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•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
. *कलम की सुगंध छंदशाला*
. कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
. दिनांक - १३.०१.२०२०
•. ••••••••••
कुण्डलियाँ . १
विषय- *कोना*
कोना धरती का नहीं, फिर भी कहते लोग!
देश राज्य का भी कहे, कोना भाष कुयोग!
कोना भाष कुयोग, कोण को कहते ज्ञानी!
न्यून,अधिक समकोण,कहें गणितज्ञ विधानी!
शर्मा बाबू लाल, जरूरी शुभ यह होना!
भींत भींत समकोण, कक्ष भवनों में कोना!
. •••••••••••
कुण्डलिया.....२
विषय... *मेला*
मेला मन के मेल का, रीति प्रीति का पंत!
सखी सहेली साथ में, मीत सनेही कंत!
मीत सनेही कंत, मिले मन की बतियाएँ!
खेलें खाएँ खूब, हँसे शिशु संग झुलाएँ!
शर्मा बाबू लाल, देख जन रेला ठेला!
परिजन पुरजन संग,चलें देखें सब मेला!
पंत~पथ
कंत~पति
•. •••••••••
रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
[13/01 6:12 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला प्रणाम। 🙏🏻
•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
. *कलम की सुगंध छंदशाला*
. कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
. दिनांक - १३.०१.२०२०
•. ••••••••••
कुण्डलियाँ . १
विषय- *कोना*
कोना धरती का नहीं, फिर भी कहते लोग!
देश राज्य का भी कहे, कोना भाष कुयोग!
कोना भाष कुयोग, कोण को कहते ज्ञानी!
न्यून,अधिक समकोण,कहें गणितज्ञ विधानी!
शर्मा बाबू लाल, जरूरी शुभ यह होना!
भींत भींत समकोण, कक्ष भवनों में कोना!
. •••••••••••
कुण्डलिया.....२
विषय... *मेला*
मेला मन के मेल का, रीति प्रीति का पंत!
सखी सहेली साथ में, मीत सनेही कंत!
मीत सनेही कंत, मिले मन की बतियाएँ!
खेलें खाएँ खूब, हँसे शिशु संग झुलाएँ!
शर्मा बाबू लाल, देख जन रेला ठेला!
परिजन पुरजन संग,चलें देखें सब मेला!
पंत~पथ
कंत~पति
•. •••••••••
रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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[13/01 6:12 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला प्रणाम। 🙏🏻
कुंडलियाँ शतक वीर के लिए
डॉ श्रीमती कमल वर्मा
कुंडलियाँ क्र69
विषय-कोना।
कोना सूना कर गया,बिटियाँ का विवाह।
भारत में यह रीत है,सभी चलें इस राह।।
सभी चलें इस राह, दिल घर सब करतें खाली,
धूंड तो मिले कहाँ, प्यार की मीठी बोली।
कमल दुखी क्यों होय,द्वार क्यों तेरा सूना?
अपनी बेटी मान,बहू से सजता कोना।
कुंडलियाँ क्र70
विषय- मेला।
मेला है यह जिंदगी, कई तरह के लोग।
अपना अपना भाग्य है,अपने है सब भोग।
अपने हैं सब भोग,सभी भुगते ही जातें।
हम करते जो कर्म, वही प्रारब्ध बनातें।
कमल कर्म ही साथ,सदा तू चले अकेला।
सभी अलग है गाँव, देख दुनियाँ है मेला।
[13/01 6:16 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय ---- *कोना , मेला*
दिनांक --- 13.1.2020....
(49) *कोना*
कोना कोना देश का , हरियाली अति दूर।
दिल में आकर है बसा , राष्ट्र प्रेम भरपूर ।
राष्ट्र प्रेम भरपूर , लिए मानव है पावन ।
कोना कोना देश , बसे मन ज्यों होें सावन ।
कह कुमकुम करजोरि , देश लगता है सोना ।
नित नित करो प्रणाम , प्यार बसता घर कोना ।।
(50) *मेला*
मेला देखन मैं चली , मिलता राह अनेक ।
संग में बच्चें चलते , ले संज्ञान विवेक ।
ले संज्ञान विवेक , देख मेला पीटे ताली ।
बच्चें हैं नादान , खाय भोजन की थाली ।
बच्चें झूला झूल , भूल ठेलत हैं ठेला ।
खुशियों की है बात , सभी जातें हैं मेला ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 13.1.2020......
________________________________________
[13/01 6:26 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुंडलिया शतकवीर हेतु*
दिनाँक- 12.1.2020
कुंडलिया (45) *आधा*
आधा भरा गिलास जो, खाली देखें लोग।
भरा हुआ कब देखते, यही नजर का रोग।।
यही नजर का रोग, खोट है सबको दिखती।
रह जाए जो शेष, वहीं पर नजरें टिकती।।
प्रांजलि छोटी सोच, प्रगति में बनती बाधा।
पूरा हो हर रोज, करोगे आधा-आधा।।
कुंडलिया(46) *यात्रा*
यात्रा पूरी कर चले, रोज करोड़ों लोग।
बीता जीवन रे मना, करले सद् उपयोग।।
करले सद् उपयोग, भलाई करते जाओ।
दया दान उपकार, पुण्य धन खूब कमाओ।।
प्रांजलि जाता साथ, घटे कब इसकी मात्रा।
लोग रखेंगे याद, चले कर पूरी यात्रा ।।
दिनाँक - 13.1.2020
कुंडलिया (47) *कोना*
कोना - कोना गेह का, हो जाता उजियार।
मिलकर खुशियाँ बाँटते, आते जब त्यौहार।।
आते जब त्यौहार, घरों में बने मिठाई।
भाँति-भाँति के भोज, रसोई भी इतराई।।
प्रांजलि माँ के हाथ, स्वाद है बड़ा सलोना।
बनते जब पकवान, महकता कोना- कोना।।
कुंडलिया (48) *मेला*
मेला सजता साल में, आता जब त्यौहार।
सजी दुकानें सैकड़ों, लगती भीड़ कतार।।
लगती भीड़ कतार, झूलते हैं हिंडोला।
जादू वाला खेल, देखते उड़न खटोला।।
हाथी घोड़ा शेर, सजा है सुंदर ठेला।।
बच्चों की हो मौज, गाँव में लगता मेला।।
_____पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि"
[13/01 6:29 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनांक 13 जनवरी 2020
कलम की सुगंध छंद शाला।
कुंडलियां शतकवीर हेतु।
विषय..... (47 ) *कोना*
कोना-कोना देश का , हो सुस्वच्छ संपन्न ।
सुखी स्वस्थ हों जन सभी, हो पैदा विपुलन्न ।।
हो पैदा विपुलन्न , चतुर्दिक हो खुशहाली ।
रहे न भूखा दीन , भरी हो भोजन-थाली ।।
" निगम" ह्रदय का खेत ,बीज निष्ठा का बोना।
मिले सुगंधि विशेष , सुभाषित कोना कोना ।।
विषय .... (48) --- *मेला*
मेला है संसार यह, चकाचौंध हर ओर।
सुने न कोई बात भी , मचा हुआ है शोर।।
मचा हुआ है शोर , यही मेले की माया ।
सब पाने का लोभ, सभी के ह्रदय समाया।।
कहे "निगम कविराय", सिखाए गुरु को चेला ।
छोड़ो जप-तप-ध्यान, देख लो यह जग मेला ।।
कलम से ..
कृष्ण मोहन निगम
सीतापुर , जिला सरगुजा
(छत्तीसगढ़)
[13/01 6:32 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु -
दिनाँक - 13.01.2020 (सोमवार )
(47)
विषय - कोना
कोना - कोना स्वर्ग हो, करना ऐसा काम।
हरियाली चहुँओर हो,महके सुमन तमाम।।
महके सुमन तमाम,सुगन्धित हो जग सारा।
सबसे सुन्दर देश, बने यह भारत प्यारा।।
कहे विनायक राज, बीज तुम ऐसा बोना।
सबके दिल में प्यार, बसे महके हर कोना।।
(48)
विषय - मेला
मेला यह संसार है, आते जाते लोग।
चार दिनों की जिंदगी, सहते सभी वियोग।
सहते सभी वियोग,एक दिन सबको जाना।
कर ले नेकी काज,यहाँ कुछ नाम कमाना।।
कहे विनायक राज, लगे हैं रेलम - पेला।
कठपुतली सी चाल, जमाना देखे मेला।।
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[13/01 6:33 PM] सरला सिंह: *13.01.2020 (सोमवार )*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन - सोमवार*
*दिनांक-13/01/20*
*विषय: कोना , मेला
*विधा कुण्डलियाँ*
*47-कोना*
कोना ही देदो मुझे,अपने चरणों में मात,
जीवन होगा सफल ये,जाने सब ये बात।
जाने सब ये बात , करें सब विनती तेरी।
माता रख दो हाथ,आज तुम सिरपर मेरी।
सरला कहती बात,उसे कब पड़ता रोना।
जाने सब हैं मिले , जिसे चरणों में कोना।।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
*48-मेला*
सारा जग मेला सदृश, दिवस लिए दिन चार।
माया का सब खेल है, मतकर दिन बेकार।
मतकर दिन बेकार, जरा कर कर्म कमाई।
बांटो खुशियां आज,करो जी जगत भलाई।
कहती सरला आज, बना ले जीवन न्यारा।
माया बंधन काट, करो सुखमय जग सारा।।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
[13/01 6:35 PM] अनिता सुधीर: कुण्डलिया शतकवीर
12.01.2020 (रविवार )
आधा
आधा बरतन है भरा ,या आधा है रिक्त।
रिक्त देख मन रिक्त हो ,सिक्त देख मन सिक्त ।
सिक्त देख मन सिक्त ,करें विचार हम जैसे
जैसे होंगें भाव ,सदा फल होंगे वैसे ।
वैसे हो अब कर्म ,नहीं हो कोई बाधा ।
बाधा होगी पार ,भरेगा बरतन आधा ।
यात्रा
यात्रा जीवन की चली ,मिले मात्र दिन चार ।
'चार लोग 'के फेर में,रार मची थी रार ।
रार मची थी रार,वही मिलता जो बोये ।
बोये पेड़ बबूल,कहाँ से अमिया होये।
होये जग में प्रीत,खुशी की बढ़ती मात्रा ।
मात्रा ही है राज ,समझ कर पूरी यात्रा ।
13.01.2020 (सोमवार )
कोना
कोना मन खाली रखें,इस पर करें विचार ।
जीवन झंझावात में ,लेता हमें सँवार ।
लेता हमें सँवार, सदा ये रक्षा करता ।
कैसे रखें विचार ,बताता हमको रहता।
कहती अनु ये बात ,कभी मत इसको खोना ।
रखे सुरक्षित राज ,सदा मन का ये कोना ।
मेला
मेला जीवन भर रहा ,लगी बहुत थी भीड़।
अंत समय ऐसा हुआ,बचा न अपना नीड़ ।
बचा न अपना नीड़ ,छले दुनिया मायावी ।
भूले वो ये बात ,यही पथ उनका भावी ।
कहती अनु ये बात ,रहा किस्मत का खेला ।
इस पर करो विचार ,बड़ा अद्भुत है मेला ।
अनिता सुधीर
[13/01 6:37 PM] +91 94241 55585: कलम की शुगंध
शतकवीर कुण्डलिनीयां हेतु रचना
सोमवार.....13/1/2020
मेला
माया मेला है लगा ,लगता जग जंजाल ।
गुड़िया झूला है झुले ,जादू करता कमाल।
जादू करता कमाल, तभी है दिखता राम ।
काजू पिस्ता आम ,पिया जो वही बदनाम।
देता है वह पैगाम ,घुस कभी है ना खाया।
गुल कह सच कहानी ,पडो नहीं मोह माया
कोना
चारों कोना में रखा, सैनिक प्रहरी शाम।
भयंकर तूफान है दिखा ,फूटता गोला आम।
फूटता गोला आम, इसे कोई ना भाता ।
रहे उधर सब भाग ,डरे है सारी जनता ।
गोली चलती खास, छिपे जो बचे किनारों।
कहती गुल वह सोच, देख वह छिपते चारों ।
धनेश्वरी सोनी गुल बिलासपुर
[13/01 6:38 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक - 13/01/2020
दिन - सोमवार
47 - कुण्डलिया (1)
विषय - कोना
**************
कोना घर में वह रहे ,पले जहाँ पर प्रीत ।
दुर्भावों को छोड़ कर ,बन जाएँ मनमीत ।
बन जाएँ मनमीत ,स्वर्ग सा घर हो अपना ।
बैठ एक ही ठाँव , सजाएँ सुंदर सपना ।
दर्द बाँटते लोग ,नहीं पड़ता फिर रोना ।
बहे प्रेम की धार ,बनाएँ ऐसा कोना ।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
48 - कुण्डलिया (2)
विषय - मेला
****************
मेला दुनिया का सजा ,भाँति भाँति व्यापार ।
सस्ते मँहगे मूल्य में ,मिलती वस्तु हजार ।
मिलती वस्तु हजार , मनुजता मिले कहाँ पर ।
खोज फिरा संसार , पता मिलता न यहाँ पर ।
है विचित्र बाजार , लगा है सुख दुख रेला ।
संयोजक भगवान , लगाए अद्भुत मेला ।।
*********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★
[13/01 6:45 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर हेतु
दिनाँक- 12/01/2020
*आधा*
मानव मन की गति बड़ी,चंचलता की खान।
खतरनाक होता बहुत,कच्चा आधा ज्ञान।
कच्चा आधा ज्ञान,जानकारी लो पूरी।
तब निर्णय लो नेक,तनिक तो रखे सबूरी।
कहती रुचि करजोड़,यही समझाये माधव।
करके सोच विचार,फैसला लेना मानव।
*यात्रा*
जीवन यात्रा हो सुगम,करिए निशदिन योग।
नियमित दिनचर्या रखें,स्वस्थ रहें सब लोग।
स्वस्थ रहें सब लोग,निरोगी है जब काया।
सहज करोगे काम,गेह बरसेगी माया।
कहती रुचि करजोड़, प्रफुल्लित रहता तन मन।
संयम जीवन सार,सुगम हो सबका जीवन।
*दिनाँक- 13/01/2020*
*कोना*
कोना कोना साफ हो,घर आँगन हर गाँव।
पेड़ लगाओ मिल सभी,पाओ शीतल छाँव।
पाओ शीतल छाँव,हरितिमा छाये धरणी।
करें प्रदूषण दूर,संतुलित पर्यावरणी।
कहती रुचि करजोड़,सुअवसर ये मत खोना।
बने शुद्ध प्रतिरूप,प्रकृति का कोना कोना।
*मेला*
मेला माघी पूर्णिमा,लगता है प्रतिवर्ष।
बच्चे सारे घूमते,खुशियाँ चरमोत्कर्ष।
खुशियाँ चरमोत्कर्ष,संग में झूला झूले ।
नाना सजे दुकान,खरीदी करना भूले।
कहती रुचि करजोड़,चाट गुपचुप का ठेला।
आनंदित परिवार,घूमकर देखो मेला।
✍ सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[13/01 6:48 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंद शाला*
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
13/1/2020
*(47)कोना*
मन कोना रीता पड़ा, मांगे दूसर ठौर।
अपन आप से खाय के, हाथ उठाएं कौर।
हाथ उठाएं कौर,पेट भरता है भाई।
कर्म करे जग तभी,मिले सुख मिलता साई।
कहती मधुर विचार, पसीना सच्चा सोना।
मानवता का भाव,भरो मन कोना कोना।
*(48)मेला*
आशा सावन सी सजी,जीवन मेला मान।
सतरंगी सपने बुने,अरमा सजे दुकान।
अरमा सजे दुकान,लगा है मन का मेला।
भाँति भाँति है रूप,जीव है एक अकेला।
कहती मधुर विचार,कभी मन लगे निराशा।
बदल नियति दांव,जगा दो नूतन आशा।
*मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[13/01 7:32 PM] चमेली कुर्रे सुवासिता: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलिया शतकवीर*
दिनांक- 13/01/2020
कुण्डलिया- ( *45*)
विषय - *कोना*
कोना में बूढ़े पढ़े , होकर के लाचार।
बोझिल जीवन है बना , सोचे मन हर बार।।
सोचे मन हर बार , युवा पीढ़ी क्यों भूली।
जलता अन्तः देख ,नशे में ये झूली।।
सुवासिता ये वृद्ध , खरा है सच्चा सोना।
समझो दे कर ध्यान , ज्ञान का कैसा कोना।।
कुण्डलिया -( *46*)
विषय - *मेला*
मेला मिथ्या का लगा , कहता है संसार।
छल का मानव आज तो ,करता है व्यापार।।
करता है व्यापार , झूठ की दे कर बोली ।
जोकड जैसे खेल , खेलते झूठी खोली।।
सुवासिता दे त्याग ,भीड़ का मतबन रेला।
प्रभु से नाता जोड़ , छोड़ मिथ्या का मेला ।।
🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[13/01 7:40 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
13/01/2020:: सोमवार
मेला
चंदा का मेला लगे, देखो बहुत कमाल।
जब जब करवा-चौथ को, सजता अम्बर भाल।।
सजता अम्बर भाल, हाथ ले थाल आरती।
हो छलनी की ओट, नारियाँ रहें ताकती।।
माँग रहीं सौभाग्य, उड़े मन बना परिंदा।
लगता बहुत कमाल, सुहागन को ये चंदा।।
कोना
उपवन जैसी जिंदगी, मिली हमें उपहार।
बेटे बेटी से रहे, हर कोना गुलजार।।
हर कोना गुलजार,प्यार से बना घरौंदा।
प्रभु देना वरदान, रहे ये सौंधा- सौंधा।।
रहे एकता पास, दूर हो सारी अनबन।
नाती पोतों साथ, खिले ये मेरा उपवन।।
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
[13/01 7:52 PM] कुसुम कोठारी: कमल की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
१३/१/२०
कुसुम कोठारी।
विषय-कोना
उपवन का कोना खिला , खिले बंसती फूल ,
बागों में झूले पड़े ,सजे सरोवर कूल ,
सजे सरोवर कूल , भ्रमित हो भँवरे डोले ,
निखरा-निखरा रूप ,धरा ने नव पट खोले ,
"कुसुम"मधुर संयोग,मधुप मौसम औ मधुबन,
फलती है सब आस , सरसता रहता उपवन ।
विषय-मेला
नीरव ,निशब्द है निशा ,नभ के भाल मयंक
मेला चन्द्रमरीचिका ,निर्दोष निष्कलंक ,
निर्दोष निष्कलंक , छटा मंजुल मनभावन ,
नवल नयनाभिराम ,रूप नैसर्गिक पावन ,
कहे कुसुम इस रात , झिंगुरों का है आरव ,
जुगनू चम-चम चाँद , चाँदनी सोई नीरव ।।
कुसुम कोठारी।
[13/01 8:03 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध
कुण्डलियाँ शतकवीर
दिनाँक--13/1/20
47
मेला
मेला दुनिया है बनी,मानव खेले खेल।
जीवन में मिटता दिखे,मानव मन का मेल।
मानव मन का मेल,बने हैं सब व्यापारी।
खोए सुख औ चैन,दुखी हो दुनिया सारी।
जाए अनु यह बीत,समय सुख दुख का रेला।
मानव जोकर रूप,बना जग सारा मेला।
अनुराधा चौहान
[13/01 8:05 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': कुँडलिया
43) आधा
आधा जीवन स्वप्न का ,आधी लगे यथार्थ ।
जगत नियम देखो यही , होय निहित भावार्थ ।।
होय निहित भावार्थ ,खेल लो जग का खेला ।
स्वप्न सत्य के मध्य , मची है रेलम पेला ।।
कहे "धरा" कर जोड़ , रहे मत कोई बाधा ।
लें जीवन आनंद , पूर्ण पायें या आधा ।।
44) यात्रा
यात्रा करते जन सभी,सुख दुख वाली राह ।
पाना मंजिल कठिन पर , होगी पूरी चाह ।।
होगी पूरी चाह , शूल से मत घबराना ।
होना नहीं अधीर, धीर से संभव पाना ।।
कहे "धरा" कर जोड़, मिलेगी निश्चित मात्रा ।
करे नेक सब कार्य , बनेगी सुखमय यात्रा ।
45) मेला
संस्कृति मेरे राष्ट्र की , सजता मेला गाँव ।
जन-जन में आनंद है, सुंदर सुखमय छाँव ।।
सुंदर सुखमय छाँव , नित्य दिन मेले लगते ।
भरकर खुशी उमंग , प्रीत मन में जो पलते ।।
मेले यहाँ अनेक , सजा सम जीवन संसृति।
सामाजिक हो भाव , बचायें अपनी संस्कृति ।
*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[13/01 8:06 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
दिनांक-13-01-020
47
विषय-कोना
कोना कोना गूँजता, कोयल मीठे बोल।
वन आमोद समा रहा, पी अमृत रस घोल।।
पी अमृत रस घोल, सजा ऋतुओं का राजा।
निखरा भूमि रूप, प्रफुल्लित् सकल समाजा।।
चाँदी सम है रात, लगे वासर भी सोना।
खिलते सुन्दर पुष्प, गमकता कोना कोना।।
48
विषय-मेला
आया पावन पर्व है, छाया है उत्साह।
मेला देवी धाम में, सुख आनंद अथाह।।
सुख आनंद अथाह, सभी नाचें दे ताली।
अंजनी के लाल, करें सबकी रखवाली।।
गरजे रह रह सिंह, मात का रूप लुभाया।
गीता है अभिभूत, नयन श्रद्धा जल आया।।
सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[13/01 8:07 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
दिनांक-13-01-020
47
विषय-कोना
कोना कोना गूँजता, कोयल मीठे बोल।
वन आमोद समा रहा, पी अमृत रस घोल।।
पी अमृत रस घोल, सजा ऋतुओं का राजा।
निखरा भूमि रूप, प्रफुल्लित् सकल समाजा।।
चाँदी सम है रात, लगे वासर भी सोना।
खिलते सुन्दर पुष्प, गमकता कोना कोना।।
48
विषय-मेला
आया पावन पर्व है, छाया है उत्साह।
मेला देवी धाम में, सुख आनंद अथाह।।
सुख आनंद अथाह, सभी नाचें दे ताली।
अंजनी के लाल, करें सबकी रखवाली।।
गरजे रह रह सिंह, मात का रूप लुभाया।
गीता है अभिभूत, नयन श्रद्धा जल आया।।
सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[13/01 8:14 PM] अनंत पुरोहित: कलम की सुगंध छंदशाला
कार्यक्रम कुण्डलियाँशतकवीर हेतु
अनंत पुरोहित 'अनंत'
दिन शनिवार 11.01.2020
44) आँगन
आँगन सूना हो गया, बेटा गया विदेश
छोड़ी भाषा देश की, बदला जब परिवेश
बदला जब परिवेश, वेश भूषा भी भूला
भूला माता प्रेम, पिता बाहों का झूला
कह अनंत कविराय, माँगती माता माँगन
चकाचौंध को छोड़, लौट आ अपने आँगन
दिन रविवार 12.01.2020
46) यात्रा
माया बंधन काट दो, दुनियाँ एक सराय
जीवन यात्रा जीव का, ज्ञानी देते राय
ज्ञानी देते राय, मोह जीवन का छोड़ो
धाता के सब हाथ , प्रीत जीवन से तोड़ो
कह अनंत कविराय, मरणधर्मा है काया
माया ममता मार, महा ठगिनी है माया
रचनाकार-
अनंत पुरोहित 'अनंत'
[13/01 8:14 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
सोमवार-13.01.2020
*47)कोना*
कोना कोना खिल उठा,जन्म लिया नवजात।
घर में लक्ष्मी आ गई,परम खुशी की बात।
परम खुशी की बात,बजी ढोलक शहनाई।
भैया करता नाच,बहन मेरी है आई।
सुन वन्दू हिय भाव,रूप निखरा ज्यूँ सोना।
बेटी कुल की शान,महकता घर का कोना।
*48)मेला*
मेला दुनिया में लगा,खेल रहे सब खेल।
जैसे नर मदारी हों,जिसकी कसी नकेल।
जिसकी कसी नकेल,कर रहे खूब तमाशा।
यदि दे देंगे ढील,मिलेगी हाथ हताशा।
समझ गई मैं आज,जगत का जीवन खेला।
पतझड़ कभी बहार,कभी खुशियों का मेला।।
*रचनाकार-वंदना सोलंकी*
*नई दिल्ली*
[13/01 8:28 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
*कुण्डलियाँ(४७)*
*विषय-कोना*
माता मत मारो मुझे,मैं तो तेरा अंश।
दिल का कोना दे मुझे,बनती तू क्यों कंस।
बनती तू क्यों कंस,समझती मुझे पराया।
बेटे को दे प्यार, मुझे कैसे ठुकराया।
कहती'अभि'निज बात,देख कर मन भर आता।
बेटी मरती कोख,निठुर जब बनती माता।
*कुण्डलियाँ(४८)*
*विषय-मेला*
मेला ये संसार है,मिलते कितने लोग।
कुछ चलते हैं साथ में,बनता ऐसा योग।
बनता ऐसा योग,लगें अपनों से ज्यादा।
संकट में दें साथ, निभाते हैं हर वादा।
कहती'अभि'निज बात,मनुज कब रहा अकेला।
जाता खाली हाथ,छोड़ दुनिया का मेला।
*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*
[13/01 8:29 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे
कुंडलियाँ
35. आधा
आधा मत छोड़ो कभी, पूर्ण करो हर काज।
सच्चे मन से अब करो, यह दृढ़ निश्चय आज।।
यह दृढ़ निश्चय आज, इसे मन से अपनाओ।
इस निश्चय को आप, कभी भी नहीं भुलाओ।।
कह अंकित कविराय, तोड देना हर बाधा।
लेकिन अपना कार्य, छोड़ना कभी न आधा।।
36. यात्रा
यात्रा जीवन की कठिन, पर न मानिये हार।
अंतर्मन से कीजिये, हर मुश्किल स्वीकार।।
हर मुश्किल स्वीकार, विजय उसपर है पाना।
मन मे दृढ़ विश्वास, लिए तुम कदम बढ़ाना।।
कह अंकित कविराय,भले हो कम ये मात्रा।
जारी रखिये किन्तु, हमेशा अपनी यात्रा।।
37. कोना
कोना कोना साफकर, मैल करो सब दूर।
पावनता परिवेश में, भरो आप भरपूर।।
भरो आप भरपूर, रहे न तम की छाया।
रखो आचरण शुद्ध, रखो निर्मल निज काया।।
कह अंकित कविराय,समय को कभी न खोना।
ऐसी भरो सुवास, महक जाए हर कोना।।
38. मेला
मेला में मिलते हमें, भूले भटके लोग।
बनता है पाकर उन्हें, ये अद्भुत संयोग।।
ये अद्भुत संयोग, प्रेम से गले लगाते।
मिलकर सबके साथ, सभी विह्वल हो जाते।।
कह अंकित कविराय, दृश्य होता अलबेला।
खुश हो जाते लोग, जानकर आया मेला।।
----- राम लखन शर्मा ग्वालियर
[13/01 8:29 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलिया शतक-वीर सम्मान। दिन-- सोमवार, दिनांक--१३/०१/२०२०.*
~~~~~~~~~~~~~
*४७--कोना*
~~~~~~~~~
कोना- कोना देश का, है खुशियों की खान।
फिर भी रोना रो रहे, कुछ कृतघ्न,नादान।
कुछ कृतघ्न,नादान, नित्य देते हैं गाली।
खाते जिसमें रोज, फोड़ते हैं वह थाली।
करते सुख का भोग, रात दिन फिर भी रोना।
जला रहे नादान, देश का कोना-कोना।।
~~~~~~~~~
*४८--मेला*
~~~~~~~~~
मेला है दिन चार का, यह नश्वर संसार।
सबसे मिल जुल कर रहो, आपस में हो प्यार।
आपस में हो प्यार, मोल तुम बैर न लेना।
करना सद्व्यवहार, सभी को खुशियाँ देना।
सब कुछ जाता छूट, नहीं जाता सँग धेला।
क्षणभंगुर संसार, और जीवन का मेला।।
~~~~~~~
*विद्या भूषण मिश्र "भूषण", बलिया, उत्तरप्रदेश।*
~~~~~~~~~~~~~~~~
[13/01 8:30 PM] महेंद्र कुमार बघेल: कलम की सुगंध
कुंडलिया शतक वीर हेतु :- 9/1 /2020
41.गागर
गागर में जल डाल दो,बुझे सभी का प्यास।
मिट्टी पात्र प्रयोग हो,ऐसा करो प्रयास।
ऐसा करो प्रयास,बचे सब काम कुम्हारी।
कभी मरे ना भूख, दूर हो इनकी बेगारी।
हस्त कला पहचान,काम को करो उजागर।
सबसे उत्तम पात्र, यही मिट्टी का गागर।।
42.सरिता
जल की सतत प्रवाह से, सरिता की पहचान ।
अन्न उगाने के लिए,समझ इसे वरदान।
समझ इसे वरदान,सभी का प्यास बुझाती।
सिंचित करके भूमि,यहाॅं हरियाली लाती।
कर सरिता का मान,सोचना है अब कल की।
अविरल बहे प्रवाह,महत्ता समझो जल की।।
11 /1/2020
43. गहरा
गहरा हो विश्वास सब, बंधु सखा के साथ।
सुख-दुख वाले काम में, मिले सभी का साथ।
मिले सभी का साथ, चलो कर्तव्य निभायें।
हर दुख में तत्काल,बीच अपनों को पायें।
करना सब उपयोग ,मिले जब समय सुनहरा।
बंधु सखा के साथ, भरोसा हो नित गहरा।।
44.ऑंगन
ऑंगन में प्रतिदिन जहाॅं, मिलते हैं परिवार।
सभी शिकायत दूर कर, करते सोच विचार।
करते सोच विचार,एक जुट सब हो जाते।
अपनापन का भाव,सभी के मन में लाते।
सोच समझ कर फर्ज,निभाते सबसे गिन गिन।
मिलते हैं परिवार, सदा आॅंगन में प्रतिदिन।।
महेंद्र कुमार बघेल
[13/01 8:38 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 13/01/2020
कुण्डलिया (47)
विषय- कोना
==========
कोना - कोना लाल है, थूका गुटका, पान I
सरकारी दफ्तर सभी, लगते कूड़ादान ll
लगते कूड़ादान, व्यसन जो भी नर करते l
थूकदान को छोड़, यहीं पिचकारी भरते ll
कह 'माधव कविराय',मनोवृति का ही रोना l
तम्बाकू उत्पाद, चबाकर रँगते कोना ll
कुण्डलिया (48)
विषय- मेला
==========
मेला को सजनी चली, सजधज सखियों संग I
चम चम चूनर चन्द्र सम, मदहोशी हर अंग ll
मदहोशी हर अंग, चले वह हिरणी जैसे l
बिन मणि के ज्यों व्याल, तड़पते लड़के ऐसे ll
कह 'माधव कविराय', वहीं पर रेलम रेला l
मिलने का नायाब, जगह भी होता मेला ll
रचनाकार का नाम-
सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
महोबा (उ.प्र.)
[13/01 8:39 PM] +91 99810 21076: कुण्डलियाँ 13/01/2020
मेला
कपड़ा जूता सब मिले,मेले को सब भाय।
चाट जलेबी स्वाद ले,पानी पूरी खाय।।
पानी पूरी खाय,रहे मालिक या चेला।
मौत कुआँ में भीड़,देख ले मानव मेला।।
आते पाकिट मार,करे कोई कुछ लफड़ा।
पुलिस रहे सब साथ,खरीदो चाहे कपड़ा।।
कोना
रखना खुश परिवार को,रहना मिलकर रोज।
करना ही मत भूल,एक साथ हो भोज।।
एक साथ हो भोज,मान ले सबका कहना।
करना सबसे प्रेम,दुःख आए तो सहना।।
घर का हो उपयोग,गलत बाते मत बकना।
हर कोना हो साफ,जगह पर सबको रखना।।
राजकिशोर धिरही
[13/01 8:45 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
13-1-2020
कोना
कोना दिल का है सदा,गिरधर तेरे नाम ।
मन मंदिर में हो बसे, जपती रहती नाम ।
जपती रहती नाम, मोहना मेरा प्यारा ।
गोकुल का गोपाल, है सारे जग से प्यारा ।
कहती मीरा श्याम,कभी तुम दूर न होना ।
रोम रोम में नाम, बसा तू दिल का कोना ।।
मेला
मेला है दिन चार यह, तरह तरह के लोग।
साधू संत फकीर सभी, मिल कर करते योग ।
मिल कर करते योग, रहे निरोग यह काया ।
राम भजन है सार, सताये कभी न माया ।
जाना सब कुछ छोड़, संग कब जाये धेला ।
कहती मीरा सोच, चार दिन का है मेला ।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[13/01 8:49 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
(47)
विषय-कोना
कोना भी घर का लगे,पारिजात की छाँव।
हमको अति प्यारा लगे ,अपना सुंदर गाँव।
अपना सुंदर गाँव, किसी प्रदेश में जाएँ।
सुन पुकार निज ग्राम, इसी कोने में आएँ
नहीं किसी का चाव, रजत हीरे या सोना।
करें याद दिन रात, वही प्यारा सा कोना।
(48)
विषय-मेला
मेला दुनिया का लगा, देख रहे सब लोग।
कई वस्तु ग्राहक कई, करते नये प्रयोग।
करते नये प्रयोग , दुकानें खूब सजाईं।
बिकते सपने खूब, लेने कामना आईं।
कह आशा निज बात ,चला है जीव अकेला।
उखड़ गईं दुकानें, छूटा है पीछे मेला।
रचनाकार-आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[13/01 8:49 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर
दिनांक १३/०१/२०
(४७) कोना
कोना विभिन्न एक था. दुर्ग कोट के बीच।
बजे बाँसुरी धर्म की, नहीं पाप की कीच।
नहीं पाप की कीच, सुने शुभ हरि का कीर्तन।
लंका में कर वास, भजें राम को विभीषण।
भोर किरण के संग, जपें प्रभु नाम सलोना।
कपि मन छाया मोद, देख यह पावन कोना।
(४८) मेला
मेला नगरी द्वारिका, सज धज घूमें लोग।
सुनते सुर संगीत के, पकते छप्पन भोग।
पकते छप्पन भोग, उड़ें पतंग लहराए।
दिनकर देवता आज, दिशा उत्तर को जाए।
जैसे तिल गुड़ मेल, मिले मुख मधु का रेला।
संग रुक्मिनी कान्ह, संक्रांति लखते मेला।
गीतांजलि ‘अनकही’
[13/01 8:58 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध छंदशाला........कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु..
★★★★★★★★★★★★★★★★★
*विषय..........मेला*
विधा...........कुण्डलियाँ
★★★★★ ★★★★★★★★★★★★
मेला खुशियों का लगें,उमड़े मन में भाव।
माता की जगरात में,आये दर्शन गांव।
आये दर्शन गांव,हाथ जोड़े दर माता।
गाये मंगल गीत,सभी मानुष मन भाता।
कहता है श्रीवास, बना जीवन का खेला।
पावे सब मनुहार,लगें खुशियों का मेला।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[13/01 9:07 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '
🙏🙏
47 ) कोना
***********
कोना - कोना चहकता , बिटिया चहकी जाय ।
बालपन की महकती , ख़ुशबू फैली भाय ।
ख़ुशबू फैली भाय , राज करे राजरानी ।
घर की है सिरमौर , सभी की रहे सुहानी ।।
बेटी रहे सुरक्षित , करे नहीं कभी टोना ।
बेटी घर की शान , जगमगाये हर कोना ।।
$$$$$$$$
48 ) मेला
**********
मेला मिलने का जहां , मिलते हैं सब लोग ।
जीवन यह छोटा लगे , रहे आनंद भोग ।।
रहे आनंद भोग , बड़े - छोटे सब आयें ।
चाट पकौड़ी सुनो , सभी ले ले कर खायें ।।
बच्चे झूला झूल , कहें जीवन का खेला ।
जोड़ें रिश्ते वहाँ , जहां मिलने का मेला ।।
&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
13.1.2020 , 8:13 पीएम पर रचित ।
%%%%%%%%
●●
🙏🙏 समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[13/01 9:20 PM] अमित साहू: कलम की सुगंध~कुण्डिलयाँ शतकवीर
47-कोना (13.01.2020)
कोना बनता है सहज, दीवारों का मेल।
बच्चे बहुधा खेलते, लुकाछिपी का खेल।।
लुकाछिपी का खेल, बैठकर एक किनारा।
कोने पर एकांत, खोलते खुशी पिटारा।।
कहे अमित कविराज, यहीं पर हँसना रोना।
रहता सबसे व्यस्त, नित्य ही घर का कोना।।
48-मेला
मेला मेलन की जगह, होता मेल मिलाप।
जमावड़ा लगता जहाँ, मधुर लगे पदचाप।।
मधुर लगे पदचाप, शोरगुल *हसिका* हलचल।
सहगामी सहचार, सभी जाते मेलास्थल।।
'अमित' नदी के तीर, खास पावन तिथि बेला।
निज साधन अनुसार, पहुँच जाते हैं मेला।।
*हसिका* = हँसी, ठट्ठा
कन्हैया साहू 'अमित'
[13/01 9:21 PM] शिवकुमारी शिवहरे: Title: आधा
Date: 13 Jan 2020
Note:
आधा जीवन खो दिया ,लिया न हरि का नाम।
लोभ मोह त्याग के, लेकर प्रभु का नाम।
लेकर प्रभु का नाम, तू प्रभु का ले सहारा।
प्रभु परम सुख धाम,सदा मिलेगा किनारा।
हरि का हाथ को थाम, नआये कोई बाधा।
प्रभु मे ध्यान लगाय,बचा है जीवन आधा
शिवकुमारी शिवहरे
Title: अनुपम
Date: 11 Jan 2020
Note:
अनुपम
सुंदर मधुरम है धरा ,अनुपम है आकाश।
सब रहते उसमे सदा,मिलता रहे प्रकाश।
मिलता रहे प्रकाश, चमकते चाँद सितारे।
अनुपम ये आकाश, सदा से चमके सारे।
नदियाँ बहती जाय,मिली है जाय समुदंर।
हरियाली है छाय, धरा है मधुरम सुदंर।
शिवकुमारी शिवहरे
[13/01 9:25 PM] पाखी जैन: शतकवीर हेतु कुण्डलिया
43 गहरा
गहरा सागर प्यार का,मिले न इसकी थाह।
जितना गहरा डूबता,उतनी बढ़ती चाह।
उतनी बढ़ती चाह, प्रेम सागर लहराता।
हृदय दीप जल जाय, न तूफाँ से घबराता।
कह पाखी शरमाय,प्रेम होता है बहरा।
रूठे यदि उर नेह,घाव लगता है गहरा।
मनोरमा जैन "पाखी"
44--
आँगन आँगन अब हैं वो कहाँ,मनते थे त्योहार
नये समय के रंग में,बदल चुके परिवार ।
बदल चुके परिवार ,रो रहीं अब मीनारें।
व्यथित हुये मन आज,व्यथित हैं सभी बहारें।
पाखी रहे उदास,हुआ मन बहुत अपावन।
बटे सभी परिवार,बँट गया घर का आंगन।
मनोरमा जैन"पाखी"
[13/01 9:35 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: संशोधित कुंडलियाँ कृपया इनका ही संज्ञान लें
*********
13.01.2020 (सोमवार )
47- कोना
*********
कोना-कोना महकता, जिस घर होता होम।
खुश रहते घर के सभी, छुयें प्रगति का व्योम।
छुयें प्रगति का व्योम, सदा खुशहाली रहती।
मंगल होते काज, प्रेम की सरिता बहती।
"अटल" वास्तु का ज्ञान, करे मिट्टी को सोना।
गंगाजल छिड़काव, शुद्ध करता हर कोना।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
48- मेला
**********
मेला भाता है तभी, जब जेबों में नोट।
अगर जेब खाली रहें, लगती दिल को चोट।
लगती दिल को चोट, दिखें दिन में भी सपने।
दूर-दूर वो रहें, जिन्हें हम समझें अपने।
"अटल" समय का दोष, मारता है वह ठेला।
अगर भरी हों जेब, मनाओ हर दिन मेला।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[13/01 9:39 PM] पाखी जैन: शतकवीर हेतु कुण्डलिया
43 गहरा
गहरा सागर प्यार का,मिले न इसकी थाह।
जितना गहरा डूबता,उतनी बढ़ती चाह।
उतनी बढ़ती चाह, प्रेम सागर लहराता।
हृदय दीप जल जाय, न तूफाँ से घबराता।
कह पाखी शरमाय,प्रेम होता है बहरा।
रूठे यदि उर नेह,घाव लगता है गहरा।
मनोरमा जैन "पाखी"
44--
आँगन
आँगन अब हैं वो कहाँ,मनते थे त्योहार
नये समय के रंग में,बदल चुके परिवार ।
बदल चुके परिवार ,रो रहीं अब मीनारें।
व्यथित हुये मन आज,व्यथित हैं सभी बहारें।
पाखी रहे उदास,हुआ मन बहुत अपावन।
बटे सभी परिवार,बँट गया घर का आंगन।
मनोरमा जैन"पाखी"
[13/01 9:42 PM] उमाकांत टैगोर: *कुण्डलिया शतकवीर हेतु*
*दिनाँक-05/01/20*
कुण्डलिया(35)
विषय-विजयी
डरना मत तुम हार से, कहलाओगे वीर।
विजयी होते हैं वही, जो रखते हैं धीर।।
जो रखते हैं धीर, वही आगे है बढ़ते।
जीवन का इतिहास, वही इक दिन है गढ़ते।।
छोड़ कर्म मैदान, पाँव पीछे मत करना।
रोड़े आये लाख, तनिक बिलकुल मत डरना।।
कुण्डलिया(36)
विषय-भारत
भारत मात पुकारती, कहती हमको आज।
रक्षा बेटी की करो, लुटे कभी मत लाज।।
लुटे कभी मत लाज, यही विनती है सबसे।
रोती हूँ मैं रोज, मुझे है पीड़ा कब से।।
ओछी कोई काम, करे जो ऐसी हरकत।
खींचो उसकी खाल, बता दो यह है भारत।।
*दिनाँक 06/01/20*
कुण्डलिया (37)
विषय- छाया
तेरी छाया हो प्रभो, हम चाहे क्या और।
इक तेरा आशीष औ, मिले चरण में ठौर।।
मिले चरण में ठौर, जमाने से क्या लेना।
देना यह वरदान, अगर मुझको है देना।।
फैली चारो ओर, जगत में झूठी माया।
विनती है करजोर, मिले बस तेरी छाया।।
कुण्डलिया(38)
विषय- निर्मल
छल से कोसो दूर हो, दूर रहे हर पाप।
निर्मल मन को राखिए, काम बनेंगे आप।।
काम बनेंगे आप, लोग तुमको भायेंगे।
कोई अपने छोड़, नहीं तुमको जायेंगे।।
होंगे सभी प्रसन्न, उठो पर धूमिल तल से।
होगा तब सत्कार, डरो हरदम ही छल से।।
रचनाकार- उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर(छ.ग.)
[13/01 9:48 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला प्रणाम।
कुंडलियाँ शतक वीर के लिए
डॉ श्रीमती कमल वर्मा
कुंडलियाँ क्र69
विषय-कोना।
कोना सूना कर गया,बेटी हुआ विवाह।
भारत में यह रीत है,सभी चले इस राह।।
सभी चलें इस राह, करें घर दिल सब खाली,
ढूंढ तो मिले कहाँ, प्यार की बोली आली।
कमल दुखी क्यों होय,द्वार क्यों तेरा सूना?
अपनी बेटी मान,बहू से सजता कोना।
कुंडलियाँ क्र70
विषय- मेला।
मेला है यह जिंदगी, कई तरह के लोग।
अपना अपना भाग्य है,अपने है सब भोग।
अपने हैं सब भोग,सभी भुगते ही जातें।
हम करते जो कर्म, वही प्रारब्ध बनातें।
कमल कर्म ही साथ,सदा तू चले अकेला।
सभी अलग है गाँव, देख दुनियाँ है मेला।
सुधार के बाद। 🙏🏻
[13/01 9:53 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध छंदशाला........कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु..
★★★★★★★★★★★★★★★★★
*विषय..........कोना*
विधा...........कुण्डलियाँ
★★★★★ ★★★★★★★★★★★★
मेरी प्यारी लाडली,छोड़ें अब घर द्वार।
शादी करके घर चली,बनी पिया की नार।
बनी पिया की नार,मान रखती सह सादर।
करती पालन काज,सदा करती वह आदर।
कहता है श्रीवास,बात कहती है न्यारी।
कोना महके द्वार, लाडली मेरी प्यारी।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
*कलम की सुगंध कुंडलियाँ प्रतियोगिता 2019-2020*
47-- *कोना*
कोना कोना छान कर , ढूंढ लिया घर बार
लेकिन फिर पाया नही ,नारायण का द्वार
नारायण का द्वार ,देखती फिरती वन में
कभी सन्त को ध्याऊँ , कभी फिर देखूँ मन में
पढ़कर वेद पुराण , सु संस्कृत अनुकृत होना
दशों दिशा ली ढूंढ, छान कर कोना कोना
48-- *मेला*
मेला जीवन चार दिन , देता है वो मान
मनुज समझ है बैठता , अपनी सच्ची शान
अपनी सच्ची शान , बना रहता अभिमानी
नए कर्म से रोज , गढे है अजब कहानी
जग की धक्कमपेल , दिखे है ठेलमठेला
देता झूठी शान , चार दिन जीवन का मेला ।।
सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर
अति सुन्दर कुण्डलियाँ संग्रह
ReplyDeleteमेरी 'राधेगोपाल' राधा तिवारी की कुंडलियां तो दिख ही नहीं रही है इसमें
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