असल हंगामा तो इस बात पर बरपा हुआ है..
नक़ाबों को नक़ाबों से निपटना आ गया है..
उसे नारों जुलूसों की हवा से क्या मिलेगा
वो जिसके हाथ में बीमार बच्चे की दवा है..
तो फिर नादान तुझको पत्थरों की क्या ज़रूरत
तिरंगा हाथ में अपने अगर थामा हुआ है..
मेरे बच्चे ने भी कुछ गुल उजाड़े हैं चमन के
अगरचे कुछ तो इसमें बाग़बाँ की भी ख़ता है...
उसे लगता है उसकी हद में होगी पूरी दुनिया
सियासत ने जुनूँ-ओ-जोश को ऐसे छला है..
Aarya
Panipat haryana
बहुत ही शानदार ग़ज़ल 👌👌👌
ReplyDeleteग़ज़ल पढ़ते ही वाह निकलता है
ReplyDeleteबहुत सुंदर