Thursday 23 January 2020

कुण्डलियाँ छंद...आशा ,उड़ना

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[23/01 6:00 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
 *कुंडलिया शतकवीर हेतु*

दिनाँक -23.1.2020
    कुंडलिया (65) *आशा*

आशा कभी न छोड़िए, जबतक चलती श्वास।
जीते  जीवन  जंग  जो,  करते  रहे   प्रयास।।
करते   रहे   प्रयास,  मौत  भी  उनसे   हारी।
देखा   दृढ़  विश्वास,  मात   खाती  बेचारी।।
कह प्रांजलि समझाय, उठो अब त्याग निराशा।
बनें   प्रेरणा   आप,  कभी  मत  छोड़े  आशा।।

  कुंडलिया (66)  *उड़ना*

खग के लोचन लालची, होकर निर्भय  आप।
उड़ना  है  आकाश  में, लेने  नभ की नाप।।
लेने  नभ  की नाप, दूर  तक  उड़ के जाना।
करूँ  गगन  की  सैर, छोड़कर नीड़ पुराना।।
प्रांजलि पंख पसार, पाश अब खोले पग के।
अंतर अति उत्साह, लालची लोचन खग के।।

______पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[23/01 6:00 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: *23.01.2020 (गुरूवार)* 

65-   आशा
**********
आशा पर दुनिया टिकी, इसका ही परिणाम।
सभी लक्ष्य पर लगे हैं, सबके अपने काम।
सबके अपने काम, सभी के सुन्दर सपने।
करते हैं कर्तव्य, पराए हों या अपने।
असफल होते "अटल", घेरती घोर निराशा।
मिले सफलता अगर, समझ लो पूरी आशा।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏

66-   उड़ना 
**********
उड़ना अति का है बुरा, रखें भूमि पर पैर।
जो भी उड़ कर चला है, उसका सबसे बैर।
उसका सबसे बैर, बुराई सबकी मिलती।
नहीं कभी फिर कली, खुशी की दिल में खिलती।
"अटल" मंत्र लो जान, जरूरी सबसे जुड़ना।
भूल हवाई बात, छोड़ दो अति का उड़ना।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[23/01 6:03 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु -
दिनाँक - 23.01.2020 (गुरूवार)

(65)
विषय - आशा

आशा लेकर साथ में, चलना  है  दिन-रात।
तभी मिलेंगे आप को,खुशियों की सौगात।।
खुशियों  की  सौगात, हाथ हैं  अपने प्यारे।
पूरे   होंगे     चाह,   कर्म   करने  हैं  सारे।।
कहे विनायक राज,कभी मत होय निराशा।
चलो कदम संभाल,मिलेगी सबको आशा।।

(66)
विषय - उड़ना 

ये तन पंछी मान कर, उड़ना पंख पसार।
नील गगन की छाँव में,सुन्दर सा संसार।।
सुन्दर सा संसार, सजाना  साथी  सपने।
मिले सभी को प्यार,बसे घर मेरे अपने।।
कहे विनायक राज,हौंसला रखना रे मन।
मिट जायेगा आज,सुनों रे माटी ये तन।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[23/01 6:03 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनांक 23 जनवरी 2020 
कलम की सुगंध छंद शाला ।
*कुंडलियां शतक वीर हेतु*
 विषय -----   *आशा*
आशा का   दीपक जला, उद्यम का घृत डाल ।
सुख-प्रकाश होगा विमल,  विनय -सूत्र अनुपाल ।।
विनय-सूत्र अनुपाल, कर्म पथ पर चल अविचल ।
गीता का सद्ज्ञान , कर्म कृत का मिलता फल ।।
"निगम" कभी मत छोड़, धर्म ,आदर्श,स्वभाषा ।
समय विषम - सम योग, कभी भी छोड़ न आशा।।

 विषय   ----   *उड़ना* 
उड़ना, मन की है प्रकृति,  उड़ने दे उन्मुक्त ।
देता   आमंत्रण    गगन , कर उत्साह प्रयुक्त ।।
कर उत्साह प्रयुक्त, न उड़ना आता जिसको।
अकर्मण्य कमजोर ,  जगत यह कहता उसको।।
"निगम" है अपरिहार्य,  धरातल से भी जुड़ना ।
शाम सदन को लौट , दिवस कितना भी उड़ना।।
*कलम से*
कृष्णमोहन निगम
सीतापुर, सरगुजा(छ.ग.)
[23/01 6:08 PM] डॉ मीना कौशल: आशा 

जीवन की है लालिमा,आशाओं के डोर।
आशा की संभावन,कोई ओर न छोर।।
कोई ओर न छोर,दीप आशा का जगमग।
चलें आशपथ सदा,कदम न होते डगमग।।
आशा है संसार,खिले सब कलियाँ मन की।
आश और विश्वास,सहारा नव जीवन की।।

उड़ना

उड़ना पंख पसारके,नभमण्डल की ओर।
जैसे उड़े पतंग नभ,थाम सूत्रिका डोर।।
थाम सूत्रिका डोर,गगन की सैर सुहावन।
खग करते नीरव नभ में,श्रुति कलरव पावन।।
ईश आश की डोर थाम,प्रभुवर से जुड़ना।
मुड़ना पीछे कभी नहीं,अम्बर में उड़ना।।
डा.मीना कौशल
[23/01 6:13 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
.           *कलम की सुगंध छंदशाला* 

.           कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

.              दिनांक - २३.०१.२०२०

कुण्डलियाँ (1) 
विषय-  *आशा*
चातक  सी  आशा  रखो, मत तुम त्यागो धीर।
स्वाति बिंदु सम लक्ष्य भी, निश्चित मान प्रवीर।
निश्चित   मान  प्रवीर, पिपासा  धारण   करले।
करो  परिश्रम  कर्म, जोश  तन मन  में  भरले।
शर्मा   बाबू   लाल, भूल मन   नाम   निराशा।
जाग्रत   सपने  देख, कर्म  कर  पूरित  आशा।
•.                  ••••••••••  
कुण्डलियाँ (2) 
विषय-   *उड़ना*
उड़ना देख  विहंग का, मन में  रहा विचार।
मन  ऊँचा  इनसे  उड़े,  मनुज  देह लाचार।
मनुज  देह  लाचार, चाह  है  नभ में जाना।
सूरज  तारे  चंद्र, पहुंच  कर कविता  गाना।
शर्मा  बाबू  लाल, नेह  बल  सबसे जुड़ना।
धरती पर  हो पाँव, नयन  मन ऊँचे उड़ना।
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रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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[23/01 6:17 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय  ----   *आशा , उड़ना*
दिनांक  --- 23.1.2020....

(65)              *आशा*

आशा ही आधार है , होता जीवन खास ।
मंजिल पाने के लिए , जब आशा हो पास ।
जब आशा हो पास , सदा संभाले रखना ।
मंजिल पाना खास , जीत तुमको है चखना ।
ऐसा कुछ मत सोंच , बोल अपनी ही भाषा ।
मिलता तब है जीत , पास होती है आशा ।।


(66)               *उड़ना*

उड़ना तितली ने सिखा , उड़ती है आकाश ।
सूरज से वह बोलती , भरो अपना प्रकाश ।
भरो अपना प्रकाश , रौशनी देते रहना ।
ऊर्जा है निज सूर्य , नहीं इसको कुछ कहना ।
कह कुमकुम कविराय , तोड़ना मत नित जुड़ना ।
हो जग का कल्याण , सदा आशा से उड़ना ।।



🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
       दिनांक  23.1.2020.....

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[23/01 6:18 PM] धनेश्वरी सोनी: शतकवीर कुण्डलिनी यां
    कलम की सुगंध
     गुरुवार
     23/1/2020
                     उड़ना

 पंछी उड़ना जानता, जाने गगन दूर।
 आश पंख लगा कर जब ,छूकर नभ मशहूर ।
 छूकर नभ मशहूर ,करता वही मनमानी ।
 घमंड रखता भाव ,करता तब परेशानी ।
 धीरज रखता साथ ,जीता जैसे वह दक्षी।
 कहती गुल सब सार ,आश रख उडता पंक्षी।

                     आशा
  मोती आशा की रखे,चुनकर सागर धार ।
 ममता की छाँव पर पल,माना जीवन सार।
 माना जीवन सार,कठिन है राहें दिखती ।
 पग पग चल चल धार,मिलेगी मंजिल लगती।
एक सुत्र में बाँध,एक जब माला होती।
गहरी सागर थाह ,खोजे सभी है मोती ।

      धनेश्वरी सोनी गुल बिलासपुर
[23/01 6:20 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक - 23/01/2020
दिन - गुरुवार
65 - कुण्डलिया (1)
विषय - आशा
**************
आशा की सीढ़ी पकड़ , चढ़ जाओ आकाश ।
होय निराशा दूर तब , फैले हृदय प्रकाश ।
फैले हृदय प्रकाश , सरल राहें बन जाती ।
छोटी छोटी आस , बड़ी खुशियाँ ले आती ।
कुंठा भागे दूर , बढ़े जीवन प्रत्याशा ।
अधर खिले मुस्कान , पूर्ण होती जब आशा ।।
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66 - कुण्डलिया (2)
विषय - उड़ान
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नारी तू नारायणी , अपना बल पहचान ।
कुरीतियों को लाँघ कर , भरना उच्च उड़ान ।
भरना उच्च उड़ान , बदल देगी तू दुनिया ।
तुझमें शक्ति अपार , नहीं कोमल सी मुनिया ।
आत्म शक्ति सामर्थ्य , भरा है साहस भारी ।
गगन रही है चूम , आज भारत की नारी ।।
********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★
[23/01 6:27 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंद शाला* 
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु 
          
            *(63) थाली* 

थाली पूजन की सजा,गौरी माता पूज।
सिया मुदित मन से चली,हिया राम की गूँज ।
हिया राम की गूँज, बसा नैनो में रामा।
करती गौरी ध्यान, हिया मन पूर्ण कामा।
बहे मधुर रसधार ,ह्रदय छवि मीह निराली।
पाना को वरदान, चली धर पूजन थाली ।
                *(64)बाती* 

बाती जिसे नित जला,करे द्वार उजियार।
जगती तल उजियार हो,करें सदा उपकार ।
करे सदा उपकार, जगत मे हो उजियारा।
नेक कामना चाह,मिटाता है अँधियारा ।
करें मधुर मनुहार, दीप बन देहरी थाती।
रहूँ दीप के संग,जलूँ नित बनकर बाती। 
   
                *(65)आशा* 

आशा अरु विश्वास की,नाजुक होती डोर।
तोड़े से टूटे नहीं,टूटे जुड़े न छोर।
टूटे जुड़े न छोर, गाँठ पडते ही देखा।
बाँध आस विश्वास, भरोसा गढ़ता लेखा।
कहती मधुर विचार, भरी मन नही निराशा ।
सुमति करें सब काज,सफल होवे तब आशा ।
              
              *(66)उड़ना*

उड़ना चाहे मन सदा, सात समुन्दर पार।
सच्चे सपने देखिए,सपना तब साकार। 
सपना तब साकार, म ला है खुशियाँ भारी।
अभिलाषा दो चार,रहे हर दिन ही जारी।
बात मधुर ये खास,तेज धारा मत बुड़ना।
गोता समझ लगाव,समझदारी ही उड़ना।


 *मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[23/01 6:37 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे

कुंडलियाँ

67. आशा

आशा जीवन के लिए, बहुत जरूरी तत्व।
जीवन के उत्साह में, इसका बहुत महत्व।।
इसका बहुत महत्व, प्रेरणा ये बन जाती।
यह एक नई स्फूर्ति, मनुज में है ले आती।।
कह अंकित कविराय,भगाती दूर निराशा।
जीवन को गतिमान, बनाती केवल आशा।।

68. उड़ना

उड़ना वो अब चाहती, अपने पंख पसार।
इस समाज ने कर दिया, था जिसको लाचार।
था जिसको लाचार, कदम बढ़ने से रोका।
मर्यादा के नाम, जिसे हरपल था टोका।।
कह अंकित कविराय,वही अब चाहे मुड़ना।
अपने पंख पसार, समय के संग संग उड़ना।।

----- राम लखन शर्मा ग्वालियर
[23/01 6:38 PM] कमल किशोर कमल: नमन मंच
23.01.2020
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु।
63-थाली

थाली व्यंजन से भरी,यही कहे सौ बार।
दो रोटी हों प्रेम की,हो जाता 
त्योहार।
हो जाता त्योहार,भूख क्षण भर में मिटती।
आती तृप्त डकार,खुशी का सरगम जपती।
कहे कमल कविराज,बाग का जैसा माली।
सींचे हरदम प्यार,चाहती हरदम थाली।
64-
बाती-

बाती से बाती करे,तेल दीप का संग।
तीनों जबसे मिल गये,भागा तिमिर कुरंग।
भागा तिमिर कुरंग,ज्योति का खुला पिटारा।
जगमग हो घर द्वार,यही हम सबका नारा।
कहे कमल कविराज,खुशी सब बाबा नाती।
खुलकर करते काम,रोशनी भरती बाती।

65-आशा
आशा अरु विश्वास से,जीती जाती जंग।
उसी दिशा में श्रम चले,उसी दिशा हर अंग।
उसी दिशा हर अंग,लक्ष्य सब छोटे लगते।
ऊर्जा रहे अपार,सफलता के पर लगते।
कहे कमल कविराज,काम की यह परिभाषा।
ले जुनून में ताज,बड़ी है तुझपे आशा।

66-उड़ान
मन मयूर भरने लगा,ऊँची बड़ी उड़ान।
दूर वहाँ जाना अभी,होता खत्म जहाँन।
होता खत्म जहाँन,कामना भाग चली है।
पूरा है विश्वास,जीतना फली -कली है।
कहे कमल कविराज,नाँचता है देशी तन।
पूरे हों अरमान,चाहता है न्यारा मन।

कवि-कमल किशोर "कमल"
        हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
[23/01 6:49 PM] चमेली कुर्रे सुवासिता: कलम की सुगंध छंदशाला 
*कुण्डलिया शतकवीर*

दिनांक- 23/01/2020
कुण्डलिया- ( *65*)
विषय - *आशा*
आशा में पीड़ा छिपी , कहें सभी विद्वान। 
अधिक रखे उम्मीद है , फिर भी हर इंसान।। 
फिर भी हर इंसान , सदा लालच में रहते ।
जीवन करते खत्म , मिले धोखा है कहते ।।
सुवासिता मन सोच , हुई क्यों खिन्न निराशा। 
जी ले जीवन आज , खत्म फिर मत कर आशा।।

कुण्डलिया -( *66*)
विषय - *उड़ना*
उडना गिरना ज़िन्दगी , रहे वक्त के साथ। 
मन में हो जब हौसला , मिले सफलता हाथ।। 
मिले सफलता हाथ , नही मिथ्या में रहना। 
काटे पर को लोग , यही पंछी का कहना। 
सुवासिता सुन बात , सदा तुम नभ से जुड़ना। 
लक्ष्य रहे तुम साध ,नही फिर गिरना उड़ना ।।

          🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[23/01 6:52 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु

(65)
विषय-आशा
आशा  सुंदर  है  बड़ी, जीवन  रक्षक  डोर।
इसी डोर से ही मिले, जीवन- पथ का छोर।
जीवन- पथ का छोर,मनुज कष्टों से बिखरा।
 कर आशा संचार ,पुनः सोना बन  निखरा।
जब छाये दुख-मेघ, भरी  मन  घोर निराशा।
 दुख के तम को चीर,भरे उमंग मन आशा।


(66)
विषय-उड़ना
सपना  देखो  खुद बढ़ो, रखो न कोई चाह।
 उड़ना खग खुद सीखते ,कौन बताता राह।
कौन  बताता राह ,स्वयं की  है  अभिलाषा ।
जो  देखे दिन-रात ,उन्हीं सपनों की आशा।
नभ में भरें उड़ान ,करके मन हर्षित अपना ।
जो  लेते हैं  ठान,  तभी  जी  पाते  सपना।

रचनाकार-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[23/01 6:53 PM] सरला सिंह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*

*23/01/2020*
*दिन - वीरवार*
विषय - आशा, उड़ना
*विधा-कुंडलियां*

*65-आशा*

आशा रखना तुम सदा, होना नहीं निराश।
आये दुख कोई कभी, डिगे नहीं विश्वास।
डिगे नहीं विश्वास,तभी तुम नाम करोगे।
अपने ही तुम साथ, सभी में आश भरोगे।
कहती सरला आज,छोड़ दो सभी निराशा।
ऊंची भरो उड़ान, लिए दृढ़ मनमें आशा।।

66-उड़ना 
 उड़ना सीधे क्षितिज तक,रखकर दृढ़ विश्वास।
 सबकुछ तेरे हाथ में,  रखकर  ऐसी  आस।
 रखकर ऐसी आस, बढ़ो तुम सबसे आगे।
 करना  ऐसे  काम, नींद  में  सोते  जागे।
 कहती सरला बात, नहीं तुम पथ से मुड़ना।
 धरती की क्या बात,चांद सूरज तक उड़ना।।

  *डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
  *दिल्ली*
[23/01 7:01 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु 
कुंडलियाँ -65
दिनांक-23-120

विषय -आशा

आशा जीवन ज्योति है, जन जन की पहचान, 
आशा बिन मानव लगे, पुतला काठ समान  l
 पुतला काठ समान,चाह जीवन का मिलता l
मिटता है संताप,फूल मन का है खिलता l
कहती सुनो सरोज,पूर्ण होती अभिलाषा l
रखो सदा विश्वास,  ज्योति जीवन है आशा

 
कुंडलियाँ -66
दिनांक -23-1-20

विषय -उड़ना

उड़ना चाहूँ पर लगा, पूर्ण करूँ अरमान l
घबराऊं ये सोच के, नहीं दिशा का ज्ञान l
नहीं दिशा का ज्ञान, राह में कांटे फैलेl
पग हों लहू लुहान, हाथ प्रभार के थैले
कहती सुनो सरोज, मुझे तो अब है मुड़ना 
ले आशा की डोर, गगन में चाहूँ उड़ना l

सरोज दुबे 
रायपुर छत्तीसगढ़ 
🙏🙏🙏🙏
[23/01 7:07 PM] कुसुम कोठारी: कमल की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
२३/१/२०२०
कुसुम कोठारी।

कुण्डलियाँ (६५)

विषय-आशा
लेकर आशा मन चला ,उड़ा दूसरे गाँव ।
जा बैठा उड़ कर वहाँ ,जहाँ सुखद सी छाँव ।
जहाँ सुखद सी छाँव , शांति का  मोहक डेरा ।
टूटी झूठी साध , कल्पना भ्रम था मेरा ।
कहे कुसुम हो हर्ष , हर्ष मिलता सुख देकर ।
मनुज बाँट तू मोद  , कौन जाता कुछ लेकर ।।

विषय-उड़ना(६६)

उड़ना मेरे लाडले , नभ के बनना भाम ।
हिम्मत मन में हो अगर  ,संभव हो सब काम।
संभव हो सब काम ,नही पथ में तू रुकना ।
मन में दृढ़ विश्वास , व्यर्थ का कभी न झुकना।
कहे कुसुम ये युद्ध , धैर्य धारण कर लड़ना ।
नीव सदा रख ठोस , गगन तक ऊंचा उड़ना ।

कुसुम कोठारी
[23/01 7:15 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध
 शतक वीर हेतु कुंडलिया
23/01/2020

आशा (65)

आशा अरु विश्वास पे, टिका हुआ संसार।
 करना अपने मीत से, सदा कुशल व्यवहार।
 सदा कुशल व्यवहार, कभी भी दिल ना तोड़ो।
 करने अच्छे काम ,सदा ही खुद को मोड़ो।
 कह राधेगोपाल, करो मत कभी तमाशा।
 जीवन  हो खुशहाल, ईश से करना आशा।।

 उड़ना(66)

उड़ना सब हैं चाहते, बिना पंख के आज।
 सपने में ही कर रहे , हैं सब अपने काज।।
 हैं सब अपने काज,कभी धरती मत छोड़ो।
कर लो दिल पर राज, मीत से मुख मत मोड़ो।
कह राधेगोपाल, नहीं है अच्छा मुड़ना।
 बिना पंख के आज, चाहते हैं सब उड़ना।।

 राधातिवारी
"राधेगोपाल"
 खटीमा 
उधम सिंह नगर
 उत्तराखंड
[23/01 8:01 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला 

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

दिनांक - 23/01/2020

कुण्डलिया (65) 
विषय- आशा
===========

आशा से  सब  काम हों, यही  शक्ति का पुञ्ज l
जीवन जीना अति सरल, सुरभित होता कुञ्ज ll
सुरभित  होता  कुञ्ज, सफलता  गले  लगाती l
नव   उमंग,  उत्साह, हजारों   खुशियाँ   लाती ll
कह  'माधव कविराय', फटकिये   दूर   निराशा l
चतुर्मुखी    आनन्द, सदा   ही   रखिये  आशा ll

कुण्डलिया (66) 
विषय- उड़ना
===========
उड़ना   पक्षी   गगन  में, मत   खोना   विश्वास I
तेरे  ही  पर  साथ  दें, जब  तक  तन  में  श्वास ll
जब तक  तन में  श्वास, पराश्रित कभी न रहना l
करते   रहना   कर्म,  पराभव  कभी  न  सहना ll
कह  'माधव कविराय', नहीं  पथ से तुम मुड़ना l
भूल असम्भव शब्द,सतत मञ्जिल तक उड़ना ll

रचनाकार का नाम-
           सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
                        महोबा (उ.प्र.)
[23/01 8:06 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': कुँडलिया शतकवीर हेतु

53 ).  तपती

तपती धरती कह रही , कौन सुने अब पीर ।
जल बिन प्यासी हो रही , सूख रहे दृग नीर ।।
सूख रहे दृग नीर , मेघ अब जल बरसाओ ।
होती  अवनि अधीर , तरस तो तुम कुछ खाओ ।।
कहे "धरा" कर जोड़ , रहेगी कब तक सहती ।
रक्षा कर कांतार ,  बचा लो धरती तपती।। 


54).  धरती

सारी धरती झूमती , रंगों का त्यौहार ।
नीली पीली फागुनी , छायी छटा बहार ।।
छायी छटा बहार , रंग से निखरे  होली ।
चलती फाग बयार , गली में घूमे टोली‌ ।।
मन से मन का मेल, रीत है जग से न्यारी ।
हुआ मस्त सब *लोक* , *लोक* अरु वसुधा सारी।।

लोक = संसार/जन


धनेश्वरी देवांगन धरा
रायगढ़, छत्तीसगढ़
[23/01 8:08 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': कुँडलिया शतकवीर हेतु


55)  मेरा

प्यारा जग से जो लगे ,मेरा राष्ट्र महान ।
वंदन भारत भूमि को , मेरा है अभिमान ।।
मेरा है अभिमान , पखारे सागर जिसको ।
पावन गंगा धार , नमन है मेरा उसको ।।
सुनो "धरा" की बात  ,तिरंगा लगता न्यारा।
संस्कृति सबसे भिन्न, देश मेरा अति प्यारा।।

56)   सबका 

सबका मालिक एक है , समझे सबका मर्म ।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख हो , चाहे कोई धर्म ।।
चाहे कोई धर्म , ईश ही भाग्य विधाता ।
जग के पालनहार   ,सृष्टि के वो निर्माता।
कहे "धरा" कर जोड़ , सुखी होवे हर तबका।
प्रभु मेरे करतार, भलाई करना सबका ।।


धनेश्वरी देवांगन धरा
रायगढ़, छत्तीसगढ़
[23/01 8:19 PM] अभिलाषा चौहान: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर हेतु
कुण्डलिया(६५)
विषय-आशा

आशा की किरणें सदा,मन में करें प्रकाश।
खुशियाँ जीवन में रहें,सबकुछ होता पास।
सबकुछ होता पास,सफल जीवन हो जाता।
मन में जगती आस,मान जीवन में पाता।
कहती अभि निज बात,रखो तुम दूर निराशा।
मन में हो उत्साह,सजग हो मन में आशा।

कुण्डलिया(६६)
विषय-उड़ना

चाहें उड़ना बेटियाँ,अपने पंख पसार।
घर-आँगन रोशन करें,बने गले का हार।
बने गले का हार,खिलें ये कोमल कलियाँ।
करना सार सम्हाल,जोड़ती जीवन कड़ियाँ।
कहती अभि निज बात ,सरल हो इनकी राहें।
देना इनका साथ,अगर ये उड़ना चाहें।

रचनाकार-अभिलाषा चौहान
[23/01 8:20 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध शतकवीर प्रतियोगिता कुंडलियां
23/1/2020/गुरुवार

(65)आशा

  आशा ही संसार में ,जीने का आधार।
   आस टूटते ही लगे ,जीवन है बेकार।
 जीवन है बेकार,     यहाँ क्या करना जी के।
मन   में  हो विश्वास, जियेगे हम जी भर के।
कह प्रमिला कविराय,  न मन में भरो निराशा।
 मन में रख विश्वास, होय हर 
पूरण आशा।। 

(66)उड़ना
      उड़ना  जब आकाश में ,  दोनो पंख पसार।
  याद वतन रखना सदा, भूल न जाना यार।
 भूल न जाना यार,   देश की अपने माटी।
 खिलते जहां गुलाब, वही है केशर घाटी।
 कह प्रमिला कविराय,   नही आपस में लड़ना।
  लेकर वायुयान,  सदा आकाश में उड़ना।।

 प्रमिला पान्डेय
[23/01 8:26 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
23/01/2020::वीरवार

आशा
पतंग सा जीवन मिला, कर्तव्यों की डोर।
आशा बन आई हवा, छू लेगी नभ छोर।।
छू लेगी नभ छोर, तान के रखना डोरी।
अगर खा गई झोल, कटेगी जोरा-जोरी।।
जीवन का यह सत्य, बने जब जब तरंग सा।
आशा देती  हवा, उड़े जीवन पतंग सा।।


उड़ना--
उड़ना चाहा जब कभी, फँसे मोह के फंद।
त्रिशनाएँ आ सामने, करने लगतीं द्वंद।।
करने लगतीं द्वंद, मचातीं मन में हलचल।।
बढ़ जाते उस ओर, जहाँ होती है दलदल।।
घबरा कर सब यार,चाहते हैं फिर मुड़ना।।
कट जाते हैं पँख, रहे मुश्किल फिर उड़ना।।

        रजनी रामदेव
         न्यू दिल्ली
[23/01 8:42 PM] नीतू ठाकुर 'विदुषी': *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर सम्मान हेतु*

*दिनांक २3/०१/२०२०*

*विषय *थाली*
भोजन से थाली भरी, माता देखे राह।
बालक खाएं प्रेम से, बस इतनी सी चाह।।
बस इतनी सी चाह, नेह के बंधन जोड़े।
करती जतन हजार, नही एकाकी छोड़े।।
बच्चे घर से दूर  , भागते कितने योजन।
माता का आशीष , नही मिलता अब भोजन।।

*विषय:-बाती*

बाती सँग दीपक जले, करते तम का नाश।
अंत समय तक साथ दे  , कर्म बना है पाश।।
कर्म बना है पाश , नेक उद्देश्य सिखाता।
करते जग कल्याण, धर्म की राह दिखाता।।
सच्ची निष्ठा सीख, नही आदत यह जाती।
रहते हरदम साथ, मीत बन दीपक बाती।।

*विषय-आशा*

आशा जिस मन में भरी,कभी न माने हार।
हर विपदा को काटती, जीते यह संसार।।
जीते यह संसार, विजय का डंका बाजे।
मन का है श्रृंगार, प्रेम रस उसपर साजे।।
रहे वहम से दूर, बोलते मीठी भाषा।
उपजे नव विश्वास, जगे जब मन में आशा।।

*विषय-उड़ना*

पक्षी नन्हा सा मगर , नापे वो आकाश।
गिर गिर उड़ना सीखता , खुद पर है विश्वास।।
खुद पर है विश्वास , नापता कितने योजन।
मांगे कभी न भीख , ढूँढता अपना भोजन।।
पाप पुण्य को भूल, मारते उनको भक्षी।
करता रहा पुकार,अंत तक घायल पक्षी।।

*नीतू ठाकुर 'विदुषी'*
[23/01 8:42 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर 
दिनाँक २३/०१/२०

(६५) आशा

आशा की महिमा बड़ी, भरे चित्त उत्साह।
बीहड़ वन के बीच भी, प्रकट दिखाती राह।।
प्रकट दिखाती राह, घने तमस को छाँटती।
कहते कपि दृढ वाक, सिया के भ्रम को काटती।।
मन से अपने, मात, भगा भय-भ्रांत निराशा। 
भरो भव्य शुभ भाव, नहीं हत हो तव आशा।।

(६६) उड़ना 

उड़ना पंछी भोर के, जाना वनी कुटीर।
रहते मेरे राम हैं, जहाँ नदी के तीर।।
जहाँ नदी के तीर, करें ऋषियों की सेवा।
उठ कर पहले प्रात, मनाएं निज कुल देवा।।
छू कर उनका हाथ, दक्षिण नभ को तुम मुड़ना।
करती सिया विलाप, दिखा मम दिश, खग, उड़ना।

गीतांजलि
[23/01 8:48 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद 
आशा 65

23-12-2020
(65) आशा

आशा अरु विस्वास की, रखें डोर हम थाम ।
घिरे निराशा तो सदा, बिगड़े बनते काम ।।
बिगड़े बनते काम, अटल विस्वास सँजोए।
आगे कदम बढ़ाय,कभी थक हार न रोए।।
कभी न हो कमजोर, घेर ले कभी निराशा ।
ले हिम्मत से काम, जगा कर मन में आशा ।।

(66) उड़ना 

उड़ना मेरी लाड़ली, ऐसा करना काम ।
सभी क्षेत्र में हो कदम, जगा आज तू नाम।।  
जगा आज तू नाम, रोक मत पाए कोई ।
बेड़ी टूटी पाँव, तलक कल थी तू रोई ।
दुर्गा चंडी रूप,धार कर बातें करना ।
दुनिया कहती देख, तुझे है अब तो उड़ना ।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[23/01 8:49 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध शाला, 
 प्रणाम।( 22.1.2020) 
 कल की कुंडलियांँ आज भेज रही हूँ। 
 कृपया समीक्षा करें।
 कुंडलिया क्र६७
 विषय थाली।
 थाली मेरे देह की, सजी रही दिन रात।
  सज धज सब सूनी रही,थी आने की बात।। 
 थीआने की बात,सजन अब तक नहीं आये। 
 थकने लगते नैन, जिया जैसे अकुलाये।
  कमल बिताई उम्र, राह तकती तुम खाली। 
 बुझने लगता दीप,फूल मुरझाये थाली।। 

 कुंडलियां क्रमांक ६८
 विषय_ बाती
 बाती बन जलती रही,साजन मैं दिन रैन।
 तेल आँसू का बना,लूट गए तुम चैन। 
 लूट गये तुम चैन, तड़प बिरहा की पाली।
 किया समर्पण आप,जींद अब लगती गाली। 
 कहे कमल यह शूल,सखी कैसे सह पाती ।
 चलो यहीं सब भूल,जलो मत बन कर बाती।। 
कृपया समिक्षा करें।
[23/01 8:57 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: समीक्षा 🙏🙏ऐसे लिखो🙏🙏


शतकवीर कुण्डलिनी यां
    कलम की सुगंध
     गुरुवार
     23/1/2020
                     उड़ना

 पंछी उड़ना जानता, जाने गगन सुदूर।
 आश पंख जब  है लगे, छूकर नभ मशहूर ।
 छूकर नभ मशहूर ,करेगा वह मनमानी ।
 रखता भाव घमंड,,करे तब आनाकानी ।
 धीरज रखता साथ ,जीत जैसे वह दक्षी।
 कहती गुल सब सार ,आश रख उडता पंक्षी।

                     आशा
  मोती आशा की रखे,चुनकर सागर धार ।
 ममता मीठी छाँव पर,माना जीवन सार।
 माना जीवन सार,कठिन है राहें दिखती ।
 पग पग चल चल धार,मिलेगी मंजिल लगती।
एक सूत्र में बाँध,एक जब माला होती।
गहरी सागर थाह ,खोजते सब है मोती ।

      धनेश्वरी सोनी गुल बिलासपुर



इस तरह लिखिए गाइये लिखिए


🙏🙏🙏सादर🙏🙏
[23/01 8:58 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध 
कुंडलियाँ शतक वीर हेतु
 दिनांक 23 /01/ 2020
 विषय
 आशा

आशा तुमसे है मुझे ,पूरा पढ़ लो पाठ।
बहुत कठिन है साधना, मन में भर लो गाँठ।।
मन में भर लो गाँठ, परीक्षा की अँगड़ाई ।
कुछ न सुहाता बाद, दिखे है सिर्फ पढ़ाई।।
कहे 'निरंतर' आज, कभी फेंको प्रभु पाशा।
श्रम कर ऐसा खास, पूर्ण हो सबकी आशा।।

उड़ना

उड़ना है आकाश में,डोर तुम्हारे हाथ।
उतनी ही तुम ढील दो,बना रहे यह साथ।।
बना रहे यह साथ,नहीं अपनी मनमानी।
करते हो तुम नाथ, कभी हरकत बचकानी।।
कहे 'निरंतर'आज,नहीं पीछे है मुड़ना।
रहे सदा ही चाह,गगन में ऊँची उड़ना।।

अर्चना पाठक 'निरंतर'
[23/01 9:01 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
दिनांक-22-01-020
63
विषय-थाली

थाली चाँदी की रखी, या केले का पात।
जो भोजन से सज गया, वही अनूठी बात।
वही अनूठी बात, इसे निर्धन ही समझे।
देते फेंक अनाज, धनिक सम्मान में उलझे।।
माँगे रोटी एक, उसे तो मिलती गाली।
कुड़ेदान सजा, देखती रह गई थाली।।




64
विषय-बाती

दीपक पात्र व्यर्थ है, बिन बाती के मान।
उजियारा फैला रही, निज तन का दे दान।।
निज तन का दे दान, नहीं इसमे है शंका।
नहीं चाहती मान, बजे, गौरव का डंका।।
इससे हम लें सीख, बनी सेवा की सूचक।
बाती देती साथ, तभी इठलाता दीपक।।


65
विषय-आशा

आशा का उर तेल  है, बाती का विश्वास।
जीवन में फिर हो रहा, नित नव शुभ्र प्रकाश।।
नित नव शुभ्र प्रकाश, सोच की सुन्दर सीमा।
स्वच्छ सरल व्यवहार, सृजित हो मोहक प्रतिमा।।
संवेदना अपार, बोलें प्रेम की भाषा।।
गीता की सुन बात, हृदय से लुप्त निराशा।।

66
विषय-उड़ना

कल्पना के पंख हों,उड़ना है आसान।
कब कोरी बातें बनीं, जीवन की मुस्कान।।
जीवन की मुस्कान, सत्य की सजती मूरत।
विश्व सुगढ़ निर्माण, यदि हो प्रयास वेगववत।।
सबका हो सहयोग, सजे सत्कर्म अल्पना।
जग अनुपम उद्यान, यही सुहानी कल्पना।।


सादर प्रस्तुत 🙏🙏
गीता द्विवेदी
[23/01 9:06 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कुंडलियाँ शतकवीर सम्मान हेतु*
*कलम की सुगंध छंदशाला*

विषय:- *आशा*

आशा दम है तोड़ती, मन भी हुआ उदास |
धीरे-धीरे बस गया, मेरे उर में त्रास |
मेरे उर में त्रास, तमाशा है यह जीवन |
सपने टूटे हाय, खुली घावों की सींवन |
कह विदेह कविराय, पले अब सदा निराशा |
अधर हुए हैं मौन,तोड़ती दम है आशा ||

*विषय:-उड़ना*

उड़ना कब आसान है, कहना बहु आसान |
उड़ने के हित चाहिए, कितना सकल वितान |
कितना सकल वितान, प्रभो की माया न्यारी |
टूट गया उत्साह, छली गई लाडो प्यारी |
कह विदेह कविराय, बटोही पीछे मुड़ना |
बिटिया देखूँ राह , अरे तुम सच में उड़ना ||

*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा, ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
[23/01 9:09 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: संशोधित
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•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
.           *कलम की सुगंध छंदशाला* 

.           कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

.              दिनांक - २३.०१.२०२०

कुण्डलियाँ (1) 
विषय-  *आशा*
चातक  सी  आशा  रखो, मत तुम त्यागो धीर।
स्वाति बिंदु सम लक्ष्य भी, निश्चित मान प्रवीर।
निश्चित   मान  प्रवीर, पिपासा  धारण   करले।
करो  परिश्रम  कर्म, जोश  तन मन  में  भरले।
शर्मा   बाबू   लाल, भूल मन   नाम   निराशा।
जाग्रत   सपने  देख, कर्म  कर  पूरित  आशा।
•.                  ••••••••••  
कुण्डलियाँ (2) 
विषय-   *उड़ना*
उड़ना देख  विहंग का, मन में  रहा विचार।
मन  ऊँचा  इनसे  उड़े,  मनुज  देह लाचार।
मनुज  देह  लाचार, चाह  है  नभ में जाना।
सूरज  तारे  चंद्र, पहुँच  कर कविता  गाना।
शर्मा  बाबू  लाल, नेह  बल  सबसे जुड़ना।
धरती पर  हो पाँव, नयन  मन ऊँचे उड़ना।
•.                     •••••••••
रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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[23/01 9:10 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध छंद शाला.....कलम शतकवीर 
हेतु
★★★★★★★★★★★☆★★★★★                    
          *विषय.....आशा*
            विधा........कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★★
आशा मन की बाँध लो,नेक करो तुम काज।
तन  उमंग  से  हो भरा,होगा  सर  पर ताज।।
होगा  सर  पर  ताज,मिलेगी सारी खुशियाँ।
जीवन  हो  अनुराग ,कहे राधा की सखियाँ।।
कहता कवि श्रीवास,सुनो  माधव की भाषा।
मिलता  सत आचार, पूर्ण हो सबकी आशा।।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
          *विषय.....उड़ना*
            विधा........कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★★
तनया उड़ना चाहती,लिए कलम धर हाथ।
भावी आशा के तले,मिलता सबका साथ।।
मिलता सबका साथ,रखें वह मंजिल प्यारी।
सुंदर  सपना  आज ,करें सब आशा सारी।।
कहता कवि श्रीवास,नेक धैर्य पथ जुड़ना।
कर्म करो तुम खास,उच्च पथ पर है उड़ना।।
★★★★★★★★★★★★★★★★★

         .*विषय.......थाली*
            विधा........कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★★
लागे थाली आसमाँ , व्योम  पिण्ड सौगात।
चंदा  सूरज  की  चमक, चमके  तारे  रात।।
चमके  तारे  रात ,  कमी  है  आभा  वामन।
नोवा  सुपर  विशाल,बनी आकाशी तापन।।
कहता कवि श्रीवास,भोर छवि शोभा जागे।
तारामंडल  है  खास,सजा सा  मोती लागे।।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
          .*विषय........बाती*
             विधा.........कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★★
बाती दीपक मिल जलें,करता तम उजियार।
रौनक सारा  जग  करें ,नंदन  कुल  आधार।।
नंदन  कुल  आधार ,बना घर का मन मोहन।
करता नित दिन काज,सजे सुत जैसे तोरण।।
कहता कवि श्रीवास,लाल हो शुभ दिन राती।
भावे  नंद  किशोर ,  सखा  है  दीपक  बाती।।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[23/01 9:12 PM] पाखी जैन: *शतकवीर हेतु कुण्डलिया*
*19/01/2020* और *20/01/2020*
की शेष कुण्डलिया
समीक्षार्थ 🙏🏻🙏🏻
57--
*आगे*
आगे आगे तुम चलो,पीछे बीती बात ।
बातों बातों में कहीं,बीत न जाए रात।
बीत न जाए रात,बात प्यारी सी कर लो ।
प्यार नहीं है खेल,कुछ सपने आज बुन लो।
ये देखो तुम आज,समय है सरपट भागे।
पाखी गुजरी रात,चलो साथी ,तुम आगे ।

58--
*मौसम*
आया मौसम प्यार का,बदले रूप हजार ।
प्यार भरी तकरार की,चले ठंडी फुहार ।
चले ठंडी फुहार,याद तुम्हारी आती।
जलता कैसै दीप,अगर पास न हो बाती।
पाखी मत यूँ रूठ, सजन को दूरी न भाया ।
लेकर रूप हजार,प्यार का मौसम आया।

59-- *जाना*
जाना नहीं मर्म यहाँ,होती क्या है जात।
बड़े बुजुर्ग सभी वहाँ,कहते थे यह बात।
कहते थे यह बात,तथ्य पर,सभी छिपाते।
बात कहाँ आसान,यही हमें है बताते।
रहना पाखी दूर,यही मन अब है माना।
जात पात को भूल,हृदय ने यह है जाना।

60-- *करना*
करना वह जो मन कहे,चलना अपनी राह ।
दुनिया से डरना नहीं,जीना जैसे चाह ।
जीना ,जैसे चाह,हो चाहत सभी पूरी ।
बाकी छूटे काज,रहे न चाहत अधूरी ।
चलना सच की राह,सदा गलती से डरना।
पाखी अच्छे काम,सदा दिल से तुम करना।
मनोरमा जैन पाखी
[23/01 9:12 PM] प्रमिला पाण्डेय: बुधवार/22-1-2020

(63) बाती

 बाती जलती उजियार, मन में हो उजियार।
 सुख संपति बढ़ती सदा, रहे सभी में प्यार।
 रहे सभी में प्यार,  दुःख घर  कभी न आवे।
 पड़े वक्त वे वक्त, मिलत सबमें बट जावे।
 कह प्रमिला कविराय,धरो मन नेह की थाती
 रहे प्रकाशित हृदय , जले शुचि   जीवन बाती।।

(64)थाली

 धाली भरकर आ गये, भोजन औ पकवान।
मंद -मंद मुस्का रहे, दीन बंधु भगवान
दीन बंधु भगवान, सुदामा नयन ननिहारे
बहे अश्रु जलधार, नयन नैनन से टारे।
कह प्रमिला कविराय, थाली  न  कोई  खाली।
 अभी बहुत पकवान,  खड़ी ले भर -भर थाली।।
 प्रमिला पान्डेय
[23/01 9:14 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कलम की सुगंध छंदशाला, कुंडलिया शतक वीर आयोजन। दिन--गुरुवार,दिनांक--२३/०१/२०२०*
~~~~~~~~~~~~~
*६७--आशा*
~~~~~~~~
*आशा* है हमको यही, मन में है विश्वास।
होगा भारत विश्व गुरु, छायेगा उल्लास।
छायेगा उल्लास, दूर होगी बेकारी।
होंगे सब खुशहाल, मिटेगी मारा मारी। 
खुशियों की बरसात, न होगी कहीं निराशा।
भारत बने समृद्ध, यही है हम को आशा।।
~~~~~~~~
*६८--उड़ना*
~~~~~~~~
तोलो पहले पंख फिर, *उड़ना* है आसान।
मन में हो यदि हौसला, छू लोगे दिनमान।
छू लोगे दिनमान, शिथिलता कभी न आये।
रखो सदा उत्साह, तनिक  नैराश्य न छाये।
सदा रहो सन्नद्ध, गाँठ द्विविधा की खोलो।
मन में भर विश्वास, पंख फिर अपने तोलो।।
~~~~~~~~~
*विद्या भूषण मिश्र "भूषण"*
~~~~~~~~~~~~~~
[23/01 9:14 PM] सुशीला जोशी मुज़्ज़फर नगर: कलम की सुगंध कुंडलियाँ प्रतियोगिता 2019-2020

22-01-2020 

63--- *थाली*

पूजा की थाली सजी , धूप दीप के साथ 
चन्दन उर में भर गया , रोली टीका  माथ 
रोली टीका  माथ , फूल अर्पण चरणों  में 
देखा अक्षर रूप ,थाल के नव वर्णो में 
ठाकुर मेरे नाथ , हृदय बगिया के माली  
धूप और घृत दीप , सजी पूजा की थाली ।।

64--- *बाती*

जलती बाती दीप में , लिए नेह विश्वास 
काली जल जल पड़ रही , भर भर  साँस उसाँस 
भर भर साँस उसाँस , भगाती दूर तमस को 
मुँह से उगले धूम , दिखाती हृदय उमस को 
लुटा उजाला आज , मृत्यु से पल पल मिलती 
लिए नेह विश्वास , दीप में बाती जलती ।।

सुशीला जोशी 
मुजफ्फरनगर

1 comment:

  1. बहुत खूब सभी आदरणीयों को हार्दिक बधाईयाँ

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