पल ही वरदान, साथ में हँसते गाते।
  जा यमुना के तीर, सदा वो रास रचाते।
 कह राधेगोपाल, याद करता हर तबका।
 मोहन है भगवान, यही है कहना सबका।।


#राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड

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