Monday 27 January 2020

कुण्डलियाँ छंद...साजन ,सजना

[27/01 6:07 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु -
दिनाँक - 27.01.2020 (सोमवार )

(69)
विषय - साजन

आओ  साजन  पास में, मन  मेरा  हर्षाय।
किरण जगी उम्मीद की,प्रीत हिलोरे खाय।।
प्रीत हिलोरे  खाय, मगन  मेरा  मन  डोले।
पिया मिलन की चाह,मधुर कोयलिया बोले।।
कहे विनायक राज,गीत प्यारा कुछ गाओ।
साजन कर मत देर,आज जल्दी घर आओ।।

(70)
विषय - सजना

सजना है  तेरे  लिए,देख मिलन  की  रात।
रात  चाँदनी  आसमां, करने  मीठी  बात।।
करने  मीठी  बात,  सुहानी  रुत  है  आई।
आओ सजना पास, निशा ने ली अँगड़ाई।।
कहे विनायक राज,प्रीत की धुन बन बजना।
जगी आस है आज,मिलन की मेरे सजना।।

बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[27/01 6:09 PM] धनेश्वरी सोनी: शतकवीर कुण्डलिनी याँ
         कलम की सुगंध
         सोमवार।   27/1/2020

रेशम डोरी बांधकर, राखी लेकर हाथ।
उपहार देता रहता ,बहना पाता साथ ।
बहना पाता साथ ,माता बढ़कर मानता ।
धागे रिश्तों डोर,कच्ची कटती जानता ।
पावन मौली हाथ, देकर दाता बांधता
कहती गुल यह सार , निकलती धागा कोसम
 खिलते सभी उपवन ,डोर है प्यारी रेशम

                         बोली

बोली मीठी है लगे ,बोलो मीठा बात ।
 कड़वा बोली क्यों कहें, लगती सबको लात ।
 लगती सबको लात ,शब्दों से होत घायल
 सभी बोलते लोग ,बजती छनन छन पायल ।
 बोली करे घमंड ,अकड़ते बनते टोली ।
 भाषा कोमल जान ,देखकर बोलो बोली ।

         धनेश्वरी सोनी गूल बिलासपुर
[27/01 6:10 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
.           *कलम की सुगंध छंदशाला*

.           कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

.              दिनांक - २७.०१.२०२०

कुण्डलियाँ (1)
विषय-  *साजन*
साजन  सीमा  पर  चले, तकती  विरहा  राह।
देश प्रथम अपने लिए, कहूँ  न तन मन आह।
कहूँ  न  तन मन आह, यही बस मेरी  चाहत।
पहले   रखना   देश,  हमारा  प्यारा    भारत।
करो  न  मेरा  मोह,  बचे  भारत  का  सावन।
विजित बने जब देश, तभी घर आना साजन।
•.                  •••••••••• 
कुण्डलियाँ (2)
विषय-   *सजना*
सजना है  मुझको सखी, कर अनूप  शृंगार।
अमर  सुहागिन  मै  बनू, शत्रु दलन  अंगार।
शत्रु  दलन  अंगार, देश  हित मुझे सजाओ।
सीमा पर अरि घात , युद्ध के साज बजाओ।
शर्मा बाबू लाल, सजन मुश्किल मम बचना।
लक्ष्मी  बाई  याद, उन्हीं  की   जैसे  सजना।
•.                     •••••••••
रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
[27/01 6:17 PM] सरोज दुबे: कुंडलियाँ -69
दिनांक -27-1-20

विषय -साजन

सजना साजन के लिये, मुझको सौ सौ बार l
उनके ही खातिर करूँ, मैं सोलह श्रृंगार l
मैं सोलह श्रृंगार, साथ जीवन भर रहना l
पकड़े उनका हाथ, बातें दिल की है कहना
कहती सुनों सरोज, गमों को मिलकर तजना l
लानी मंजिल पास, सजन के खातिर  सजना l

कुंडलियाँ -70
दिनांक 27-1-20

विषय -सजना

योद्धा बन सजना सदा, वीर पुरुष तू आज।
शौर्य धैर्य हथियार से, दृढी रहे आवाज॥
दृढ़ी रहे आवाज, गर्जन शेरों जैसे l
थर्राय अरि पक्ष, मस्त हाथी के ऐसे l
सोचे सभी सरोज, दिखे जो पहले बुद्धा l
उसने मारी मार, समर का निकला योद्धा l

सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏
[27/01 6:17 PM] डॉ मीना कौशल: साजन

साजन की पथगामिनी,पतिव्रता सत् नारि।
खुशियों में उनके रहीं,अपना सब कुछ वारि।।
अपना सबकुछ वारि,देखतीं पति मुखमण्डल।
पति का पुलकित प्रेम,उन्हे मिलता है प्रतिफल।
होता प्रिय संसार,सुखद हैं रानी राजन।
नारी का सौभाग्य,मानता हो गर साजन।।

सजना

सजना प्रियतम के लिए,कर सोलह श्रृंगार।
प्रेम पयस्विनी बह चली,रुनझुन की झनकार।।
रुनझुन की झनकार,अक्षि में अन्जन साजे।
कटि तट पर झंकार,किंकिणी की धुन बाजे।।
हाथों में रुचि प्रेम,सुहागन मेंहदी रचना।
अधर सुधारस नेह,भाग्य हो हरदम सजना।।

 डोरी

डोरी बाँधी प्रेम की,राधे कृष्ण अनूप।
छाया है ब्रह्माण्ड में,राधे कृष्ण स्वरूप।।
राधे कृष्ण स्वरूप,बसें मन में जीवन में।
बसते मोहन हृदय,रधिके वृन्दावन में।।
करें गोपिका नृत्य,कन्हैया सँग बरजोरी।
बँधी रधिके कृष्ण, गोपिका स्नेहिल डोरी ।।

: बोली

बोली मृदु अनमोल है,तोल मोलके बोल।
वाणी से बरसे सुधा,दे अन्तस् तक घोल।।
दे अन्तस् तक घोल,मोल न इसका कोई।
झलके मुख मुस्कान,मधुर हो बनी रसोई।
मिश्री मधु मुस्कान,रहे अमृत रस घोली।
बरसे मधुमय प्यार,जहाँ में महके बोली।।
डा.मीना कौशल
[27/01 6:17 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय  ----   *साजन ,सजना*
दिनांक  --- 27.1.2020....

(69)              *साजन*

साजन साजन नित कहूँ , करती सब से प्यार।
मन मतवाला चाहता  , करना है श्रृंगार ‌।
करना है श्रृंगार  , गले लगना नित मुझसे ।
कर लेंगे हम‌ बात , लगाना है दिल तुझसे ।
कह कुमकुम कविराय , सुना गाना तुम राजन ।
तुम हो मेरीे जान , प्राण तुम से ही साजन ।।


(70)           *सजना*

सजना है साजन सुनो , ला दो तुम तो हार ।
सज-धज कर मैं तो चलूँ , मुझसे मानों हार ।
मुझसे मानों हार , चलो तुम अब उपवन में ।
डालें झूला पेंग , मस्त घुमते सावन‌ में ।
कह कुमकुम करजोरि , मधुर गाना है सुनना ।
हो जाता है काम , सदा नित पड़ता सजना ।।


🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
       दिनांक  27.1.2020..

____________________________________
[27/01 6:18 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ  शतकवीर हेतु*
गुरुवार-16-01-2020

*53)दुनिया*

जैसा तुमको चाहिए,दुनिया से व्यवहार।
वैसा ही फिर तुम करो,लोगों से आचार।
लोगों से आचार,सभी हैं यहाँ सयाने।
एक से बढ़कर एक,लगा दें होश ठिकाने।
सुन वन्दू की बात,मिले जैसे को तैसा।
दर्पण सम संसार,दिखे जो होता जैसा।।

*54)तपती*

मानव ने विध्वंस किया,खोदे विटप पहाड़।
तपती है देखो धरा,करता है खिलवाड़।
करता है खिलवाड़,संतुलन सारा बिगड़ा।
वृक्ष हीन हुई भूमि,लगे जग उजड़ा उजड़ा।
अभी समय है चेत,नहीं बनना तुम दानव।
पर्यावरण सुधार,बनो जागरूक  मानव।।

शनिवार-18-01-2020

*55)मेरा*

तेरा मेरा क्यों करे,भज ले प्रभु का नाम।
कण कण में वो है बसा,सुमिरन चारों याम।
सुमिरन चारों याम,छोड़ के मोह औ माया।
सब स्वारथ के मीत, जगत में क्यों भरमाया।
सुन वन्दू मन बात,घिरा है तिमिर घनेरा।
कौन किसी का आज,नही कुछ तेरा मेरा।

*56)सबका*

सबका ये कर्तव्य है,उन्नत हो मेरा देश।
अनेकता में एकता,विविध यहाँ के वेश।
विविध यहाँ के वेश,अनोखा देश हमारा।
न किंचित भेदभाव,सभी में भाई चारा।
कहती वन्दू बात,चलन सनातन तब का।
राष्ट्र रहे अखंड,यही प्रयास हो सबका।

*रचनाकार-वंदना सोलंकी*
*नई दिल्ली*
[27/01 6:20 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: *27.01.2020 (सोमवार )*

71-   डोरी
********
डोरी बाँधी प्यार की, फिर कैसा इंकार ?
जब दो दिल मिल रहे हों, सहज करें स्वीकार।
सहज करें स्वीकार, जनम का बंधन बाँधो।
हो जिनसे टकराव, न हित कुछ ऐसे साधो।
"अटल" न रखिए आप, कभी आपस में चोरी।
साथ रखें यह याद, प्यार की नाजुक डोरी।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏

72-  बोली
*********
बोली में रस घोलिए, बोल प्यार के बोल।
जिससे जो भी कह रहे, बातों में रस घोल।
बातों में रस घोल, न करिए कोई झगड़ा।
हो चाहे कमजोर, या रहे कोई तगड़ा।
"अटल" भरे वह घाव, जिसे दे कोई गोली।
देती दिल पर चोट, हमेशा कड़वी बोली।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[27/01 6:27 PM] शिवकुमारी शिवहरे: Title: दुनिया

Date: 27 Jan 2020

Note:
दुनिया

आते दुनिया मे सभी,करो तुम अच्छे काम।
काम करो ऐसे सभी ,दुनिया मे हो नाम।
दुनिया मे हो नाम, दुनिया गोल है प्यारे।
मिले सदा सुखधाम,बनते काम है सारे।
कहे शिवा ये आज,सभी दुनिया से जाते
पूरण होगें काम, सभी दुनिया मे आते।


शिवकुमारी शिवहरे


Title: तपती

Date: 27 Jan 2020

Note:
तपती

सूखे वृक्ष है सभी, जीवन हुआ हताश।
आज ताप से है जले, धरती और आकाश।
धरती और आकाश,,सूरज से तपती धरती।
सूरज का ये ताप,सभी हरियाली हरती।
पशु पक्षी कुम्लाय, न खाय पिये है  भूखे।
उड़ती धूल गुबार, भू वृक्ष रहे है सूखे।

शिवकुमारी शिवहरे।


Title: जाना

Date: 27 Jan 2020

Note:
जाना

जाना है सबको सभी,एक दिन दुनिया छोड़।
कर्म सदा करते चलो, प्रभु से नाता जोड़।
प्रभु से नाता जोड़,छोड़के दुनिया सारी।
लोभ मोह को त्याग, सभी से करले यारी।
करना  ऐसा काम, सदा तुमने है माना।
दुनिया जाये छोड़,सदा को सबको जाना।

शिवकुमारी शिवहरे


Title: करना

Date: 26 Jan 2020

Note:
करना

करना है सबको सदा ,हरदम ऐसे काम।
काम सदा ऐसा रहे ,जीवन मे हो नाम।
जीवन मे हो नाम,काम तुम करते जाओ।
हो सबके नजदीक,,पास तुम अपने पाओ।
कहे शिवा ये आन,एक दिन सबको  मरना।
सबको हो अभिमान, काम तुम ऐसे करना।

शिवकुमारी शिवहरे




 Download Memo App:
https://play.google.com/store/apps/details?id=com.abhi.newmemo
[27/01 6:32 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': कुँडलिया शतक वीर हेतु

 61).  दीपक

कच्ची माटी से गढ़ा , दीपक नन्हा सुजान ।
तम निशि को पूनम करे, करे बड़ा अवदान ।।
करे बड़ा अवदान , स्वयं जल दे उजियारा।
भरकर धीरज तेल , बने जग आस सहारा।।
सुनो "धरा" की बात , कहे जो सच्ची सच्ची ।
कुंदन कुल का दीप , ढाल लो माटी कच्ची ।।


62)     पूजा

पूजा तप अरु साधना ,भर लो मन मे भक्ति ।
हर ले संकट त्रास को , प्रभु देते बल शक्ति ।।
प्रभु देते बल शक्ति , कभी जो आये अड़चन ।
करते ईश्वर त्राण , देख के  मानव तड़पन ।।
कहे "धरा" कर जोड़ , कहाँ प्रभु बिन है दूजा ।
करते हरि उद्धार , करो नित दिन तुम पूजा ।।


*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़,छत्तीसगढ़*
[27/01 6:33 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला🙏🏻
 प्रणाम।
 कुंडलियाँ शतक वीर के लिए रचना🌹
डॉ श्रीमती कमल वर्मा।
 कुंडलिया क्र73
 विषय _साजन
 मेरे साजन आइये, मन होता बेचैन।
 तड़प रही हूंँ याद में, भीगे रहते हैं नैन।।
  भीगे रहते नैन,बुरे सपने भी आये।
 नैहर की यह रैन,कहांँ साजन अब भाये।
 बैठी देखो कमल, राह में साजन तेरे।
 कब आओगे शाम, प्राण व्याकुल है मेरे।।
 कुंडलियाँ क्र74.
 विषय_सजना
 सजना नारी चाहती,मन सुंदरता बोध,
 कोमल नन्हीं बालिका, सुंदर और अबोध।
 सुंदर और अबोध, बनी बैरन सुंदरता।
 उसको कब है सोच, दृष्टि कोई है धरता।।
 कमल कर होशियार,पडे मत फिर दुख भजना।।
 नारी का अधिकार,सदा ही मन से सजना।
कृपया समिक्षा करें।
[27/01 6:37 PM] अनिता सुधीर: कुंडलिया शतक वीर

साजन

सजनी बैठी द्वार पर,अँखियां रहीं निहार ।
साजन हैं परदेश में ,सूना  है  संसार ।
सूना है संसार,नहीं पीड़ा सह पाती ।
एक बूँद की प्यास,सीप ढूँढे है स्वाती ।
सहती ये हालात ,बिना चन्दा ज्यों रजनी।
लगा मिलन की आस,द्वार पर बैठी सजनी ।

सजना
सजना साजन के लिये,निभा प्रीत की रीति।
ये सोलह श्रृंगार ही,सकल जगत की नीति ।
सकल जगत की नीति,रहे श्रृंगार अधूरा ।
साजन जो हैं पास ,खिला है मुखड़ा पूरा ।
 चूड़ी बिंदी हार ,संग पायल का बजना ।
प्रभु देना आशीष ,सदा सँग सँग हो सजना ।

स्वरचित
अनिता सुधीर
[27/01 6:38 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनाँक ----   27/01/2020
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
विषय.....  *साजन*
साजन मनभावन लगे ,  कभी न छोड़े संग ।
करें मनोरथ पूर्ण वो ,. ऐसा प्यारा ढंग ।।
ऐसा प्यारा ढंग , न जिसके बिन कुछ भाता।
उसका  प्रणय  विशेष,  हृदय में भाव जगाता।।
कहे "निगम कविराज", प्रीत-शुभ का वह भाजन।
संबंधी सब अलग, अलग है सबसे साजन ।।

विषय ....    *सजना*
 सजना' सजनी के लिए , दे अनगिन  उपहार ।
सजनी उनसे छाँट कर , रख लेती बस प्यार।।
रख लेती बस प्यार , समझकर उसकी  थाती ।
करती वह मनुहार ,  कभी तो, कभी रिसाती ।।
" निगम" सुनो नित गान, चूड़ियों का शुभ बजना।
 मनमोहक मुस्कान , नाचता दिनभर सजना ।।

 *कलम से*
कृष्ण मोहन निगम
सीतापुर(सरगुजा)
[27/01 6:41 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु

दिनांक-26-01-020

69
विषय-साजन

साजन तेरा साथ है, सावन है हर मास।
आना जब छाएँ मेघ, उमड़ घुमड़ आकाश।।
उमड़ घुमड़ आकाश, सखी ये मुझसे कहती,
पिया बसे परदेश, सखी तू कैसे रहती।।
सूरज तुझको जान, सजाती हूँ घर आँगन।
तेरे नेह की धूप, हृदय में बिखरी साजन।।

70
विषय-सजना

सजना जी तोड़ो नहीं, जीवन का विश्वास।
नैना मेरे बोलते, बस तेरा ही आस।।
बस तेरा ही आस,सहारे सुख के सारे।
तुम जो जाओ रूठ, बहेंगे अश्रु धारे।।
तुमसे नेह अटूट,निभाओगे सच कहना।
अमर रहे सिंदूर, बसो मेरे उर सजना।।


सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[27/01 6:43 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु

(69)
विषय-साजन
 साजन  जो   मैंने  चुना,  पहनाई  वरमाल।
उस प्रियतम के संँग चली, सात भाँवरें डाल।
सात  भाँवरें  डाल, बना  साथी  अलबेला।
जैसे दीपक ज्योति ,सजा सपनों का मेला।
नैना  मैं वह  नींद, बना  है  मेरी  धड़कन।
उसमें मेरे प्राण,बसा मन  में   है   साजन।


(70
विषय-सजना

सजना सजना के लिए, उसे लुभाना आज।
ऐसा  रीझे  साजना, बजे  प्रेम  का  साज ।
 बजे प्रेम का साज, सजा माथे पर टीका।
नथ कंगन प्रिय हार, रिझाता है मन पी का।
चली सजन के पास ,नहीं पायल तू बजना।
 जगी ननद है सास ,पुकार रहे हैं सजना।

रचनाकार-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[27/01 6:46 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे

कुंडलियाँ

71. साजन

साजन मेरे छोड़ना, कभी न मेरा हाथ।
मेरे प्रभु करना नहीं, मुझको कभी अनाथ।।
मुझको कभी अनाथ, साथ प्रभु देना मेरा।
इस दुनिया में एक, सहारा केवल तेरा।।
कह अंकित कविराय,कोप का बनें न भाजन।
रखना मुझपर दृष्टि, कृपा की मेरे साजन।।

72. सजना

सजना तुम कुछ इस तरह, चमक उठे हर अंग।
संस्कार के तुम सभी, भरना इसमें रंग।।
भरना इसमें रंग, आँख में लाज सजाना।
सेवा को निज हाथ, दया के साथ बढ़ाना।।
कह अंकित कविराय,दोष तुम सारे तजना।
अधरों पर मुस्कान, सजाकर अपने सजना।।

----- राम लखन शर्मा ग्वालियर
[27/01 6:56 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंद शाला*
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
         
             *(69) साजन*

साजन आए द्वार जब,लेत उदय अनुराग ।
प्रथम प्रणय की प्रेरणा,ह्रदय जात है जाग।
ह्रदय जात है जाग,प्रणय की अनुपम धारा।
डूब उतरता मनुज,सुनहरी बंधन कारा।
बहे मधुर रसधार,बने सब इसके भाजन।
जीवन का आधार,लगे है प्यारा साजन।
               *(70)सजना*
सजना साजन के लिए,कर सोलह श्रृंगार।
 संस्कार बंधन रीति,कंठ पहन गलहार।
कंठ पहन गलहार,एक दूजे पे वारे।
जीवन गाड़ी राह,संग सुख दुख चाह गुजारे।
मिले मधुरतम साथ,ढोल शहनाई बजना।
भारतीय पहचान, सिन्दूरी  बेंदी सजना ।

 *मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[27/01 7:03 PM] सरला सिंह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*

*26/01/2020*
*दिन - रविवार*
*विषय - साजन,सजना*
*विधा-कुंडलियां*

69-साजन
सजनी देखे राह है ,साजन की दिन रात।
भाता है उसको नहीं,करना सखि से बात।
करना सखि से बात, लिए उदास मुख प्यारी।
सुन्दर सा है रूप, लगे जो सबसे  न्यारी।
सरला कहती आज, जगे वह पूरी रजनी।
लेकर मन में आस, बाट देखे है सजनी।।
70-सजना
धरती सजना के लिए,हरदिन सुन्दर रूप।
सजना है ऐसे सखी, सुनें नहीं जज्बात।
सुनें नहीं जज्बात, करें बस अपने मनकी।
दिलकी सुनें न बात ,उसे सूझे बस धनकी।
कहती सरला राज,रोज वह जतन है करती।
करती विनती आज, चले आओ अब सजना।।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
[27/01 7:10 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध
 कुंडलियाँ शतक वीर हेतु
 दिनाँक- 27 /10/2020

कुंडलियाँ

 विषय-साजन

साजन है जब साथ में, पूरा घर संसार ।
बाबुल का घर छोड़ के, आई तेरे द्वार।।
आई तेरे द्वार ,प्रेम की हूँ अभिलाषी ।
देना हरदम साथ, वचन कहना मृदुभाषी ।।
कहे निरंतर बात ,बनूँ  रानी तू राजन।
 मत करना तुम घात,सदा रहना तुम साजन।।

सजना

सजना साथ निभाइये,जन्म -जन्म की बात।
सजती रहती मैं यहाँ,दिन हो चाहे रात।।
दिन हो चाहे रात,सदा ही श्याम लुभाना।
आएँगे वो पास ,कभी काँटे न चुभाना।।
कहे निरंतर आज,शुरू हो मुरली बजना।
मीठी वाणी बोल,पिया बिन कैसा सजना।।

अर्चना पाठक 'निरंतर'
[27/01 7:10 PM] चमेली कुर्रे सुवासिता: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलिया शतकवीर*

दिनांक- 2/01/2020
कुण्डलिया- ( *65*)
विषय - *खिलना*
खिलना मन के बाग में , साजन बन कर फूल।
महक उठो हर अंग से , रंग बनो तुम स्थूल।।
रंग बनो तुम स्थूल , मांग भर लू मैं मेरी।
सात जन्म का साथ , बाह पकड़ी है तेरी।।
सुवासिता है ब्याह , पूर्व जन्मो का मिलना।
भ्रमर बने तुम नेक , कली बन मेरा खिलना।।

कुण्डलिया -( *66*)
विषय - *होली*
आता होली पर्व जब , देता ये संदेश।
धुँ धुँ जलती लकड़ियाँ , यही सत्य परिवेश।।
यही सत्य परिवेश , जलेंगे झूठे ऐसे।
हुई होलिका खत्म , आग में जलती जैसे।।
सुवासिता उल्लास , मनाया हरदम जाता।
जीत सका कब झूठ , बताने सब को आता।।

कुण्डलिया -( *67*)
विषय - *साजन*

बहते पानी धार पे , लिखते साजन नाम।
चाहत के हर रंग जब , सदा दिखे अभिराम।।
सदा दिखे अभिराम , इंद्र-धनुषी कहलाये ।
प्रीत नाव में बैठ , पार सागर कर जाये।
सुवासिता के हाथ , थाम सहगामी रहते।
प्रेम लहर में रोज , साथ फिर दोनों बहते।।

कुण्डलिया -( *68*)
विषय - *सजना*
दर्पण नर सब देख कर , सजना चाहे रोज।
भटके है मन बावरा , आज करे कल खोज।।
आज करे कल खोज , जवानी क्यों ढल जाती ।
देख समय का खेल , झुर्रियां तन पर आती ।।
सुवासिता ये सोच , किया है सब पल अर्पण ।
बूढ़े कहते आज ,नही हम देखे दर्पण।।
          🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[27/01 7:21 PM] कुसुम कोठारी: कमल की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
२७/१/२०
कुसुम कोठारी।

कुण्डलियाँ (६९)

विषय-साजन
गोरी पूछे चाँद से , क्यों आए मुझ धाम ।
मेरे साजन दूर हैं ,क्या है तुम को काम ।
क्या है तुम को काम,चाँदनी मुझे न भाती ।
जा हो जा तू दूर ,पिया जब आए आना ।
रहना सारी रात ,चाँदनी बरसा जाना ।
कुसुम आलि का दर्द , गूंथती विरहा डोरी ।
भर आँखों में नीर , छुपाती पीड़ा गोरी ।।

कुण्डलियाँ (७०)

विषय-सजना
कैसा सजना रूप का , मन का हो शृंगार ।
मोह राग सब छोड़ कर, भावों का भृंगार ।
भावों का भृंगार ,शुद्ध मन सुंदर रखना ।
सदा रहे सत काम, पुण्य का मेवा चखना ।
करो कुसुम सत कर्म,  मिले प्रतिपादन वैसा ।
मन में हो जब मैल , रूप का सजना कैसा ।।

कुसुम कोठारी।
[27/01 7:24 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक - 26/01/2020
दिन - रविवार
69 - कुण्डलिया (1)
विषय - साजन
***************
साजन के घर को चली , सपने लिए हजार ।
बढ़ा कर्म पथ पर कदम , छूटा बाबुल द्वार ।
छूटा बाबुल द्वार , नए रिश्ते अपनाती ।
मात पिता नव भ्रात , सभी पीहर में पाती ।
धर कर लक्ष्मी रूप , बनी सबकी प्रिय भाजन ।
जीवन नाव सवार , चले सजनी अरु साजन ।।

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
70 - कुण्डलिया (2)
विषय - सजना
*****************
करुणा ममता प्रेम ही , इस जीवन का सार ।
सजना छोड़ो देह से ,करो हृदय श्रृंगार ।
करो हृदय श्रृंगार , तभी है सार्थक जीना ।
वह नर ढोर समान ,अन्य का जो सुख छीना ।
पर हित का शुभ भाव , बिखेरो ऐसी अरुणा ।
सुंदर सजे स्वभाव , हृदय में जब हो करुणा ।।

********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★
[27/01 7:25 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध
 शतक वीर हेतु कुंडलिया
27/01/2020

साजन(69)

साजन जी जब साथ हैं, राधा है खुशहाल।
 बिन साजन अच्छा नहीं, लगती है ससुराल।।
 लगती है ससुराल, उसे तो हर पल भारी।
  साजन जी के साथ, रहूँ सोचे हर नारी।
 कह राधेगोपाल,कहूँ मैं उनको राजन।
 राधा है खुशहाल, साथ में जब है साजन।।

सजना(70)

सजना सजनी से कहें, थामा तेरा हाथ ।
जीवन भर मेरा यहाँ,तुम दे देना साथ ।।
तुम दे देना साथ, बनी है अपनी जोड़ी।
ज्यादा इसमें प्यार,  लड़ाई थोड़ी-थोड़ी।
 कह राधेगोपाल, सुनो पायल का बजना ।
थामा तेरा हाथ, कहे सजनी से सजना।।

 राधातिवारी
"राधेगोपाल"
 खटीमा
उधम सिंह नगर
 उत्तराखंड
[27/01 7:29 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कलम की सुगंध छंदशाला! कुंडलिया शतकवीर आयोजन सोमवार--दिनांक --२७/०१/२०२०* ~~~~~~~~~
*७1--साजन*
~~~~~~~~~
जैसा वादा है किया,पकड़े रहना हाथ।
जीवन भर मत छोड़ना, *साजन* मेरा साथ।
साजन मेरा साथ, प्रेम में कमी न करना।
जीना भी है साथ, साथ ही हमको मरना।
बिन साजन के साथ, नाथ यह जीवन कैसा।
बनता है निर्जीव, साँस बिन हो तन जैसा।।
~~~~~~~~~
*७२--सजना*
~~~~~~~~
*सजना* साजन के लिए, करना नित श्रृंगार।
मीठी बोली से सदा, बढ़ता मन में प्यार।
बढ़ता मन में प्यार, खुशी से बीते जीवन।
घर में रहती शांति, प्रफुल्लित होता तन-मन।
कह "भूषण" कविराय, नाम ईश्वर का भजना।
मन में सरसे नेह,पिया की खातिर सजना।
~~~~~~~~~~
*विद्या भूषण मिश्र "भूषण"*
~~~~~~~~~~~~~~
[27/01 7:32 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध शतक वीर कुंडलिनी प्रतियोगिता
दिन-सोमवार
27-1-2020
विषय-शब्द --साजन/ सजना

(1)साजन
 साजन के मन में बसी, जब सजनी मननमीत
अलि कुंजन में मधुप सा,  गावें मोहक गीत।
गावे मोहक गीत, मीत सँग प्रीत लगावे।
नख सिख उपमा लिखे , शारदे शीश झुकावे।
 कह प्रमिला कविराय , पति हैं सुयश के भाजन।
 नैनन छवी समाय, सुनो  मन मेरे साजन।
 (2)सजना

  सजना है तुमको अभी, कर सौलह श्रृंगार।
  डोली लेकर आ रहे ,पति सँग चार  कहार।
 पति सँग चार कहार, संग  सब चले बराती ।
 नाचें मोद मनाय,  कलश पर जलती बाती।
कह प्रमिला कविराय,  सुने बाजों का बजना
  करती  रुप श्रृंगार,   पहनकर बेंदी  सजना।।

प्रमिला पान्डेय
[27/01 7:33 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध
शतकवीर कुण्डलियाँ छंद
दिनाँक--27/1/20

69
साजन
साजन मुझको चाहिए,बस थोड़ा सा मान।
दुनिया में मेरी बने,थोड़ी सी पहचान।
थोड़ी सी पहचान,नहीं कुछ माँगू दूजा।
मिले मान सम्मान,बड़ी यह सबसे पूजा।
बस इतनी सी आस,नहीं कुछ चाहूँ राजन।
जीवन भर का साथ,यही बस माँगू साजन।

70
सजना
सुंदर सा सजना जरा,पहन नौलखा हार।
आँखों में कजरा लगा,देख जली सब नार।
देख जली सब नार,पहन जब चलती पायल।
कँगना खनके हाथ, हुआ दिल सबका घायल।
कहती अनु मन देख,भाव से भरा समंदर।
सजती है जब नार,नहीं उस जैसा सुंदर।

अनुराधा चौहान
[27/01 7:36 PM] सुशीला जोशी मुज़्ज़फर नगर: *कलम की सुगंध कुंडलियाँ प्रतियोगिता 2019-2020*

23-01-2020

65-- *आशा*

आशा में उम्मीद है , जीने को संसार
आशा ही करवा  रही , जीवन के व्यापार
जीवन के व्यापार , बढ़ाते गति को आगे
आशा रहती हृदय , दूर मायूसी  भागे
खोती आत्मा शक्ति  , बिसारे ज्ञान  निराशा
माने ये संसार , श्रेष्ठ ये समझो आशा  ।

66--- *उड़ना*
नभ में उड़ने के लिए , धरो हौसला पँख
सीमा मापने के लिए , चलो बजा लो शंख
चलो बजा लो शंख, आस को रख लो  मन में
उर दृढ़ता के साथ , शक्ति भी रख लो तन में
सदा रहो तैयार , रखे अंकुश लो लब में
धरो हौसला पंख , सदा उड़ने को नभ में ।

24-01-2020

67-- *खिलना*

खिलना देखो फूल का , जब आता मधुमास
चित्रशलभ से वन बनें , फट कर खिले पलाश
फट कर खिले पलाश , धरती बने रंगोली
उर लिए उन्माद , गूँजती कोयल बोली
डाल मंजरी फूट , बताती फल का मिलना
जब आता मधुमास , देख लो फूल का खिलना ।।

68--- *होली*

होली का त्योहार तो ,रंगों का त्योहार
रंग बदलते प्रकृति के , लगे सुखद संसार
लगे सुखद संसार,विटप खिलखिला  रिझावे
धरा बखेर गुलाल , प्रकृति सह मोद मनावे
सजा रंग ये सात, चितेरा खोलता झोली
डूबी  रंग खुमार ,मस्त आई है होली ।।

सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर
[27/01 7:38 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
27/01/2020:: सोमवार
साजन
खनकें खन खन चूड़ियाँ, सुना रहीं सङ्गीत।
आजा सजना चाँद सँग, अमर रहे ये प्रीत।।
अमर रहे ये प्रीत, कहे ये मेरा कंगना।
कर सोलह श्रृंगार, आज चाहूँ मैं सजना।।
लगा महावर पाँव, छमक छम तोड़े छनके।
भाती हैं मनमीत, हाथ जब चूड़ी खनकें।।

तोड़े-- मोटी घुँघरू वाली पायल

सजना-
सजना सजना के लिए, कर सोलह श्रृंगार।
सजा सजीला साथियों, सपनों का संसार।।
सपनों का संसार, बसाया मन के आँगन।
प्यारा वन्दनवार, बनाया तुझको साजन।।
तुम अपना ये प्यार ,रँगोली सम ही रखना।
ये मेरा संसार, सुखद तेरे सँग सजना।।

                    रजनी रामदेव
                       न्यू दिल्ली
[27/01 7:53 PM] धनेश्वरी सोनी: कुंडलिया
 सतकवीर सम्मान
सोमवार 26।1 ।2020

                     सजना

सुंदर सजना चाहती, रखती सुंदर रूप  ।
दिखती मोहिनी सुरती ,करें  श्रृंगार अनुप ।
करें श्रृंगार अनुप ,झुकती पलकें थाम ।
जभी केस लहराई ,लगती ढलती शाम ।
 गिरधर है राधेय, मिले है आत्मा अंदर ।
 राधा मोहन श्याम ,रुप अनेक है सुंदर।


                       साजन

देखती रहती वह उसे, करती सुंदर प्यार।
 देखें सीता बाग में  ,राम दिव्य अवतार ।
 राम दिव्य अवतार ,करते रावण उद्धार ।
करती प्रेम अपार ,सीता सजती श्रृंगार ।
व्याकुल देखते नैन ,प्रेम की राहे तकती ।
 सीता सीता राम ,वैसे साजन देखती  ।


         धनेश्वरी सोनी गुल बिलासपुर
[27/01 8:04 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 26.01.2020

कुण्डलियाँ (61)
विषय-दीपक
बाती दीपक में जले,फैले खूब प्रकाश।
तिल तिल करके घी घटे,होना नहीं निराश।
होना नहीं निराश,मिले संदेश ये सुंदर ।
कहता है ये दीप,जलो, मगर न कुढ़ अंदर।
जीवन है दिन चार,करो बातें मन  भाती।
जलना दीपक धर्म,जले दीपक या बाती?




कुण्डलियाँ (62)
विषय-पूजा
पूजा ही तो भक्ति है,भक्तों  का है भाव।
पूजा मन की भावना,पूजा मन का चाव।
पूजा मन का चाव,सजा भावों की थाली।
तन मन धन सब वार,न जाये पूजा खाली।
अनु कहती कर जोड़,भाव बड़ा, न कुछ दूजा।
कर्म ही धर्म जान,यही है सच्ची पूजा।।




 
     

रचनाकार का नाम-

अनुपमा अग्रवाल
[27/01 8:15 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर
दिनांक २७/०१/२०

(६७) खिलना

खिलना कली प्रभात में, टूटे जब निश-तंद्र।
बूँद बूँद है टपकती, प्रभा चंद्र की मंद्र।
प्रभा चंद्र की मंद्र, भरे सुगंध ज्यूँ चंदन।
बहती शांत समीर, फुरे कण कण में स्पंदन।
अरुण उगे जब भोर, ध्वजा का जब हो हिलना।
सैनिक पथ के बीच, कली तुम भी तब खिलना।।

(६८) होली

होली खेले ख़ून से, जा सीमा पर वीर।
वात्सल्य प्रतीक्षा करे, धर कर मन में धीर।।
धर कर मन में धीर, मनाये प्रभु को पल पल।
रहे सुरक्षित लाल, कर्तव्य मग पर अविचल।।
छुए न उसका शरीर, कभी कोई अरि की गोली।
देता पहरा वीर, मने हम सब की होली।।

(६९) साजन

साजन तेरी विरहनी, जलती जैसे दीप।
अखियों में आँसू भरे, जैसे मोती सीप॥
जैसे मोती सीप, पले नित्य तव प्रतीक्षा।
तेरा सीमा वास, कठिन मम हुई परीक्षा॥
तड़पे भीतर प्यास, बरसता बाहर सावन।
आवोगे कब लौट, साँवरे सैनिक साजन॥

(७०) सजना

सजना नित मोरे पिया, सुंदर सैनिक वेश।
रखना प्रण मन में यही, होवे उन्नत देश।।
होव उन्नत देश, सभी देशों से बढ़कर।
चमके ख्याति अपार, गगन असीम में चढ़कर।।
प्रतिदिन करना कर्म, नहीं निज प्रण तुम तजना।
बन कर रक्षण हार, गणवेश में प्रिय, सजना।।

गीतांजलि
[27/01 8:34 PM] पाखी जैन: 27/01/2020
कलम की सुगंध छंदशाला
*शतकवीर हेतु कुण्डलिया*
23/01/2020
*आशा*
आशा सबकी तुम बनो,करना ऐसे काम।
चिंता क्यूँ है हो रही,करना अपना नाम।
करना अपना नाम,आकाश को तुम छू लो।
पकडो़ सबका हाथ,खुशी बाँहों में भर लो।
पाखी झूठी साख,बन जाती है तमाशा।
रखना इसका ध्यान,सभी हो पूरी आशा।
मनोरमा जैन पाखी

*उड़ना*
बाँहों में प्रिय की सदा,उड़ना तुम आकाश।
दूर गगन की छाँव में, सुख से करो  निवास ।
सुख से करो निवास,सदा उर में ही रहना।
बनो पीयूष धार,सदा निर्झर सी बहना।
पाखी सुख की खान, पिया की चलना राहों ।
होकर खुश वोआज,तुझे भर लेंगे बाँहों।

25/01/2020
*खिलना*
खिलना फूलों की तरह ,भँवरों सा गुंजार ।
हो उन्मुक्त उडो सदा,उडना सागर पार ।
उड़ना सागर पार,करो काम तुम निराले।
हँसता अपना देश,याद हैं सरहद वाले।
अपनी उड़ान रोक,गले सबसे तुम मिलना।
मीठी होगी याद,सदा फूलों सी खिलना ।
मनोरमा जैन पाखी।
[27/01 8:38 PM] अभिलाषा चौहान: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर हेतु

कुण्डलिया(६९)
विषय-साजन


साजन सबकुछ छोड के,चले मोक्ष की राह।
सोती रही यशोधरा,जान न पाई थाह।
जान न पाई थाह,रही पल-पल पछताती।
साजन को कर याद,विरह में तपती जाती।
कहती'अभि'निज बात,त्याग उसका अति पावन।
करें लोक कल्याण,विरत योगी बने साजन।

कुण्डलिया(७०)
विषय-सजना

सजना तब साकार है,सजना का हो संग।
हृदय खुशी से झूमता,मन में उठे उमंग।
मन में उठे उमंग,सजन जब रूप निहारे।
खिलता जीवन प्रेम,खुशी से तन-मन वारें।
कहती'अभि'निज बात,प्रेम को कभी न तजना।
जीवन का श्रृंगार,बना सजनी का सजना।

रचनाकार-अभिलाषा चौहान
[27/01 8:44 PM] अनंत पुरोहित: कलम की सुगंध छंदशाला
कार्यक्रम कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
अनंत पुरोहित 'अनंत'

60) करता

कर्ता करता कर्म को, करता मद में चूर
अहंकार में चूर हो, प्रभु से होता दूर
प्रभु से होता दूर, हमेशा निज में खोता
माया के पड़ फेर, बाद में बहुविध रोता
कह अनंत कविराय, जान वह सबका धर्ता
अहंकार को त्याग, वही कर्मों का कर्ता

61) दीपक

जलता है दीपक स्वयं, रौशन करता राह
सैनिक बिल्कुल दीप सा, भला अन्य की चाह
भला अन्य की चाह, नहीं एवज में लेता
देश धर्म के हेतु, स्वयं की आहुति देता
कह अनंत कविराय, भलाई पथ पर चलता
करता राह प्रकाश, स्वयं तिल तिल है जलता

62) पूजा

पूजा अपना कर्म है, करते रहना कर्म
फल की चिंता मत करो, यही हमारा धर्म
यही हमारा धर्म, कर्म में तन मन रमना
फल को प्रभु पर छोड़, ध्यान से डट कर जमना
कह अनंत कविराय, लक्ष्य हो कभी न दूजा
केवल एक उद्देश्य, यही है सच्ची पूजा

रचनाकार-
अनंत पुरोहित 'अनंत'
[27/01 8:56 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक- 27/01/2020

*साजन*

साजन सजनी साथ है,सुंदर सरगम साज।
मंद मंद मुस्कान से,खोले दिल के राज।।
खोले दिल के राज,प्रेम झलके नैनों से।
आदर सूचक शब्द,दिखाते निज बातों से।।
कहती रुचि करजोड़,चाँदनी छिटकी आँगन।
प्रेम पूर्ण संवाद,लुभाते करके साजन।।


*सजना*

गजरा बिंदी कंगना,कर सोलह श्रृंगार।
*सजना सजना* के लिए,मिले सदा ही प्यार।।
मिले सदा ही प्यार,चित्त प्रियतम का मोहे।
गहना पहने अंग,सुहागिन नारी सोहे।।
कहती रुचि करजोड़,प्रीत पर रहे न पहरा।
सज धज कर तैयार,कंगना बिंदी गजरा।।

सजना- साजन
सजना -श्रृंगार
यमक अलंकार

✍ सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[27/01 8:58 PM] सुशीला जोशी मुज़्ज़फर नगर: *कलम की सुगंध कुंडलियाँ प्रतियोगिता 2019-2020*

23-01-2020

65-- *आशा*

आशा में उम्मीद है , जीने को संसार
आशा ही करवा  रही , जीवन के व्यापार
जीवन के व्यापार , बढ़ाते गति को आगे
रहती दिल में आस  , दूर मायूसी  भागे
शक्ति खोए  आत्मा  , बिसारे ज्ञान    निराशा
जीने को संसार , उम्मीद ही  बस आशा  ।

66--- *उड़ना*
नभ में उड़ने के लिए , धरो हौसला पँख
सीमा मापने के लिए , चलो बजा लो शंख
चलो बजा लो शंख, आस को रख लो  मन में
उर दृढ़ता के साथ , शक्ति भी रख लो तन में
सदा रहो तैयार , अंकुश रख लो लब में
धरो हौसला पँख , सदा उड़ने को नभ में ।
*24-01-2020--अवकाश*

25 -01-2020

67-- *खिलना*

खिलना देखो फूल का , जब आता मधुमास
चित्रशलभ से वन बनें , फट कर खिले पलाश
फट कर खिले पलाश , धरती बने रंगोली
उर लिए उन्माद , गूँजती कोयल बोली
डाल मंजरी फूट , बताती फल का मिलना
जब आता मधुमास , देख लो फूल का खिलना ।।

68--- *होली*

होली का त्योहार तो ,रंगों का त्योहार
रंग बदलते प्रकृति के , लगे सुखद संसार
लगे सुखद संसार,विटप खिलखिला  रिझावे
धरा बखेर गुलाल , प्रकृति सह मोद मनावे
सजा रंग सातों, चितेरा खोलता झोली
डूबी  रंग खुमार ,मस्त आई है होली ।।

सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर
[27/01 9:09 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध छंद शाला.....कलम शतकवीर
हेतु
★★★★★★★★★★★☆★★★★★                   
          *विषय.....खिलना*
            विधा........कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★★
सीखो खिलना फूल सा,करो मधुप सा प्यार।
बाग  सुहावन  सा लगा, महका  सदा  बहार।
महका सदा बहार , लगे  सुन्दर  मन  भावन।
चढ़ती  माता  भाल ,रही  शोभा  घर  आँगन।
कहता कवि श्रीवास,सजे  नंदन  का  पलना।
गाये  मंगल  गान , सदा  फूलों  सा  खिलना।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
            *विषय.......होली*
              विधा........ कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★★
होली फागुन मास की, खेले  रंगों  साथ।
हरा लाल पीला रचा,भाये प्रियतम हाथ।।
भाये प्रियतम हाथ,लाल जब मधुबन आये।
राधा  बाला  देख , नाथ  नयना  सुख पाये।।
कहता कवि श्रीवास,कृष्ण की प्यारी बोली।
रास  रचाये  आज , ग्वाल अब खेले होली।।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
            *विषय.......साजन*
              विधा........ कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★★
साजन  सजनी  संग  में,करें प्रीत की बात।
नैन  मिलें  जब  नैन  से ,मधुर प्रेम बरसात।।
मधुर  प्रेम  बरसात ,नेह  बरसे  जब  सारी।
आयी  सुंदर  भोर, बनी  वह  दुल्हन प्यारी।।
कहता कवि श्रीवास,लगी तुम इतनी भावन।
गोरी  चल अब  साथ,बनूँ   मैं  तेरा  साजन।।
★★ ★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
बलौदाबाजार भाटापारा
[27/01 9:13 PM] कमल किशोर कमल: नमन मंच
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु।
 71-खिलना

खिलना है आकाश तक,ऐसी चर नर सोच।
उसी जोश से उड़ रहा,समझ जटिलता लोच।
समझ जटिलता लोच,प्रबंधन वैसा करता।
करता प्रकृति निवेश,लगाता वैसा पैसा।
कहे कमल कविराज,रिक्तियाँ सारी भरना।
श्रम से कहाँ गुरेज,चरों को नभ तक खिलना।
72-
होली-

होली भोली खेलती,सखी सहेली संग।
उछल- कूद ऐसी करे,जैसे पी हो भंग।
जैसे पी हो भंग,पिता को पिता न समझे ।
हँसे ठहाका मार,केश सब उलझे उलझे।
कहे कमल कविराज,चली हुड़दंगी टोली।
लगते जीजा सार,खेलती भोली होली।
73-साजन

साजन के घर जा रही,जनक दुलारी आज।
ढोल नगाड़े बज रहे,  तरह-तरह स्वर साज।
तरह-तरह स्वर साज,नाँचते ढोल बराती।
चमक रहे घर द्वार,चमकती झालर बाती।
कहे कमल कविराज,खड़े हैं द्वारे राजन।
तिलक लगाते भ्रात,आ गये बहना साजन।
74-सजनी

सजनी सजना से कहे,चलो झील के तीर।
भीतर की गरमी मिटे,झर- झर शीतल नीर।
झर-झर शीतल नीर,प्रीत की बहे बयारें।
मन में उठे फुहार,कामिनी कंचन हारे।
कहे कमल कविराज,चाँदनी चंदा रजनी।
संग सहेली बने,मिलन की बारी सजनी।
कवि-कमल किशोर "कमल"
        हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
🌹👏🌹
[27/01 9:23 PM] सरोज दुबे: कुंडलियाँ -69
दिनांक -27-1-20

विषय -साजन

सजना साजन के लिये, मुझको सौ सौ बार l
उनके ही खातिर करूँ, मैं सोलह श्रृंगार l
मैं सोलह श्रृंगार, साथ जीवन भर रहना l
पकड़े उनका हाथ, बातदिल की ही  कहनी 
कहती सुनों सरोज, गमों को मिलकर तजना l
लानी मंजिल पास, सजन के खातिर  सजना l

कुंडलियाँ -70
दिनांक 27-1-20

विषय -सजना

योद्धा बन सजना सदा, वीर पुरुष तू आज।
शौर्य धैर्य हथियार से, दृढी रहे आवाज॥
दृढ़ी रहे आवाज, गर्जना शेरों जैसे l
थर्राए अरि पक्ष, मस्त हाथी के ऐसे l
कहती सुनो सरोज, दिखे था  पहले बोद्धाl
उसने मारी मार, समर का निकला योद्धा l

सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏
[27/01 9:28 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
68
साजन

साजन मेरे हाथ में  , रहे सदा ही हाथ।
जन्म जन्म मिलते रहें, कृपा करे रघुनाथ ।।
कृपा करे रघुनाथ, जन्म हर तुझको पाऊँ ।
बिँदिया सजती माथ,गीत मैं तेरे गाऊँ ।।
माँगूँ हे सिय नाथ, मिले प्रियतम मन भावन।
सौ जन्मों का साथ, रहे बस प्यारा साजन ।।

69
सजना

सजना है पिय के लिये,सज के बिँदिया भाल।
पग पायलियाँ बाँध के,मतवाली सी चाल।।
बिझुआ की झनकार, कान में डोले बाली।
पाँव रचा कर लाल,हाथ में चुडियाँ लाली ।।
गाती पिय के गीत, खनकती हाथों कँगना ।
सिर पर घूँघट डाल, पिया के हित है सजना ।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम

1 comment: