Tuesday, 14 January 2020

कुण्डलियाँ छंद.... धागा, बिखरी

[14/01 2:35 PM] डॉ मीना कौशल: कोना

कोना कोना घूमते,मृदुमय कृष्ण कृपालु।
आनन हैं नवनीतमय,करते  दया दयालु।।
करते दया दयालु,सन्तजन के हितकारी।
गौ रक्षक प्रतिपाल, धर्म धारण  अवतारी।।
दमक रहे द्विनेत्र,वसन पीताम्बर सोना।
यशुमतिनन्दानन्द,विचरते कोना-कोना।।

मेला


मेला तीर्थ प्रयाग का,सलिला पुण्य तरंग।
हरण करें अवसाद सब,मन में भरें उमंग।।
मन में भरें उमंग,रंग हैं विविध भाँति के।
तीन लहर कल्लोल,त्रिवेणी दीप्ति कान्ति के।।
आज मगन मन हुआ,त्याग जंजाल झमेला।
विगत सकल कटु जाल,ध्यान हरषाते मेला ।।
डा.मीना कौशल
[14/01 6:06 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु- 
दिनाँक - 14.01.2020 (मंगलवार)
(49)
विषय - धागा

धागा  है ये  प्रेम का, रखना  इसे  संभाल।
टूटे कभी न  साथियों, चाहे जो भी हाल।।
चाहे   जो  भी  हाल, बचाना   है  मर्यादा।
प्यारा हो सम्बन्ध,कभी कम हो या ज्यादा।।
कहे विनायक राज, प्रेम में हो नहिँ बाधा।।
बिखरे कभी न फूल,बनाओ अच्छा धागा।।

(50)
विषय - बिखरी

बिखरी सी है जिंदगी,बिखरे बिखरे केश।
देखो तो इनको जरा,सुन्दरतम् है वेश।।
सुन्दरतम् है वेश,नाज नखरे हैं करती।
जब भी देखूँ रूप,हाय वो आहें भरती।।
कहे विनायक राज,चंद्र सी वो है निखरी।
केश घटा घनघोर,व्योम में देखो बिखरी।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"
[14/01 6:12 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे

कुंडलियाँ

39. धागा

धागा के बिन आपने, बाँध दिया ब्रह्माण्ड।
हे प्रभु उसपर आपका, इतना सफल कमाण्ड।।
इतना सफल कमाण्ड, सभी ग्रह बँधे हुए हैं।
बिना किसी आधार, हवा में सधे हुए हैं।।
कह अंकित कविराय, स्वर्ण के साथ सुहागा।
रहे सभी हैं घूम, बँधा है किंतु न धागा।।

40. बिखरी

बिखरी सुषमा देख लो, अपने चारों ओर।
प्राची नित लाती यहाँ, स्वर्णमयी सी भोर।।
स्वर्णमयी सी भोर, रंग अद्भुत बिखराती।
कण कण में उत्साह, नया हर सुबह जगाती।।
कह अंकित कविराय,सृष्टि सारी है निखरी।
देखो आँखें खोल, यहाँ जो सुषमा बिखरी।।

41. कविता

कविता सभ्य समाज का, वो दर्पण बेदाग।
जिसमे रहता है नहीं, कोई राग विराग।।
कोई राग विराग, दिखाती छवि है वैसी।
अपनी आँखों नित्य, देखती खुद वो जैसी।।
कह अंकित कविराय,भाव की निर्मल सरिता।
नित सागर की ओर, बहा करती है कविता।।

42. ममता

ममता का प्रतिरूप माँ, प्रेम, दया की खान।
ईश्वर भी माँ का किया, करता है सम्मान।।
करता है सम्मान, रूप माँ का धर लेता।
धरकर माँ का रूप, प्यार सब जग को देता।।
कह अंकित कविराय, हृदय में उसके समता।
भेदभाव से दूर, रही है माँ की ममता।।

----- राम लखन शर्मा ग्वालियर
[14/01 6:16 PM] सरला सिंह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिनांक-14/01/2020*
*दिन- मंगलवार*

    *49-धागा*   
     
धागा बांधे प्रीत की,आयी साजन द्वार,
रखना मेरी लाज जी,करना भव से पार।
करना भव से पार,आस जागी मन मेरे।
माया ठगिनी आज, राह  मेरी  है  घेरे।
कहती सरला बात,प्रीत मन में है जागा।
बन्धन सारे तोड़,प्रेम का बांधे धागा।

    *50-बिखरी*

बिखरी अलकें देखकर,राधे जी की आज, 
काली काली घटा को,आये देखो लाज।
आये देखो लाज,भयी वह पानी पानी।
चमके बिजली साथ, चलें जब राधे रानी।
कहती सरला आज,बड़ी शोभा है निखरी।
चन्दा की  चांदनी, धरा पर जैसे बिखरी।

*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
[14/01 6:18 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': कुँडलिया शतक वीर हेतु
  45)    कोना 

कोना कोना झूमता , खिलता मोहक बाग ।
झूमे सारन सारिका , गाते मधुरिम राग ।
गाते  मधुरिम राग , रागिनी छेड़े  झरने ।
सुरभित सुमन सुगंध , चित्त को‌ लगते हरने ।।
कहे "धरा" कर जोड़, सुन्दरम छवि मत खोना ।
प्रकृति ईश वरदान , निखरता उपवन कोना ।।


46). मेला 

मेला मोहक मोहता ,रंग-बिरंगे खेल ।
गाँव सजीला सोहता ,गाड़ी मोटर रेल ।।
गाड़ी मोटर रेल , कई सारे हैं झूले ।।
बच्चे बूढ़े नार ,यहाँ दुख अपने भूले ।।
जुटते सारे लोग , सुहानी अनुपम‌ बेला ।
मन से मन का मेल, कभी मत छूटे मेला ।।


*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[14/01 6:19 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
.           *कलम की सुगंध छंदशाला* 

.           कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

.              दिनांक - १४.०१.२०२०

कुण्डलियाँ (1) 
विषय-  *धागा*
उलझा धागा  प्रेम का, रिश्ते लुटते स्वार्थ!
ताने बाने  के सखे, बदल गये  निहितार्थ!
बदल गये  निहितार्थ, बना धागे से  मंझा!
काटे  पंख पतंग, लड़े  उड़ मानस  झंझा!
शर्मा  बाबू  लाल, नेह  का  धागा सुलझा!
जाति धर्म संस्कार, बंधनो में  जो उलझा!
•.                  ••••••••••  
कुण्डलियाँ (2) 
विषय-   *बिखरी*
बिखरी  छटा पतंग  की, कटी अधर में डोर!
कटी लुटी फिर फट गई,विधना लेख कठोर!
विधना  लेख  कठोर , वृद्धजन  कटी  पतंगे!
खप  जीवन  पर्यन्त, रहन  अब  रही  उमंगे!
शर्मा   बाबू  लाल, जिंदगी  जिनसे  निखरी!
कटी  पतंग  बुजर्ग, उमंगे   बिखरी  बिखरी!

रहन ~ गिरवी
•.                     •••••••••
रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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[14/01 6:22 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनांक ....14 जनवरी 2020।
 कलम की सुगंध छंद शाला 
*कुंडलियाँ शतक वीर हेतु*

विषय ...  (49 ) *धागा*

धागा अपने नेह का , कभी न हो कमजोर।
सम्बंधों को बाँधकर ,  रखो न  छूटे छोर ।।
रखो न छूटे    छोर , यत्न हों   चाहे जैसे ।
प्रेम और विश्वास,  अजित बल टूटें कैसे।।
कहे "निगम कविराज",  जगत में वही अभागा।
 ले संदर्भ 'विवाद' , तोड़ देता जो धागा ।।

विषय......   (50)   *बिखरी*

बिखरी पंखुड़ियाँ अगर,  बचा कहाँ फिर फूल।
 बिखरे को ध्रुव जानिए ,  मिल जाएगा धूल ।।
मिल जाएगा धूल ,  कुटुम्बी' ज्यों  पंखुड़ियाँ ।
रखो बाँध मजबूत ,  न बिखरें नेहिल कड़ियाँ।।
 कहे "निगम कविराज",कलम! कुछ ऐसा लिख री।
 बड़े प्रेम विश्वास   ,  जुड़ें फिर कड़ियाँ बिखरी ।।

कलम से ...
कृष्ण मोहन निगम 
(सीतापुर)
 जिला सरगुजा, छत्तीसगढ़
[14/01 6:26 PM] सरोज दुबे: कलम की सुंगध  शतकवीर हेतु 
कुंडलियाँ -47
दिनांक -13-1-20

विषय -कोना 

कोना देखो हे सखी, देखो माखन चोर l
माखन मुँह लिपटा हुआ, नटखट नंदकिशोर 
नटखट नंदकिशोर, फोड़ सब मटकी देता 
मटके जब गोपाल, प्रेम झिड़की सुन लेता  
कहती सुनो सरोज, कृष्ण धुन में ही खोनाl
होना नहीं उदास, महक उठता हर  कोनाl

कुंडलियाँ -48
दिनांक -13-1-20

विषय -मेला

मेला जीवन का लगा, 
देख रहा इंसान l

घूम घूम सब खारहे, 
गरम गरम पकवान 
गरम गरम पकवान,
 बैठ बूढ़े खुश होते l
बातें अपनी सोच, आज हालत पे रोते l
कहती सुनो सरोज,अंत में रहे  अकेला l
सच्ची है ये बात,लगे निभृत हर मेला l

सरोज दुबे 
रायपुर छत्तीसगढ़ 
🙏🙏🙏🙏
[14/01 6:26 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु 
कुंडलियाँ -49
दिनांक -14-1-20

विषय -धागा

धागे से मैं बँध गई, धागा प्रभु के हाथ l
सुख दुख दोनों में रहें, वो ही मेरे साथ l
वो ही मेरे साथ,
जान लेते सब बातें  l
बिना कहे भगवान, स्वप्न में मेरे आते l
कहती सुनो सरोज,रहो तुम मेरे आगे l 
रखना अपने साथ , 
 बाँध के पक्के धागे l

कुंडलियाँ -50
दिनांक -14-1-20

विषय -बिखरी

बिखरी देखो चाँदनी, रातों में चहुँओर l
ओढ़ श्वेत सी ओढ़नी, चंचल भाव विभोर l
चंचल भाव विभोर, ठहर कर आहें भरती
रूप ज्योत्सना देख, मगन अन्तःपुर करती 
कहती सुनो सरोज, देख छविअपनी निखरी l
 हुई शरम से लाल, निशा में आभा  बिखरी l

सरोज दुबे 
रायपुर छत्तीसगढ़ 
🙏🙏🙏🙏
[14/01 6:26 PM] +91 94241 55585: शतकवीर  कलम की सुगंध
 14/1/2020
                   बिखरी

बिखरी जीवन में दुखी ,बिखर रहे संवाद 
दुखी भाव आंखें दिखे ,मौन  करें फरियाद 
मौन  करे फरियाद ,रिश्ता है यह कीमती 
नाता परिवार है ,रहते संबंध मोती 
रिश्ते नाते छोड़ ,परिवार टूटे सकरी
 कहती गुल कर जोर ,जोड़ लो जीवन बिखरी

                       धागा
  एकता रखती है यही ,माला बनती हाथ
  धागा परिचायक वही ,छोड़ते नहीं साथ 
  छोड़ते नहीं साथ ,रखे हैं बांधे धागा 
  मिलकर रहना चाह ,वही सीखे जो जागा
  धागा सहती आप ,त्याग वह ज्यादा करता
  कहती गुल वह बात ,वही जो बांधे एकता

        धनेश्वरी सोनी गुल बिलासपुर
[14/01 6:27 PM] +91 94241 55585: शतकवीर 
      सोमवार 13/1/2020
                 मेला

सुंदर मेला है लगा, लगता है कुछ खास
गुड़िया झूला है झुले ,लगती उसको खास
लगती उसको खास,वही वह दिनभर खेले
काजू पिस्ता आम ,  जूस पीती है लेले
केला ठेला पास ,देख अब खाया बंदर
 देखा मेला सांझ ,खड़ी है रानी सुंदर
                    
                     कोना

 जनता कोने में रहे ,सैनिक प्रहरी शाम।
 भयंकर तूफान  घिरा ,बारिश होती आम
 बारिश होती आम ,वही जब बिजली चमकी
 गोली चलती शाम ,मिली है उनको धमकी
 रहे उधर सब भाग, डरे है सारी सत्ता
 कहती गुल वह सोच ,नहीं है डरती जनता

         धनेश्वरी सोनी गुल बिलासपुर
[14/01 6:28 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 14.01.2020 मंगलवार
********************

49-    धागा
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धागा रखिए प्रेम का, सदा आप मजबूत।
जीवन भर निभता रहे, खंड न हो बन सूत।
खंड न हो बन सूत, न कोई रिश्ता टूटे।
अपने हों सब साथ, न कोई अपना रूठे।
"अटल" सभी हों साथ, न कोई रहे अभागा।
पड़े न जिसमें गाँठ, प्रेम का ऐसा धागा।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏


50-   बिखरी
**********
बिखरी-बिखरी आपकी, केश राशि अनमोल।
जिनमें छल्ले बन रहे, करते दिखें किलोल।
करते दिखें किलोल, घटा काली है छायी।
मुख चंदा सा खिला, देख तबियत हरषायी।
"अटल" टपकता नूर, फिजा है निखरी-निखरी।
लगता लेंगी जान, लटें हैं बिखरी-बिखरी।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[14/01 6:29 PM] अनिता सुधीर: शतकवीर हेतु कुंडलिया

धागा
माता उत्तम सीख थी , तुरपन करो महीन।
दिखे नहीं धागा उधर,कहते सभी जहीन।
कहते सभी जहीन,गुणों का वर्णन होगा ।
तब ऊँगली में घाव,कष्ट कितना था भोगा ।
मानी अब ये बात ,अधर को सिलना आता।
उर में लेकर पीर,   सजाते  रिश्ते  माता।

बिखरी
छायी नभ में लालिमा ,उतर रही है धूप।
बिखरी निखरी रक्तिमा,सजा सुंदर स्वरूप।
सजा सुंदर स्वरूप,धरा ने ओढ़ी चुनरी ।
खिले कमल अब ताल,विहग गाते हैं कजरी ।
नवल सुखद है भोर ,उषा किरणें मुस्कायी ।
लिये सृजन की आस ,यहाँ हरियाली छायी।

अनिता सुधीर
[14/01 6:32 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय  ----   *धागा , बिखरी*
दिनांक  --- 14.1.2020....

(51)              *धागा*

जैसे धागा प्रेम का , दिल में रखें सहेज ।
वैसे ही सब अन्न है , खाते बिन परहेज ।
खाते बिन परहेज , पथ्य है पुराना चावल ।
शरीर रखें दुरुस्त , खाय सब्जी में परवल ।
कह कुमकुम करजोरि , रहें स्वस्थ तुम वैसे ।
मिले प्रेम से आप , प्रीत बनता है जैसे ।।


(52)         *बिखरी*

बिखरी बाँतें मेट दो , देखो नवल प्रभात ।
जीवन जीना यूँ कहो , मानों यह सौगात ।
मानों यह सौगात , मधुर रजनी यूँ आती ।
सजन मिलन की रात , सुनो कैसे यह लाती ।
कह कुमकुम कविराय , प्रेम सहीत है निखरी ।
सब मिल कर लो बात , सुधा रस ही है बिखरी ।।



🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
       दिनांक  14.1.2020......


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[14/01 6:35 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': कुँडलिया शतक‌वीर हेतु 
*दिनांक‌----14./01/2020*
  47)    धागा 

बंधन धागा प्रीत का , उड़ता हृदय पतंग ।
प्यार और विश्वास का , छूटे मत अब संग ।।
छूटे मत अब संग, रहें जन्मों के साथी ।
हरपल रहते साथ , कि ज्यों  दीया अरु  बाती।।
कहे "धरा" कर जोड़ , जुड़ा साँसों का स्पंदन । 
टूटे न कभी तार ,  युगों का अपना बंधन ।।


 48)    बिखरी

बिखरी बिखरी चाँदनी , चंदा चमके रात ।
वसुन्धरा पर हो रही ,  फूलों की‌ बरसात ।।
फूलों की बरसात  , श्वेत मय किरणें घुलती ।
शीतल‌ चली बयार , तुहिन सी रजनी धुलती ।।
न्यारा सा नभ नील , धरा भी निखरी निखरी ।
फैले छटा प्रकाश  , ओज मय आभा बिखरी ।।


*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[14/01 6:35 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला 

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

दिनांक - 14/01/2020

कुण्डलिया (49) 
विषय- धागा
============

धागा - धागा  जोड़कर, बनता  सुन्दर  चीर l
आकर्षक  व्यक्तित्व  हो, रक्षा   करे   शरीर ll
रक्षा    करे    शरीर, यही    मर्यादा   वाहक l
जैसा जिसे पसन्द, कहीं कुछ दुर्गति नाहक ll
कह  'माधव कविराय', न बोलो बोली कागा l
कपड़े   सा   परिवार, निखारे   प्रेमी   धागा ll

कुण्डलिया (50) 
विषय- निखरी
=============

विखरी  हरियाली  अवनि, मोहक  सुन्दर गात l
ज्यों  शादी  दुल्हन सजी, मन्द - मन्द मुस्कात ll
मन्द - मन्द  मुस्कात, प्रकृति सुषमा है अनुपम l
चन्द्रप्रभा  स्नान, छटा  में  रति  भी  अति कम ll
कह 'माधव कविराय',अलौकिक आभा निखरी l
रंग  -  विरंगे   पुष्प, अवनि  हरियाली  विखरी ll

रचनाकार का नाम-
           सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
                        महोबा (उ.प्र.)
[14/01 6:36 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला को प्रणाम🙏🏻
कुंडलियाँ शतक वीर के लिए
रचना कार, डॉ श्रीमती कमल वर्मा
कुंडलियाँ क्र53
विषय_धागा। 
धागा नाजुक बांधता,भाई बहना संग। 
एक मातु बाबा दिये,उनकेशरीर अंग।। 
उनके शरीर अंग,बढे यह प्यार सुहाना। 
बहना बिदा बिछोह,भूल भैया मत जाना। 
 कमल निभातें प्यार,बहन भाई बड़भागा।
कृष्ण सखी का साथ,बांधता कच्चा धागा। 

कुंडलियाँ क्र54
विषय_बिखरी। 
मैंने चाही बांधना,बिखर जिंदगी जाय। 
पकड सकूँ इसको कहाँ,हाथों फिसले हाय। 
हाथों फिसले हाय,नये नित रंग दिखाती। 
टूटी मोती माल,कहीं पर हाथ न आती। 
कमल लगे इस वक्त,अरे देखों यह निखरी। 
अगले पल में हाय,जिंदगी फिर यह बिखरी। 
कृपया समिक्षा करें।
[14/01 6:50 PM] अनंत पुरोहित: कलम की सुगंध छंदशाला
कार्यक्रम कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
अनंत पुरोहित 'अनंत'

दिन सोमवार 13.01.2020

47) कोना

*कोना-कोना* देश का, करता है अभिमान
वारा विह्वल वीर ने, किया *जान* बलिदान
किया *जान* बलिदान, *जान* लो *जन-जन* जनता
*कण-कण* कतरा रक्त, बहा बलिदानी बनता
कह अनंत कविराय, सुनो लोगों का रोना
क्रंदन करुण पुकार, देश का *कोना-कोना*

रचनाकार-
अनंत पुरोहित 'अनंत'
[14/01 6:50 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु

(49)
धागा
धागा नाजुक प्रेम का, अति कोमल है तंतु।
 इस  धागे से हैं  बँधे, सभी जीव सब जंतु ।
 सभी जीव सब  जंतु, गुंँथे हैं बनकर मोती।
 माला ये अनमोल, पहन दुनिया खुश होती।
 मानव सब कुछ छोड़, प्रेम के पीछे भागा।
 सब समझे हैं प्रीत, रखो सँभाल  ये धागा।



(50)
बिखरी
बिखरी सुषमा अवनि की, देख हुआ मन दंग।
 डोली डोली  मदन  की , पीकर  मानों  भंग।
पीकर मानो  भंग,  बिखरी  घटा की  अलकें।
खोल  रहे  हैं भ्रमर, बंद  कलियों  की पलकें।
कह आशा निज बात,लगे वसुधा यह  निखरी।
रवि का फैला हास, निरख सुषमा यह बिखरी।


आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[14/01 6:50 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध छंद शाला.....कलम शतकवीर 
हेतु
★★★★★★★★★★★☆★★★★★
        *विषय..........धागा*
          विधा..........कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★★
धागा कपास से बुनें,मिलें सुंदर परिधान।
देह लगे जब अंग से,बढ़ता काया मान।
बढ़ता काया मान, लगें वह रूपसी नारी।
शोभित गहना अंग,सजे राधा बनवारी।
कहता है श्रीवास,शीश पर बांधों पागा।
पावन है बृजधाम,स्नेह की राखो धागा।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[14/01 6:54 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध
कुण्डलियाँ शतकवीर
दिनाँक--14/1/20

48
कोना
कोना मन का साफ हो,दिल हो निर्मल नीर।
कोने में ही हैं छुपी,कड़वी जीवन पीर।
कड़वी जीवन पीर।छुपी हर मानव मन में।
मुखड़े पर मुस्कान,जले दिल पावक वन में।
कहती अनु सुन बात,मिटा दो अब हर रोना।
खुशियाँ चारों ओर,खिले मन कोना-कोना

49
धागा
धागा बाँधा प्रेम का,मन में लेकर आस।
बहना को भैया सदा,रखती दिल के पास।
रखती दिल के पास,सदा ममता से छलकें।
बाँधा धागा प्रेम,खुशी से भीगी पलकें।
बहना का दिल तोड़,चला मुख फेर अभागा।
नैनो में दे नीर,सदा को तोड़ा   धागा।

50
बिखरी
बिखरी किरणें धूप की,आयी उजली भोर।
लाली लाली देख के,मुस्काती है जोर।
मुस्काती है जोर,लली पलना में खेले।
चहकी चिड़िया भोर,सजे फूलों से ठेले।
कहती अनु यह देख,धरा की आभा निखरी।
सरसों फूली खेत,गली में किरणें बिखरी

लाली-लालिमा
लाली-बिटिया

अनुराधा चौहान
[14/01 6:56 PM] कुसुम कोठारी: कमल की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
१४/१/२०
कुसुम कोठारी।

कुण्डलियाँ (४९)

विषय-धागा
मोती गूंथा प्रेम से , बांधा भाई हाथ ,
धागा है ये रेशमी ,बहन भ्रात का साथ ,
बहन भ्रात का साथ ,सदा होता है पावन 
चाँद किरण सा स्नेह ,  मेल इनका मनभावन
कहे कुसुम सुन बात, बंधु संकट पर रोती
एक उदर के फूल ,एक धागे के मोती।

कुण्डलियाँ (५०)

विषय-बिखरी
बिखरी-बिखरी धूप हैं , कुछ ठंड़ी सी नर्म ,
जाड़े में प्यारी लगे , गर्मी में ये गर्म ,
गर्मी में ये गर्म , देह को नही  सुहाती ,
कभी चढ़े मुंडेर , कभी वृक्षों पर गाती ,
कहे कुसुम सुन बात,भोर में निखरी-निखरी ,
होती है जब सांझ, दुखी औ बिखरी बिखरी।।

कुसुम कोठारी
[14/01 7:11 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ  शतकवीर हेतु*
मंगलवार-14.01.2020 

*49)धागा*

वंदे धागा प्रीत का,जुड़ता है इक बार।
प्रेमपगे दो बोल से,वशीभूत संसार।
वशीभूत संसार,सभी खिंचे हैं आते।
जिस दिल में हो प्यार,वही मानुष मन भाते।
मेरे है निज भाव,पड़े अनदेखे फंदे।
सत्य प्यार की डोर,वचन ये कहते वंदे।।

*50)बिखरी*

बिखरी थी सुंदर छटा, धरती की चहुँओर।
बिखरी-बिखरी सी लगे,ध्यान धरो इस ओर।
ध्यान धरो इस ओर,सुनो क्या कहती धरती।
कानन दिए उजाड़,मही अब आहें भरती।
मिल कर करें प्रयास,लगे वसुधा निज निखरी।
प्रकृति करे परिहास, प्रेम की बगिया बिखरी।।

*रचनाकार-वंदना सोलंकी*
*नई दिल्ली*
[14/01 7:31 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
14/01/2020::मंगलवार

धागा
रिश्तेदारी मानिए, होता है अनुबंध।
धागा ऐसा रेशमी, उलझाता सम्बंध।।
उलझाता सम्बंध, गलत फहमी के कारण।
ढूंढों चाहे लाख, मिले न कोई निवारण।।
रिश्ते रखो सम्हाल, वसीयत है ये न्यारी।
संयम से लो पाल, रेशमी रिश्तेदारी।।

बिखरी
बिखरी बिखरी ओस है, मुस्काई जब पात।
चंदा के सँग चाँदनी, नाची सारी रात।।
नाची सारी रात,मगन होकर मतवाली।
चाँद हुआ मदमस्त, रात पी मधु की प्याली।।
मिला चाँद का साथ, चाँदनी शरमा निखरी।
चमकें मोती पात, ओस कुछ ऐसे बिखरी।।
                     रजनी रामदेव
                       न्यू दिल्ली
[14/01 7:31 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु

दिनांक-14-01-020

49
विषय-धागा

वासर मनके जोड़कर, बनती माला वर्ष।
रेशम धागा है समय,भीगे पीड़ा हर्ष।।
भीगे पीड़ा हर्ष, सभी पहने ही रहते।
सुन्दर है हर रूप, दिनों का सब ये कहते।।
हम तो हैं संतुष्ट, मृदा की काया पाकर।
कर सकते सार्थक, कर्म से रजनी वासर।।

50
विषय-बिखरी

बिखरे पत्र समीर से, हुए वृक्ष से दूर।
जुड़ना अब तो स्वप्न है, पीड़ा है भरपूर।।
पीड़ा है भरपूर, इसी में सिमटी काया।
मिलना और वियोग,सभी ने अनुभव पाया।।
गीता की ये बात, गुनो तो नाते निखरे ।
सींचो नेह सलिल, सुधा रिश्तों में बिखरे।।

सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[14/01 7:42 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला 

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 14.01.2020

कुण्डलियाँ (45) 
विषय-आधा
आधा ज्ञान भला नहीं,आधे से नुकसान।
अधजल घट छलके सदा,आधे की पहचान।
आधे की पहचान,बताते हैं सब ज्ञानी।
गहरा सागर नीर,नदी का छिछला पानी।
सुन लो अनु की बात,न हो ज्ञानार्जन बाधा।
 ले लो पूरा  ज्ञान,नहीं अच्छा है आधा।।



कुण्डलियाँ (46)
विषय-यात्रा
यात्रा कवित्त  राह की,सरल नहीं, लो जान।
मुश्किल से डरना नहीं,हमराही है मान।
हमराही है मान,यही है मेरा कहना।
कवि का यश चहुँ ओर,सदा मस्ती में रहना।
कह अनुपम कविराय,कि रखो बराबर  मात्रा।
तुकबंदी का खेल,कवित्त राह की यात्रा।।

   

रचनाकार का नाम-

अनुपमा अग्रवाल
[14/01 7:45 PM] अमित साहू: कलम की सुगंध~कुण्डिलयाँ शतकवीर

49-धागा (14.01.2020)
तागा तंतू सूत का, इसका स्त्रोत कपास।
नाँयलान अरु रेशमी, बनते धागे खास।।
बनते धागे खास, बुनाई और कढ़ाई।
सहते सूत तनाव, उसी से काम सिलाई।।
रेशा-रेशा जोड़, ऐंठकर लंबा धागा।
करता नव निर्माण, साथ में मिलकर तागा।।


50-बिखरी
बिखरे जो भी है यहाँ, पल में जाता टूट।
पर इस जगत विधान से, मिली एक को छूट।
मिली एक को छूट, मनुज जो है कहलाता।
रचने नव इतिहास, हृदय अपना बहलाता।।
मानव वही महान, ठोकरों से जो निखरे।
प्रकृति जनित व्यवहार, टूटकर सबकुछ बिखरे।।

कन्हैया साहू 'अमित'
[14/01 7:48 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुंगध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*

*कुण्डलियाँ(४९)*
*विषय-धागा*


धागा बाँधा प्रेम का,माँगा अमर सुहाग।
हिना हाथ हरदम रहे,हृदय बसे अनुराग।
हृदय बसे अनुराग,बनूँ मैं सदा सुहागन।
जब तक तन में साँस,रहे रिश्ता ये पावन।
कहती'अभि'हिय बात,भाव मन कोमल  जागा।
मन से मन की डोर,अटूट प्रेम का धागा।

*कुण्डलियाँ(५०)*
*विषय-बिखरी*

बिखरी अतुलित संपदा,देखा सुंदर रूप।
ईश्वर का वरदान ये,अद्भुत अतुल अनूप।
अद्भुत अतुल अनूप,हरित उपवन बहुतेरे।
सागर नदी निर्झर,बर्फ को बादल घेरे।
कहती'अभि'निज बात,सूर्य से धरती निखरी।
पर्वत,पक्षी,पुष्प,चंद्र की आभा बिखरी।


*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*
[14/01 7:49 PM] सुशीला जोशी मुज़्ज़फर नगर: *कलम की सुगंध कुंडलियाँ प्रतियोगिता 2019-2020*

14- 01-2020

49--- *धागा*..
प्रेम बंध धागा कहे, मुझे समझ यह आय।
ये दुनियाँ बंधन अलग, कनुप्रिया मुस्काय 
कनुप्रिया मुस्काय , कृष्ण को हृदय  बसाया 
करके उससे प्रेम, जगत में नाम कमाया 
देवालय में बैठ , उसी धुन में मन लागा  
सकल जगत मुस्काय, जुड़े जब बंधन धागा।

50--- *बिखरी*...

बिखरी धरा पर चाँदनी, ओढ़ रेशमी शाल 
बना दूधिया सा रही, रजनी काले बाल 
रजनी काले बाल, चाँदनी रँग रँग जाते 
रेशम चादर ओढ़, पावनी रूप बनाते  
देख देख कर चाँद, हया से वो कुछ निखरी 
आकुल से थे गीत, स्वरों में धुन जब बिखरी ।।

सुशीला जोशी 
मुजफ्फरनगर
[14/01 8:01 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंद शाला* 
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
14/1/2020
                      
                  *(49)धागा* 

राखी धागा प्रीत का,रहती कच्ची डोर ।
नेह डोर पक्का बंधे,देख कलाई छोर।
देख कलाई छोर, बहन की रक्षा करता।
जनम जनम भर संग,निभा सुख दुख मे रहता ।
कहे मधुर मति मंद, नेह का धागा साखी।
बहन रहे परदेश, भेजती भाई राखी।
       
           (50)बिखरी

बिखरी खुशियाँ बाग मे,फागुन मस्त बहार। 
पीली सरसों है खिली,धरा करे श्रृंगार ।
धरा करे श्रृंगार,केतकी गेंदा फूले ।
केशर कुमकुम भाल,लगा रितु पुरवा झूले।
कहे मधुर ये सोच,जगत तरुणाई निखरी।
धानी चुनरी ओढ़, बसंती आभा बिखरी।

 *मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[14/01 8:03 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद 
14-1-2020

धागा राखी का सुनो, बहना का हो प्यार ।
सावन में इक बार ही, आता यह त्यौहार ।
आता यह त्यौहार, मिले फिर भाई बहना।
होना नहीं उदास, यही भाई का है कहना ।
लेना मुझे पुकार, आऊं भागा भागा ।
अमर रहे यह प्यार, अमर यह प्यारा धागा ।।

केवरा यदु"मीरा "
राजिम
[14/01 8:03 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद 
14-1-2020

बिखरी 

बिखरी जुल्फों को हटा,देख जरा इक बार ।
तड़पन दिल की है मिटे, आये चैन करार ।
आये चैन करार, नैन से नैन मिलादो ।
सजनी मै बेजार,बोल कर प्यास बुझा दो ।
चली कहाँ मुँह मोड़,रूप है निखरी निखरी।
आजा मेरे पास, सवाँरू जुल्फें बिखरी ।।

केवरा यदु"मीरा "
राजिम
[14/01 8:06 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कलम की सुगंध छंदशाला। कुंडलिया शतकवीर सम्मान हेतु। दिन -मंगलवार,दिनांक--१४/०१/२०२०*
~~~~~~~~~~~~~~

*४९--धागा*
~~~~~~~~~
कच्चे धागे से बनी, है जीवन की डोर।
हाथों में भगवान के, इसके दोनों छोर।
इस के दोनों छोर, सभी को वही नचाता।
देता सब को जन्म, मृत्यु से वही मिलाता।
नाशवान संसार, फिरो मत भागे-भागे।
कब आ जाये मौत, तोड़ दे कच्चे धागे।
~~~~~~~~~~~~~~

*५०--बिखरी--*
~~~~~~~~~~~
बिखरी जुल्फें गाल पर, अधरों पर मुस्कान।
आँखों में मदिरा भरी, लेगी सब की जान। 
लेगी सब की जान, चाल चलती मतवाली।
अति मनमोहक रूप, रुचिर गालों की लाली।
भींगे भींगे केश, दीखती निखरी निखरी। 
नागिन को दें मात,आज ये जुल्फें बिखरी।
~~~~~~~
*विद्या भूषण मिश्र "भूषण"--*
~~~~~~~~~~~~~~~~|
[14/01 8:10 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंद शाला
कुंडलिया छंद शतकवीर हेतु 
14 /01/2020

 धागा(49)

धागा हरदम प्रेम का, रखना अपने पास।
 जो दुख में भी साथ दे, वो होता है खास।
 वो होता है खास, कभी मत उसको छोड़ो ।
जीवन के दिन चार, प्रीत तुम सब से जोड़ो।
 कह राधेगोपाल, बनो मत काला कागा।
रहना सबके साथ, सदा बनकर के धागा।।

 बिखरी (50)

 बिखरी यादें कर रही, है साजन को याद।
 मेरे अंदर है भरी, यादों की तादाद ।
यादों की तादाद, पिया हम भूल न पाते।
 आती है जब याद, हमें तुम बहुत सताते।
 कह राधेगोपाल, तुम्हीं से हूँ मैं निखरी।
 करती तुमको याद, सदा ही यादें बिखरी।।

राधा तिवारी "राधेगोपाल"
 खटीमा 
उधम सिंह नगर
 उत्तराखंड
[14/01 8:13 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुंडलिया शतकवीर हेतु*
दिनाँक - 14.1.2020

कुंडलिया (49) *धागा*

धागा  है  विश्वास  का, ऊँची उड़ी पतंग।
संग हवा के वह चली, लड़ती जीवन जंग।
लड़ती जीवन जंग, धैर्य  की डोर बँधाए।
छूने को आकाश, और वह चढ़ती जाए।।
प्रांजलि चंचल चित्त, पवन के पीछे भागा।
उड़ने  दो  उन्मुक्त, खींचना मत ये धागा ।।

कुंडलिया (50) *बिखरी*

बिखरी लटें सँवारकर, घूँघट लेती डाल।
चूनर  पहरेदार  बन,  करती  है  बेहाल।।
करती  है  बेहाल, सरकती  जैसे सर से।
मिल जाते जो नैन, नजर से छुरियाँ बरसे।।
प्रांजलि पागल प्रेम, झलक वह मन में उतरी।
खुले  घनेरे  केश, लटें  कुछ माथे बिखरी।।

______पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि"
[14/01 8:17 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध शतक वीर प्रतियोगिता कुंडलियां।
13/1/2020

शब्द -कोना/मेला

(47) कोना
कोना पकड़े खड़े हैं  , रूठ गये गोपाल।
  यशोदा मां से कह रहे, व्याह रचा दे हाल।
 व्याह रचा दे हाल,   हाथ तेरे मैं जोडूं।
 रोकू न ब्रजनार   ,नही अब
 मटकी फोड़ूं।
कह प्रमिला कविराय  खड़ी मां  दधि  ले दोना।
  सुनें न एकहु श्याम,खड़े  पकरे इक कोना।।

(48) मेला

        मेला सा लगने लगा, दशरथ जी के द्वार।
  राम जन्म  की खबर सुन, आये पुर नर नार।

 आये पुर नर नार, अलौकिक शोभा न्यारी
  देवें  विप्रन दान,  निछावर कर नर नारी।
   दर्शन की अभिलाष, बनाया बड़ा   झमेला
  आ गये भोले नाथ,  अवध में  देखन मेला।

 प्रमिला पान्डेय
[14/01 8:24 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध शतक वीर प्रतियोगिता कुंडलिया
14/1/2020

(49) धागा

धागा बन कर गूंथिये  एक साथ परिवार।
 मोती  से बनता नही, कभी गले का हार।
   कभी गले का हार,  बने  नहि माणिक माला।।
अमृत सा रस घोल, पिये नहि प्रेमी हाला
 कह प्रमिला कविराय, नही प्रिय लगता कागा।
    कोयल बोले बोल, प्रीत का बाँधे धागा।।

(50)बिखरी

 जैसे बिखरी धरा पर, प्रातकाल की धूप।
  विश्वमोहिनी रूप लखि, हर्षित भये सब भूप।
 हर्षित भये सब भूप,  देखि नारद मुस्काये।
     लिए हाथ जयमाल, सभा  बिच कन्या आये।
कह प्रमिला कविराय,  कुपित नारद थे ऐसे।
  लंका में हनुमान, गये थे वानर जैसे।।

 प्रमिला पान्डेय
[14/01 8:35 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर 

दिनाँक - १४/०१/२०

४९) धागा 

झटपट काटे डोर बहु, धागा माँझे संग।
तीक्ष्ण शब्द चढ जीभ पर, काटे नेह पतंग॥
काटे नेह पतंग, जुड़े न कटे इक बारी।
दे रिश्तों को काट, वचन कटु दिश चारी॥
कहिये सोच विचार, नहीं कटु न कुछ अटपट।।
बरसों बुने संवार, गिरें न कहीं कट झटपट॥

(५०) बिखरी 

बिखरी साड़ी रेशमी, बिखरे सिर के केश।
लपक उठाया दुष्ट ने, धर जब मुनि का वेश॥
धर जब मुनि का वेश, खड़ा रेखा के पीछे।
सीता देती दान, करे दृग दौ निज नीचे॥
रुक न सका वह दुष्ट, लखी जब मुख-छवि निखरी। 
झपटा जैसे व्याल, घड़ी सिय सुख की बिखरी॥

गीतांजलि अनकही
[14/01 8:40 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक - 14/01/2020
दिन - मंगलवार
49 - कुण्डलिया (1)
विषय - धागा
**************
धागा लेकर प्रेम का ,चले गूँथने हार ।
एक एक मनका मिला ,बना एक परिवार ।
बना एक परिवार , नींव विश्वास बनाया ।
त्याग दया सहकार , भाव सबने अपनाया ।
सुदृढ़ बना आधार , सभी संकट फिर भागा ।
दुश्मन तोड़ न पाय , रहे पक्का वह धागा ।।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
50 - कुण्डलिया (2)
विषय - बिखरी
****************
बिखरी बिखरी जिंदगी , उलझी उलझी राह ।
रिश्ते नाते टूटते , वैयक्तिक हर चाह ।
वैयक्तिक हर चाह , हुए सब अवसरवादी ।
स्वार्थ पूर्ण व्यवहार , सिर्फ करती बरबादी ।।
बदलें अपनी सोंच ,रहे प्रज्ञा फिर निखरी ।
बँधी प्रीत की डोर ,जिंदगी रहे न बिखरी ।

********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★
[14/01 8:47 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '

  🙏🙏

49 ) धागा 
***********
धागा उलझ उलझ गया , लेना सब सुलझाय ।
प्यारा धागा प्रीत का , उलझता ही न जाय ।। 
उलझता ही न जाय , सदा ही साथ निभाये ।
बंधन जितना कसे , सुखी बंधन हो जाये ।।
रिश्ता जो निभाये , वही तो आये भागा । 
सदा रहेगा प्यार , गया उलझ सुलझ धागा ।।
$$$$$$$$$$$


50 ) बिखरी 
*************
बिखरी है काली ज़ुल्फ़ , बिखरे काले बाल ।
सुन्दर प्रतिमा बनी , बिखरी लटें सँभाल ।।
बिखरी सँभाल लटें , प्रीत तो है दीवानी ।
मोहित होते सभी , बिखरीं ज़ुल्फ़ें सुहानी ।।
मुखड़ा बड़ा सुहाना , सूरत है बड़ी निखरी ।
फूल सी है महके , ज़ुल्फ़ काली है बिखरी ।।
₩₩₩₩₩₩₩

(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
14 .1.2020 , 8:02 पीएम पर रचित  ।
€€€€€€€€€€€€

●●
🙏🙏 समीक्षार्थ व संशोधनार्थ 🌹🌹
[14/01 8:53 PM] पाखी जैन: कलम की सुगंध छंदशाला 
शतकवीर हेतु कुंडलिया।
आधा 

आधा..
आधे मन से मत करो ,कभी न आधा काम।
जीवन में तुम मत डरो , रहो सदा निष्काम।।
रहो सदा निष्काम,प्रीत का सागर भर दो।
महके विश्व  तमाम,प्रेममय जग को कर दो।
पाखी जग संताप,  सदा ही मन मे साधे।
होय दूर सब पाप करो तुम  काम न आधे।।
पाखी



यात्रा..
यात्रा में जो साथ दे ,वही मीत अनमोल।
आंखों से सब जान ले,अधर न पाएं बोल।
अधर न पाएँ बोल,हृदय में उठे हिलोरें।
बढ़े प्रीति घनघोर,मचाये शोर बहारें।
कह पाखी कर जोड़,जोड़ती लिख लिख मात्रा।
भरे मांग वह मीत , करे संग सदा  यात्रा। 
मनोरमा जैन "पाखी"
[14/01 8:56 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध
 कुंडलियों शतक वीर हेतु 

 दिनांक 13/01/ 2020
कोना
-------
 कोना मन का सूना है, माँ की छवि अनूप।
 एकाकी जब से रहे ,झीनी आये धूप।।
 झीनी आये धूप ,धूप है अति महकाती।
 बीती बातें याद, कभी बचपन बहकाती।।
 कहे निरंतर बात, इसे तुम मत अब खोना।
 हम को ले लो साथ, रहे पूरित मन कोना।।

मेला 
------
मेला यह संसार है, कर्मठता की राह।
पल में होती खत्म ये, अमरता रही चाह।।
अमरता रही चाह, टूट जाता है सपना ।
सत्य सदा यह मान ,कौन कहलाता अपना ।।
स्नेहिल सब हैं लोग , ईश का सब यह खेला ।
मिलते कितने  खोज, रोज लगता है मेला।।

दिनांक 14 /01/ 2020 

कुण्डलियाँ

विषय- धागा
          --------
धागा से कपड़ा बना ,ढकते तन सब लोग ।
रंग बिरंगी सूत से, भागे मन के रोग ।।
भागे मन के रोग ,फटी अब चलो सिलाये।
टूटा जो यह प्रेम ,पुन: अब कौन मिलाये।।
कहे 'निरंतर' बात, छूट कर पतंग भागा ।
पकड़ खूब मजबूत, नेह उपजाये धागा।।

बिखरी
--------- 

बिखरी अब मन भाव है, शब्दों का बुन जाल।
चुन-चुन कर अब प्रेम से ,जीवन को दे ताल ।।
जीवन को दे ताल, ताल कमल रहे शोभे।
कहे निरंतर बात, रूप सिमटा ही लोभे।।
मन को बेधे भाल ,भाल कुमकुम से निखरी।
मन को स्वयं समेट, लगे गुमसुम यह बिखरी।।

अर्चना पाठक 'निरंतर'
[14/01 9:10 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *दिनांक:- १३/०१/२०२०*
*कलम की सुगंध छंदशास्त्र*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*

*विषय:-कोना* 

कोना-कोना छानकर, रहा स्वयं को खोज |
अथक परिश्रम कर मिला, आईना इक रोज |
आईना इक रोज, तलाशा मुझको उसने |
छुपे हुए कुछ सर्प,लगे अब मुझको डसने |
कह विदेह नवनीत, तात! अब आए रोना |
धूमिल दिखता अक्स,छानकर कोना-कोना ||

*विषय:-मेला*

मेला अनुपम-सा लगे, भैया ये संसार |
चकाचौंध हर ओर है, रिश्तों में व्यापार |
रिश्तों में व्यापार, सभी का है गठबंधन |
बस दौलत से प्यार, धूल को कहते चंदन |
कह विदेह नवनीत, मुबारक तुमको धेला |
दुनिया है बाजार,लगे अनुपम-सा मेला |

*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा, ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
[14/01 9:10 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध छंद शाला.....कलम शतकवीर 
हेतु
★★★★★★★★★★★☆★★★★★
*विषय .......बिखरी*
  विधा.........कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★★
माधव छोड़ा आँगना,सुध बुध खोई भूल।
गोपी  बरबस बावरी,धरती गोकुल शूल।
धरती गोकुल शूल,भाव मोहे तरसाता।
राधा ताके राह,प्रीति कृष्णा की हरषाता।
कर जोड़े श्रीवास, चले आओ अब जाधव। 
हे गिरधर सांवरे,खुशी बिखरा कर माधव।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
बलौदाबाजार भाटापारा
[14/01 9:10 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर सम्मान हेतु*
*दिनांक:- १४/०१/२०२०*

*विषय:-धागा*

धागा रेशम का बुना, बाँध भ्रात के हाथ |
भरी कलाई देखिए, कृपा करें जगनाथ |
कृपा करें जगनाथ, नयन घिर-घिर कर बरसे |
कैसी अद्भुत रीति, मिलन को दोनों तरसे |
कह विदेह नवनीत, कौन अब कहे अभागा |
करो प्रभो कल्याण,बुना रेशम का धागा ||

*विषय':-बिखरी*
*५०*

बिखरी स्याही फर्श पर, होकर अब नाराज |
मन बेसुध-सा है सखे, मौन हो गए साज |
मौन हो गए साज, दुखों की बरसी बदली |
जीवन हुआ अनाथ,नीर बिन प्यासी मछली |
कह विदेह नवनीत, कभी थी तू भी निखरी |
कृपा करें करतार,फर्श पर स्याही बिखरी ||

*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा, ऊधम सिंह नगर*
उत्तराखंड
[14/01 9:43 PM] कमल किशोर कमल: नमन मंच
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु।

45-
कोना-
कोना-कोना हेम है,नियति नियम विधि संग।
होले -डोले रस भरे,चले प्रानपति चंग।
चले प्रानपति चंग,धूप में छाया जैसी।
धर पुरवा का रूप,बरसकर हरी हितैषी।
कहे कमल कविराज,कभी बिस्तर क्या सोना।
सर-सर फर -फर उड़े,पहुँचती कोना-कोना।
46-
मेला
पैदा होते चल पड़ा,लेकर शक्ति अपार।
जोड़- छोड़ से बन गया,मेला का संसार।
मेला का संसार,उसी में खेला कूदा।
कहीं किसी से प्रेम,कहीं बैरिन बेहूदा।
कहे कमल कविराज,उड़ो सम जागृत तोते।
मलय दिशा के सुमन,खिले हैं पैदा होते।
47-धागा
बाँधा धागा प्रेम का, बहना ने हर बार।
दया मया बस चाहती,भाई से सौ बार।
भाई से सौ बार,सदा हँसना ही सीखा।
सदा खुशी हो भ्रात,हँसाना हरदम सीखा।
कहे कमल कविराज,चाहिए भारत काँधा।
रहे निडर हर वक्त,प्रेम का धागा बाँधा।
48-बिखरी

बिखरी बाली खेत में,पड़ी हुई हर ओर।
कोई आकर बीन ले,उठकर ताजी भोर।
उठकर ताजी भोर,धूप में उमस सताती।
शीतल छाया चाह,हँसी का सुमन खिलाती।
कहे कमल कविराज,बीनिए भाई सिकरी।
बहुत पड़ी है खेत,देखिए बाली बिखरी।

कवि-कमल किशोर "कमल"
हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
[14/01 9:44 PM] उमाकांत टैगोर: *कुण्डलिया शतकवीर हेतु*
*दिनाँक- 07/01/20*
कुण्डलिया(39)
विषय- भावुक

छल करते हो यदि कभी, रखना इतना ध्यान।
भगवन भी हैं देखते, सुन मूरख इंसान।।
सुन मूरख इंसान, करो चाहे फिर विनती।
नहीं कभी उद्धार, गिनों फिर उल्टी गिनती।।
बस मीठी मुस्कान, भरो जीवन में हरपल।
सुख पाओगे खूब, करो मत बिलकुल भी छल।।

कुण्डलिया(40)
विषय-भावुक

सीमा पर ही प्राण दूँ, इतनी है फरियाद।
भर जाये सब जोश में, करके मुझको याद।।
करके मुझको याद, कभी भावुक मत होना।
फ़ोटो मेरी देख, जरा भी माँ मत रोना।।
मारूँ या दूँ मार, भरूँ दुष्टों का कीमा।
या जाऊँ कुर्बान, नहीं छोडूँगा सीमा।।

रचनाकार-उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर(छत्तीसगढ़)

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