Tuesday, 21 January 2020

कुण्डलियाँ छंद... जाना ,करना

[20/01 6:03 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु -
दिनाँक - 20.01.2020 (सोमवार )

(59) 
विषय - जाना

जाना तुमको  है कहाँ, पहले  करो विचार।
सरल सुगम जो राह हो,चलने को तैयार।।
चलने को तैयार,कमर अब तुम कस लेना।
मिले सफलता हाथ,खुशी से हँस फिर देना।।
कहे विनायक राज,कभी मत धोखा खाना।
धर्म-कर्म  की  राह, हमेशा  चलते  जाना।।

(60)
विषय - करना

कहना मेरा मान लो,करना है कुछ काम।
बिना काम के जिंदगी,होती है बदनाम।।
होती है बदनाम,सोच लो अब क्या करना।
बिना काम आराम,मनुज रे तुमको मरना।।
कहे विनायक राज,संग में सुख दुख सहना।बनना कर्म प्रधान, यही है सबका कहना।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[20/01 6:05 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला 

*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु* 

दिनांक - 20/01/2020

कुण्डलिया (59) 
विषय- जाना
==========

जाना   जग  से  एक  दिन, राजा   रंक   फकीर I
सदा  अमर    कोई  नहीं, मानो   उपल   लकीर ll
मानो   उपल   लकीर, नयन  ने  जिसको  देखा l
हों    सजीव - निर्जीव, मिटेगी    सबकी    रेखा Il
कह  'माधव कविराय', सभी  कोविद जन माना l
कर नित अच्छे काम,पड़े किस दिन फिर जाना ll

कुण्डलिया (60) 
विषय- करना
===========

करना  तो   सब  चाहते, जग   में   ऊँचा   नाम I
मगर   भूल   बैठे   उन्हें, जिनका   ऊँचा    दाम ll
जिनका   ऊँचा   दाम, पिता - माता   को   भूले l
तनिक  न  तन, मन शक्ति, फिरें  ये  फूले - फूले ll
कह 'माधव कविराय', किसी का सुख मत हरना l
कथन  कृत्य  अनुरूप, अगर  सिर  ऊँचा करना ll

रचनाकार का नाम-
           सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
                        महोबा (उ.प्र.)
[20/01 6:07 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे

कुंडलियाँ

59. जाना

जाना तुमको दूर है, घायल भी है देह।
ठीक समय पर पहुँचने, में मुझको सन्देह।।
में मुझको सन्देह, दूर है मंजिल प्यारे।
पहुंचाएगा बाण, तुम्हें ये राम सहारे।।
कह अंकित कविराय, ख़ड़े होकर हनुमाना।
बोले जय श्रीराम, मुझे ऐसे ही जाना।।

60. करना

करना जीवन मे नहीं, ऐसा कोई काम।
जिस कारण होना पड़े, दुनिया मे बदनाम।।
दुनिया मे बदनाम, ध्यान ये रखना हरपल।
जीवन पथ पर आप, कभी मत खोना सम्बल।।
कह अंकित कविराय,नहीं जीवन मे डरना।
फैले जिससे कीर्ति, काम बस ऐसे करना।।

61. कोयल

कोयल मीठा बोलकर, सबको रही लुभाय।
कौवे की वाणी मगर, नहीं किसी को भाय।।
नहीं किसी को भाय, इसी से मीठा बोलो।
जिव्हा में मत आप, कभी भी विष को घोलो।।
कह अंकित कविराय,सुनाओ मीठा हरपल।
कौवे की अब काँव, छोड़ बन जाओ कोयल।।

62. अम्बर

अम्बर जैसे तुम रखो, अपने भाव विचार।
दुनिया को समझो सदा, अपना ही परिवार।।
अपना ही परिवार, बहिन भाई हैं सारे।
कोई नहीं है और, यहाँ पर सभी हमारे।।
कह अंकित कविराय, मिलेंगे जब  अपने स्वर।
सुनकर ऐसा गीत, बहुत खुश होगा अम्बर।।

----- राम लखन शर्मा ग्वालियर
[20/01 6:08 PM] सरला सिंह: *20.01.2020 (सोमवार )*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिन - सोमवार* 
*दिनांक-20/01/20*
*विषय- जाना, करना*
*विधा कुण्डलियाँ*

  59-जाना
जाना है सबको वहीं,सबकी मंजिल एक।
करना सबका ही भला,रखना नीयत नेक।
रखना नीयत नेक,सभी का मालिक कहता।
चाहे  नाम अनेक , राह सत्पथ  ही  रहता ।
कहती सरला  बात, सभी के मन ने माना।
चलना पथपर नेक, यहां से सबको जाना।।
            60-करना
करना कुछ ऐसा सदा, गाये जग तेरे गीत।
रहना सत्पथ पर डटे,बनो सभी के मीत।
बनो सभी के मीत,कहें सब तुझको अपना।
सबका मनखिल जाय,और पूरा हो सपना।
कहती सरला बात,सदा सबके दुख हरना।
जीवन है अनमोल,नहीं व्यर्थ तुम करना।।

*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
[20/01 6:09 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय  ----   *जाना , करना*
दिनांक  --- 20.1.2020....

(59)              *जाना*

जाना मत दिल तोड़के , ले लो इक सौगात ।
प्रीत प्यार पावन करें , मिलकर करनी बात ।
मिलकर करनी बात , सदा है तुम से कहना ।
तुम हो मेरा प्यार , नहीं निज दिल में रखना ।
कहना अपना हाल , प्रीत मेरा तुम पाना ।
तोड़ समस्या जाल , संग मेरे ही आना ।।



(60)                 *करना*

करना नित संघर्ष है , पाना है फिर नाम ।
श्रम से ही तो जीत है , मिलता एक मुकाम ।
मिलता एक मुकाम , साफ पीना तुम पानी ।
सदा रहना बुलंद , नहीं हो सेहत हानी ।
नित करना यूँ काम , साफ पानी ही भरना ।
चलता जब अभियान , सदा श्रम ही है करना ।।



🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
        दिनांक  20.1.2020....

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[20/01 6:10 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक - 20/01/2020
दिन - सोमवार
59 - कुण्डलिया (1)
विषय - जाना
**************
आना जाना तो लगा , दुनिया एक सराय ।
चकाचौंध को देख कर , सच्चाई बिसराय ।
सच्चाई बिसराय , सोचता यह घर तेरा ।
भूला प्रभु का नाम , मोह माया ने घेरा ।
नैया उसकी पार , भेद जिसने पहचाना ।
जीवन चलो सँवार , पड़े मत फिर से आना ।।

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60 - कुण्डलिया (2)
विषय - करना
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करना ऐसे काम तुम ,जग में होवे नाम ।
क्षणभंगुर जीवन मिला , मत करना अभिमान ।
मत करना अभिमान , प्रेम की ज्योति जला ले ।
दर्द द्रवित के अश्रु , नयन के नीर मिला ले ।
चलो सत्य की राह ,तनिक भी मत तुम डरना ।
रहे जगत में नाम , कर्म ऐसे ही करना ।।

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✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★
[20/01 6:11 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुंडलिया शतकवीर हेतु*

दिनाँक - 20.1.2020
कुंडलिया (59) *जाना*

आना जाना जीव का, लगा जगत में नित्य।
मृत्यु तिमिर के साथ है, जीवन है आदित्य।।
जीवन  है आदित्य, चक्षु अब मन के खोलो।
अंतर भरो उजास, सुखद सब स्वप्न सँजो लो  
कह प्रांजलि समझाय, मौत का नहीं ठिकाना।
जीना  है  भरपूर, लगा यह आना-जाना।।

कुंडलिया (60) *करना*

कहने  से करना भला, जो उत्तम हों काज।
औरों पर मत टालिए, करें अभी या आज।।
करें अभी या आज, समय कब करे प्रतीक्षा।
करिए  संभव मान, स्वयं फिर करें समीक्षा।।
कह प्रांजलि समझाय, कभी मत देना रहने।
कार्य करें तत्काल, किसी के रहे न कहने।।

पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[20/01 6:15 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु

(59)
विषय-जाना

जाना सबको एक दिन ,तज कर  यह संसार।
नाश वान  प्राणी  यहाँ, यही  जगत  का  सार।
यही  जगत  का सार , नहीं  कुछ शेष रहेगा।
ज्ञान और  सत्कर्म ,सुरभि  सा नित्य  बहेगा।
क्यों करना फिर पाप,लक्ष्य हो पुण्य कमाना।
करें सभी  जन  याद,  काम  ऐसे कर  जाना।



(60)
विषय-करना
करना हमको देशहित, बहुत बड़ा है कर्म।
धड़कन सुनना देश की ,देशभक्त का धर्म।
देशभक्त का धर्म, कुटिल हैं विघटनकारी।
रहे देश  को  तोड़, विध्वंस  मचाते  भारी।
लिया यही संकल्प, पड़े चाहे  अब मरना।
एक रखेंगे देश, निछावर तन मन  करना।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[20/01 6:22 PM] डॉ मीना कौशल: आगे

आगे -आगे बढ़ चलें,धीर वीर गम्भीर।
भाल सदा उन्नत करें,भारत के रणधीर।।
भारत के रणधीर,धुरन्धर हिम्मत वाले।
रक्षा में तैनात,भारती के रखवाले।।
हिम्मत इनका देख,शत्रु की सेना भागे।
भारत माँ के सैनिक ,चलते सबसे आगे।।

मौसम

मौसम के बदलाव को,देख हुए सब दंग।
कभी घिरी काली घटा,सुर्ख कभी है रंग।।
सुर्ख कभी है रंग,उड़ रहे नीरद नभ में।
झरती रिमझिम बिन्दु, बिखरते है सौरभ में।।
चंचल सी है छटा, सुहाना बारिश झमझम।
शीतलहर में ठिठुर,रहे हैं कैसा मौसम।।

जाना

जाना है सबको यहाँ,नहीं किसी का राज।
फिर भी रहता मोद मे, विचलित विकल समाज।।
विचलित विकल समाज,खोजते कमियाँ सबमें।
कर लो अच्छे कर्म,बसाओ मन को रब में।।
समय बीतता जाय,लौटकर है न आना।
जीवन को तज धाम,दूसरे आना जाना।।

करना

करना पावन कर्म तुम,होंगे ईश प्रसन्न।
मानस में गोविन्द हों,हृत् आसन आसन्न।।
हृत्आसन आसन्न,बसे होंं गिरधर मन में।
छाये नूतन विमल रंग,अभिनव जीवन में।।
हाथ तेरे पतवार,प्रभो मम पीड़ा हरना।
जीवन में खुशहाल,सभी को ईश्वर करना

डा.मीना कौशल,
[20/01 6:25 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: *20.01.2020 (सोमवार )* 
समीक्षक- सरस्वती समूह

59-   जाना
*********
जाना है जिसको कहो, उसको रोके कौन ?
जाने पर हलचल कहीं, और कहीं पर मौन।
और कहीं पर मौन, समय पर शोभित है सब।
मगर न होता ज्ञान, काल ग्रस लेता है जब।
"अटल" न चलें उपाय, न चलता तनिक बहाना।
असमय कोई जाय, बहुत खलता है जाना।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏

60-   करना
**********
करना हो वह सब करें, मगर रखें यह ध्यान।
मर्यादा कायम रहे, बिगड़ न जाये शान।
बिगड़ न जाये शान, न रिश्ता कोई टूटे।
सबका हो सम्मान, न कोई अपना रूठे।
"अटल" गिरे जो बात, समझ लो अपना मरना।
भलीभाँति लो सोच, आपको क्या है करना ?
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[20/01 6:38 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
•••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
.           *कलम की सुगंध छंदशाला* 

.           कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

.              दिनांक - २०.०१.२०२०

कुण्डलियाँ (1) 
विषय-  *जाना*
जाना तो तय हो गया, जब  जन्मा  इंसान।
दुर्लभ  मानुष देह यह, रख अच्छे अरमान।
रख  अच्छे अरमान, भारती  से  वर  माँगो।
बुरे   कर्म  परिहार, द्वेष  सब  खूँटी   टाँगो।
शर्मा   बाबू  लाल,  गीत  वीरों   के   गाना।
जन्म मिला जिस हेतु, काम पूरे कर जाना।
•.                  ••••••••••  
कुण्डलियाँ (2) 
विषय-   *करना*
करना केवल कर्म नर,मत कर फल की आस।
भले  कर्म  होते  फलित, मान   ईश  विस्वास।
मान   ईश   विश्वास,  कर्म   करना   उपकारी।
देश  धरा  आकाश,  पवन   पानी   हितकारी।
शर्मा   बाबू   लाल,  तिरंगे   हित   ही   मरना।
मृत्यु  शास्वत  सत्य, अमर  भारत माँ  करना।
•.                     •••••••••
रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
[20/01 6:41 PM] अनिता सुधीर: शतकवीर हेतु
*19.01.2020 (रविवार )* 

आगे 
स्वर्णिम युग है सामने,भूलें दुखद अतीत ।
आगे बढ़ते जाइये ,काल गया अब बीत ।
काल गया अब बीत,सुनहरी किरणें बिखरीं।
नवल सुखद प्रभात,लिये आशायें  निखरीं ।
मिटता उर संताप ,हुआ मुखड़ा अब रक्तिम।
बदल गया दिनमान,हुआ सुंदर युग स्वर्णिम।

मौसम

रातें ठंडी हो रहीं ,जलने लगे अलाव ।
मौसम के इस रूप में,अलग अलग हैं भाव।।
अलग अलग हैं भाव ,कहीं मौसम की मस्ती,
रहता कहीं अभाव,सड़क पर रातें कटती।
करती क्या सरकार,करे क्या खाली बातें,
हम सब करें प्रयास ,सुखद हो सबकी रातें।।
*20.01.2020 (सोमवार )* 
जाना

जाना सबको एक दिन,करें तीन अरु पाँच।
राजनीति हर क्षेत्र में ,घुट घुट मरता साँच ।
घुट घुट मरता साँच ,नहीं  कुछ लेना  देना ।
उलझ रहे हर बात, खिला के  झूठ चबेना ।
करते हैं क्यों रार,यहाँ  पर खाली आना ।
कर्म करें निष्काम,यहाँ से खाली जाना ।

करना
करना है कुछ काम क्यों,मिले मुफ्त जब माल।
लें सरकारी योजना ,   भूले अपनी चाल ।
भूले अपनी  चाल,करें अब झूठी बातें
मची छूट की लूट ,मिले हैं फर्जी खाते।
भूल गये औकात,सजा से भूले डरना ।
करो न अनुचित काम,नियम का पालन करना ।


अनिता सुधीर
[20/01 6:57 PM] चमेली कुर्रे सुवासिता: कलम की सुगंध छंदशाला 
*कुण्डलिया शतकवीर*

दिनांक- 20/01/2020
कुण्डलिया- ( *59*)
विषय - *जाना*
जाना मुझको है कहाँ , पीहर या ससुराल। 
मन ही मन सोचे सुता , बात यही हर हाल ।। 
बात यही हर हाल , पराई सब क्यों कहते। 
पुर्ण करे दायित्व , कष्ट हिय कितने सहते।।
सुवासिता पहचान , सदा रिश्तों को माना। 
पीहर या ससुराल , रहे बस आना जाना।।

कुण्डलिया -( *60*)
विषय - *करना*
करना ऐसे काम तुम , स्वच्छ रहे यह देश।
गाँव शहर रख साफ मन , जग को दे संदेश।। 
जग को दे संदेश , करो पूरा हर सपना। 
बीमारी से दूर, जगत में हो सब अपना।। 
सुवासिता दे ध्यान , पीर अपनो की हरना ।
फर्ज निभा खुद रोज, स्वच्छ भारत को करना।।

          🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[20/01 7:02 PM] धनेश्वरी सोनी: शतकवीर *कलम की सुगंध*
                    करना
                    
करना बातें जब कहीं, सच्ची सच्ची बात 
झूठ बोल बोला नहीं ,मारा आधी रात
मारा आधी रात, तड़पकर चिल्ला रोया
 गुस्सा करता खूब ,नहीं वह जतला पाया
 बदला लेने ठान ,गया वह  उसको कहना कहती गुल यह बात ,कभी ना गलती करना

                       जाना

 जाना माना जब लगे ,शब्दों का भंडार 
शब्द बने सागर वहां ,मांगे छंद अलंकार 
मांगे छंद अलंकार ,रचे जब अच्छी दोहा 
चुनते राहे हैं वहीं ,सफलता जिसने चाहा 
कांटे चुभते पग मिले ,कठिन है राहे माना 
कहती गुल यह सार ईश्वर सबको है जाना

         धनेश्वरी सोनी *गुल*बिलासपुर
[20/01 7:08 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला 

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 20.01.2020

कुण्डलियाँ (47) 
विषय-कोना
कोना मन का रिक्त है,भर भावों के रंग।
जीवनयात्रा हो सुगम,फिर अपनों के संग।
फिर अपनों के संग,यही है मेरा कहना। 
मानो मेरी बात,सदा अपनों में  रहना।
सुन लो अनु की बात,किसी को पड़े न खोना।
कर लो नेकी काम,रहे न रिक्त मन कोना।।



कुण्डलियाँ (48)
विषय-मेला
मेला है  दिन चार का,कर लो सुन्दर कर्म।
जाना है निज धाम को,सुन लो तुम ये मर्म।
सुन लो तुम ये मर्म,पड़ेगा सबको जाना।
करना मत फिर पाप,यहीं फिर होगा आना।
कहती अनु ये आज,कि ये तन मिट्टी  ढेला।
भज लो प्रभु का नाम,न जाने कब तक मेला।।


   
    

रचनाकार का नाम-

अनुपमा अग्रवाल
कलम की सुगंध छंदशाला 

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 20.01.2020

कुण्डलियाँ (49) 
विषय-धागा
धागा बाँधूं प्रीत का,अमर बहिन का प्यार।
ये बंधन अनमोल है,भाई से संसार।
भाई से संसार,यही बहना का गहना।
अद्भुत है ये प्रीत,यही बहना का कहना।
सुन लो अनु की बात,भईया को फिर माँगा।
है अनुपम उपहार,बँधा ऐसा ये धागा।।




कुण्डलियाँ (50)
विषय- बिखरी
बिखरी देखो चाँदनी,अद्भुत धरती रूप।
प्रकृति करे श्रृंगार है,सुन्दर रूप अनूप।
सुन्दर रूप अनूप,लगे कंचन सी काया।
आँचल जगमग ओढ़,धरा ने  निखार पाया।
कहती अनु ये आज,सजी सँवरी वधु निखरी,
वर्णन को कम शब्द,चाँदनी कैसी बिखरी।। 

   
    

रचनाकार का नाम-

अनुपमा अग्रवाल
[20/01 7:09 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
20/01/2020:: सोमवार

जाना
मैया मेरा जन्मदिन, है सबका अरमान।
जाना सबके घर मुझे, खाने को मिष्ठान।।
खाने को मिष्ठान, आज तो चोरी चोरी।
मुझे बुलाकर  लोग,धरें हैं भोग कटोरी।।
ले जाऊँ मैं साथ, बड़े बलदाऊ भैया।
कब टालूँ मैं बात, भक्त की प्यारी मैया।।

करना--
करना धरना कुछ नहीं, बस धरना ही काम।
मुफ़्त मिलेंगी रोटियाँ, और मिले आराम।।
और मिले आराम, बैठिए ओढ़ रजाई।
राजनीति की चाल, कराती खूब कमाई।।
जनता बने शिकार ,जेब नेता को भरना।।
मोहरे जन-समूह, न इनको है कुछ करना।।
                 रजनी रामदेव
                    न्यू दिल्ली
[20/01 7:16 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक- 20/01/2020

*जाना*

जाना होगा एक दिन,इस दुनिया को छोड़।
रिश्ते नाते मोह के, सारे बंधन तोड़।
सारे बंधन तोड़,नहीं चलती चालाकी।
रखे पूर्णता काज ,रहे जब जीवन बाकी।
कहती रुचि करजोड़,पड़े मत अब पछताना।
रखो सदा ये याद,एक दिन सबको जाना।

*करना*

जीवन यापन के लिए,करना ऐसा काम।
कभी उठे मत ऊँगली,सदा मिले सम्मान।
सदा मिले सम्मान,किसी का अहित न करना।
 स्थापित कर आदर्श,लोभ में कभी न पड़ना।
कहती रुचि करजोड़,सजे उर का यह उपवन।
भाव पुष्प हो पुष्ट,सदा महके ये जीवन।

✍ सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[20/01 7:16 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनांक 20 जनवरी 2020 
कलम की सुगंध छंद शाला
कुंडलियां शतक वीर हेतु
विषय .........   *जाना*
 जाना जाता है उसे,   प्रखर   पूज्य  आदर्श ।
जिसने निज पुरुषार्थ से, प्राप्त किया उत्कर्ष।।
प्राप्त किया उत्कर्ष , हुआ हर्षित जन-मन भी ।
उसका गौरव गान , किया करता कण-कण भी।।
कहे "निगम कविराज",सहज था तेरा  आना ।
कर जा  ऐसे कर्म ,  सफल हो आना - जाना।।

 विषय   ..........   *करना*
 करना सोच विचार कर, अपने सारे काम ।
मात-पिता निज बंधु से ,  कभी न रहना वाम।।
कभी न रहना वाम,  समय आड़ा जब आए ।
ये   बन जाते   छत्र , नियति अंगार गिराए ।।
कहे "निगम कविराज", मृदुल वाणी शुभ झरना।
मिले अमित प्रतिसाद, नमन - अभिवादन करना ।।

कलम से...
 कृष्ण मोहन निगम  
सीतापुर , जिला सरगुजा (छत्तीसगढ़)
[20/01 7:20 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध 
 शतक वीर हेतु कुंडलियां 
20/01/2020

करना (55)
करना मत चोरी कभी, कहना मत तुम झूठ।
 अपने प्यारे मीत से, मत जाना तुम रूठ ।।
मत जाना तुम रूठ, समझ लो दुनियादारी।
 काम बने सब नेक, समझ मत ये लाचारी।
 कह राधेगोपाल, सभी के दुख भी हरना।
 महनत कर ले हाथ, कभी चोरी मत करना।।

 जाना (56)
 जाना आना रीत है, जीवन के दिन चार।
 सबसे करलो प्रीत को, जो जीवन आधार।।
 जो जीवन आधार, करो तुम महनत पल पल।
छूते हैं जब नीर ,तभी करता है हलचल ।
कह राधेगोपाल, सभी कुछ खोना पाना ।
जीवन के दिन चार, अरे है सबको जाना।।

राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा 
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[20/01 7:27 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद 
20-1-2020

जाना 

जाना सबको है वहीँ, मन में तनिक विचार ।
चलना नेकी राह में,याद करे संसार ।
याद करे संसार, काम तुम ऐसा करना ।
अमर न कोई जान, एक दिन सबको मरना ।
कहते वेद पुराण, नहीं है तेरा ठिकाना ।
मीरा कहती मान, सभी को इक दिन जाना ।।

करना 
60

करना 

करना है वह आज कर,कल पर तू मत छोड़।
आये बुलावा काल का,चला जाय मुख मोड़ ।
चला जाय मुख मोड़, जाय फिर संग न धेला ।
मनुज जरा तू सोच, जगत है दो दिन मेला ।
कौड़ी कौड़ी जोड़, धनिक बन क्या इतराना ।
सब कुछ पीछे छोड़, एक दिन सबको जाना ।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[20/01 7:28 PM] पाखी जैन: कलम की सुगंध छंदशाला .
शतकवीर हेतु कुंडलियाँ

क्रमानुसार शेष ..,


51-- गलती 

प्रेम रोग सिर पर  चढ़ा, की गलती हे राम।
भागा न झाड़ फूंक से, दवा न आई काम 
दवा न आई काम ,,दूत भी राह भटकता,
 मिलता चैन न प्रेम , मन में है यह खटकता,
कहे पाखीे बात, न भूलो संजोग क्षेम 
गलती कर दी यार, लगा कर ये रोग प्रेम। 

52--बदला 
बदला बदला सा लगे, मुझे जहाँ  ये आज,
खत्म हुए हैं आज, जैसे मेरे काज,
जैसे मेरे काज, हुये हैं सब ही  शातिर
तुम ही  रहना पास,सदा माँ मेरी खातिर, 
हुआ खुशी से आज,हुआ  मन मेरा बगुला
 पाखी लगता आज, जहां ये बदला बदला।

53--तपती 

तपती सी ये राह है, चलना ना आसान,
दुनिया गोलमगोल है, समझो ना नादान,
समझो ना नादान, खुद में उलझता जाए,
उलझ उलझ के देख , खुद ही  फंसता जाए,
पाखी समझो खेल ,रहे भट्टी सी जलती 
नहीं जिंदगी पास, रहे सदैव ही तपती ।


मनोरमा जैन पाखी 
समीक्षार्थ 🙏🏻🙏🏻
[20/01 7:34 PM] कुसुम कोठारी: कमल की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
२०/१/२०२०
कुसुम कोठारी।

कुण्डलियाँ (५९)

विषय-जाना
पाना है बस लक्ष्य को  ,अलग-अलग है चाह।
जाना होगा एक दिन,  पकड़ एक ही राह ।।
पकड़ एक ही राह , जगत है रैन बसेरा ।
छोड़ यहां सब काम,   कहां होगा अब डेरा।
कहे कुसुम सुन बात , सदा शाश्वत है जाना 
कर लो उत्तम कार्य , वहां सद्गति हो पाना ।

कुण्डलियाँ (६०)

विषय-करना
दानव वध कर भैरवी, उग्र दिखाया रूप ।
दुष्ट दंश करना  सदा , है तू शक्ति स्वरूप ।
है तू शक्ति स्वरूप, भवानी तू ही विजया ।
तू माता का रूप ,  बुद्धिदा , ब्राह्मी नित्या ।
कहे कुसुम कर जोड़ , शरण में आजा मानव ।
शूलधारिणी शूल ,  हनन करता हर दानव ।।

कुसुम कोठारी।
[20/01 7:37 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला
 प्रणाम। 
 कुंडलियाँ शतक वीर के लिए रचना।दि20-1-2020
डॉ श्रीमती कमल वर्मा
 कुंडलियाँ क्रमांक 63
 विषय_जाना
 जाना कहाँ किसे पता,  मंजिल है अनजान।
 राही थकना है मना, कहना मेरा मान।। 
 कहना मेरा मान, नहीं है बस में तेरे।
 जीवन को पहचान,लगे पथ में अंधेरे।। 
 कहे कमल कर जोड़,राह अनजानी माना। 
  यह रास्ता सुनसान,धुंध में चलते जाना। 

 कुंडलिया क्रमांक 64
 विषय_करना
 करना अपनें हाथ है, जिसको कहते कर्म। 
 यही सत्य है जिंदगी,यही हमारा धर्म। 
 यही हमारा धर्म,कार्य तू करते जाना। 
 प्रभु है तारणहार,उसी से प्रीत लगाना।                                         कहे कमल मत सोच,यहीं है सब कुछ भरना। 
बाद संभल न पाय,कार्य बस अच्छे करना।                          कृपया समीक्षा करें।
[20/01 7:45 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध शतकवीर प्रतियोगिता कुंडलियां
 19/1/2020
दिन-रविवार

(57) आगे

आगे आगे रथ चला, पीछे पुर नर नार।
 विकल हृदय सब चल रहे, रामहि राम पुकार।
रामहि राम पुकार,  संग आये  पुर वासी
 कर तमसा विश्राम  , सो गये   लिए   उदासी।
 कह प्रमिला कविराय,  नही पुरवासी जागे।
 सोवत सबको चले , छोड़ प्रभु आगे आगे।।

(58) मौसम

 मौसम ने टेढ़े किये, जब से अपने नैन।
  शीत लहर से हो  गये , बाल वृद्ध वेचैन।
बाल वृद्ध वेचैन,   छुपे हैं ओढ़ रजाई।
 रोगी  अति कमजोर, जनों की सामत आई।।
 कह प्रमिला कविराय,   बरसता नूपुर सा हिम
    प्रकृति बदलती रुप, बदलता है  जब मौसम।।

 प्रमिला पान्डेय
[20/01 7:45 PM] अभिलाषा चौहान: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ(५९)
विषय-जाना


जाना प्रभु के धाम है,करो काम बस नेक।
माटी में माटी मिले,सोचो सहित विवेक।
सोचो सहित विवेक,बूँद मिलती सागर में।
खोती है अस्तित्व,नाम बस रहता जग में।
कहती'अभि'निज बात,सत्य क्यों तन को माना।
कुछ दिन का ये खेल,छोड़ कर सब है जाना।

कुण्डलियाँ(६०)
विषय-करना

करना कर्म विचार के,बने वही पहचान।
करते हैं सत्कर्म जो,बनते सदा महान।
बनते सदा महान,भला वे सबका करते।
पीड़ित शोषित लोग,आस उनसे ही रखते।
कहती'अभि'निज बात,खुशी जीवन में भरना।
फूले-फले समाज,काम नित ऐसे करना।

रचनाकार-अभिलाषा चौहान
[20/01 7:48 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक--20/1/2020

59
जाना
माया के वश में फसा,छोड़े घर-परिवार।
जाना सबको एक दिन,दुनिया के उस पार।
दुनिया के उस पार,करे क्यों मारामारी।
लालच को लत छोड़,बुरी है यह बीमारी।
धन के पीछे दौड़,किसी ने सुख है पाया।
मिलता सुख परिवार,बड़ी यह ठगनी माया‌।

60
करना
पल-पल बीते दिन यहाँ,ढलती जीवन शाम
करना जीवन में हमें,कोई अच्छा काम।
कोई अच्छा काम,भला हो निर्बल मन का।
करता जगत प्रणाम,बना वो संगी जन का।
कहती अनु सुन बात,किसी को दे सुख हरपल।
मिलता दूना लौट,वही पल घूमे पल-पल

अनुराधा चौहान
[20/01 7:50 PM] अनंत पुरोहित: कलम की सुगंध छंदशाला
कार्यक्रम कुंडलियां शतकवीर हेतु
अनंत पुरोहित अनंत 

57) आगे

आगे कल की सोच मत, रह इस पल में मग्न।
आया भी था नग्न तू, जाएगा भी नग्न।
जाएगा भी नग्न, सभी पीछे छूटेगा।
क्या लाया था संग, कि क्या लेकर जाएगा।
कह अनंत कविराय, मोह के पीछे भागे।
माया मिले न राम, सोच मत कल की आगे।

अनंत पुरोहित अनंत
[20/01 7:50 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध  शतक वीर  प्रतियोगिता  कुंडलियां 
 सोमवार/20/1/2020
 विषय शब्द
जाना/करना

(59)जाना

   जाना है तो जा अभी,  कर बैरी से प्रीत।
  बनवासी बालक फिरै , मुझे न कर भयभीत।
 मुझे न कर भयभीत,    पिता ने देश निकाला।
 वानर भालू चार,  उसी  का  देय हवाला।
  कह प्रमिला कविराय  ,  मैं लंकापति बलवाना।
 जीत सके न कोय, कहीं ना हमको जाना।।

 (60) करना

करना हो जब देश हित, सीमा पर कुछ काम।
  दुश्मन को दो मात तुम,  सोचो मत परिणाम।
 सोचो  मत परिणाम, तिरंगा शान हमारी।
     हो जाओ बलिदान,  यही पहचान तुम्हारी।।
 कह प्रमिला कविराय, देश हित पड़े जो मरना
 जानो जीवन धन्य,  व्यर्थ जी कर क्या करना।।

 प्रमिला पान्डेय
[20/01 8:16 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंद शाला* 
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु 
          
             *(59)जाना* 

जाना सागर पार तो,गहराई को भाप।
मूल्य छिपे गहरे सभी,अंदाजे से माप।
अंदाजे से माप,पार हो जाए सागर।
बूँद बूँद है सार,बूंद से भरती गागर। 
कहती मधुर विचार, विजय मति से है पाना।
कठिन काज हो सुगम,बुद्धि पथ गढ़ते जाना।
                 *(60)करना* 

जैसी करनी कीजिये, फल वैसा ही पाय।
सोचसमझ करना सदा,फलदायक हो जाय ।
फलदायक हो जाय,सफल सब काज हमारे ।
मन हर्षित हो गाय,कृष्ण को साँझ सकारे।
कहती मधुर विचार, समझदारी हो ऐसी।
सुखद सुहानी होय,रातदिन तारों जैसी।

 *मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[20/01 8:30 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध शतकवीर प्रतियोगिता हेतु कुंडलियाँ*
*सोमवार - २०/०१/२०२०*

*विषय शब्द:- जाना & करना*

*५९ जाना*

दीवानों  की बात  को , कब *जाना* संसार |
जानबूझकर कर रहा , इन पर अत्याचार ||
इन पर अत्याचार, हुआ है जग भी बैरी |
धीरे-धीरे हाय, ढली अब धूप सुनहरी |
कह विदेह कविराय, अरे इनको पहचानो |
करुणा के ही पात्र, रहे जग में दीवानों ||

*६० करना*

गठबंधन   के  साथियों,  *करना*  तो  विश्वास |
बाटूँगा   उम्दा   सुरा  , आगे   करो   गिलास |
आगे करो गिलास , कि मत लोटा लुढ़काओ |
थोड़ी पी लो आज, सुरा कुछ भर  ले  जाओ |
मुफ्त मिला  है  तात,  घिसो  चंदन  रघुनन्दन |
शायद  इक-दो साल ,चलेगा    ये   गठबंधन ||

*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा ,ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
[20/01 8:30 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*

दिनांक -१९/०१/२०२०

*५७ आगे*

आगे चलने के लिए, करते रहिए यत्न |
तुम हो साधो मित्रवर, एक अनोखे रत्न |
एक अनोखे रत्न, तुम्ही हो जग के नायक |
पुरुषोत्तम हो तात,सभी के सदा सहायक |
कह विदेह कविराय, सभी सुख तुमने त्यागे |
कृपा करें श्री राम, रहो तुम हरदम आगे ||

*५८ मौसम*

मौसम जैसे बदलते, कभी छाँव अरु धूप |
दिनकर, बादल हो तुम्ही, गजब तुम्हारा रूप |
गजब तुम्हारा रूप, हृदय के तुम हो रसिया |
छेड़ बाँसुरी तान, सुलक्षण हो मनबसिया |
कह विदेह कविराय, निकलता है मेरा दम |
मन में उठते ज्वार,बदलते जैसे मौसम ||

*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा, ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
[20/01 8:34 PM] उमाकांत टैगोर: *कुण्डलिया शतकवीर हेतु*
*दिनाँक- 15/01/20*
कुण्डलिया(51)
विषय- गलती

थोड़ा कुछ तो सीखिए, हर गलती से आप।
जीवन गंगा ज्ञान है, कौन सका है नाप।।
कौन सका है नाप, ज्ञान के इस सागर को।
इसमें से ले नीर, भरो अपने गागर को।।
निकल न जाये दूर, समय का हठ्ठी घोड़ा।
मिले कहीं से सीख, वहाँ से रख लो थोड़ा।।

कुण्डलिया(52)
विषय - बदला

पैसा बदले चाल को, बदले सोच विवेक।
पैसा पाकर के कभी, रहे न कोई नेक।।
रहे न कोई नेक, फूल बनते अंगारे।
दुख में रहता बाप, उसे बेटा दुत्कारे।।
कलयुग देखो आप, हुआ परिवर्तन कैसा।
बदला मन का रंग, खूब पाकर के पैसा।।

रचनाकार-उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर(छत्तीसगढ़)
[20/01 8:34 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध छंद शाला.....कलम शतकवीर 
हेतु
★★★★★★★★★★★☆★★★★★
          *विषय.......जाना*
            विधा........कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★★
जाना  मैंने  जब  तुझे , देखा चारो ओर।
लगती तुम हो सांवली, मैं हूँ माखन चोर।।
मै  हूँ  माखन  चोर ,पास तुम मेरे आओ।
मधुर मिलन के गीत,साथ तुम मेरे गाओ।।
कहता  है  श्रीवास ,तुझे  मैं  अपना  माना।
बनता जीवन खास,नहीं अब तुमको जाना।।
★★★★★★★★★★★★★★★★
                विषय.......करना
                विधा........कुण्डलियाँ
               ★★★★★★★★★
करना पावन कर्म है , मिलता  वैसा  मान।
वाणी मधुरिम भी कहो,होगा जग में शान।।
होगा  जग में  शान, सदा ही पारस बनता।
लिखता भारत गान,बने वह सादर समता।।
कहता  है  श्रीवास,  देश हित जीना मरना।
काम करो सब खास,धर्म परहित का करना।।
★★★★★★★★★★★★★★★★★

स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[20/01 8:47 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध 
कुंडलियाँ शतक वीर हेतु
दिनाँक-२०/०१/२०२०
कुण्डलियाँ
जाना
-------
जाना सबको है कभी,रहना भी यदि चाह।
पल दो पल का साथ है,अपनी -अपनी राह।।
अपनी-अपनी राह,यहाँ कुछ करके जाएँ।
हमको होगा नाज,खास जो लेकर आएँ।।
कहे निरंतर बात,सदा जो मन की माना।
टूटे मत विश्वास,भले ही तज कर जाना।।

करना
---------
करना है यदि काम तो,मन से कर लो आज।
पूरी निष्ठा से करो,आदत से हो बाज।।
आदत से हो बाज,मिले मंजिल फिर कैसे।
छेड़ो कोई साज,मधुर गायन हो जैसे।।
कहे 'निरंतर'बात,पिछड़ जाओगे वरना।
आलस का हो त्याग,लगन से कुछ भी करना।।

अर्चना पाठक 'निरंतर'
[20/01 8:51 PM] सुधा सिंह मुम्बई: बाती 
बाती में जब लौ न हो, गृह अँधियारा होत 
बिन कष्टों के सुख नहीं, बदलो अपनी पोत 
बदलो अपनी पोत, 
हमें बाती सिखलाती 
हो अंधड़ से रार, 
जीत का राज बताती 
अँधियारा दे चीर, 
साथ घी का जब पाती  
करती ऐसा कर्म, कीर्ति है पाती बाती

पोत(संस्कृत) :ढंग, प्रवृत्ति

 समीक्षा हेतु
सुधा सिंह
[20/01 8:55 PM] सुशीला जोशी मुज़्ज़फर नगर: *कलम की सुगंध कुंडलियाँ प्रतियोगिता 2019-2020*

19-01-2020

 57-- *आगे*

चाहे  झंझावात हो  , थमो नही तुम वीर 
आगे आगे बढ़ चलो  , मन मे धर कर धीर 
मन मे धर कर धीर , सोचना बस  आगे की 
विपदा आये पास , लाज रखना धागे की 
 मिले रेशमी सेज , मिले ठंडी सी आहें 
आगे बढ़ना वीर , झंझावात हो  चाहे ।

58-- *मौसम*

मौसम रंगों को बदल , खिल खिल कर इठलाय 
दिखला अपने रूप को , टेढ़ा हँसता जाय 
टेढा हँसता जाय , देख कर जन जन दुख को 
दे कर फिर  उपहार , हृदय महसूसे सुख को 
सर्दी गर्मी बाढ़ , ताल देते है सम पर 
अपने समय पर आय , रंग हँसते   मौसम  पर ।

*कलम की सुगंध कुंडलियाँ प्रतियोगिता 2019-2020

20-01-2020

59--- *जाना*

सबको जाना यहाँ से , रहना किसका होय 
चार दिन की जिंदगी , रहना किस विध होय 
रहना किस विध होय , मृत्यु कर रहता पहरा 
जन्म मरण के साथ , रहा है नाता गहरा 
जाने नाही कोय , मौत आये है कबको 
रहना किसका होय , यहाँ से जाना सबको।

60---- *करना*

कर लो सब कुछ छोड़ कर,जो भी  मन में आय 
समय बीत के जाने से  , मन पछताता  जाय 
मन पछताता जाय , काम नही पड़ता करना 
आत्मग्लानि  का बोझ , सदा पड़ता है भरना 
पूरे करने स्वप्न ,धीर को  धारण कर लो 
जो भी मन मे आय , छोड़ कर सबकुछ कर लो ।

,सुशीला जोशी 
मुजफ्फरनगर
[20/01 9:01 PM] नीतू ठाकुर 'विदुषी': *कलम की सुगंध छंद शाला* 
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु 
          
             *जाना* 

जाना है संसार से,कर लो पूरे काम।
तन पल पल मिटता मगर , रह जायेगा नाम।।
रह जायेगा नाम , कर्म से मानव पाता।
मन होता बेचैन , छोड़ जीवन जब जाता।।
ढूँढो कुछ उद्देश्य, व्यर्थ क्यों हो जग आना।
पाना है पहचान, छोड़ सबको है जाना।।

 *नीतू ठाकुर 'विदुषी'
[20/01 9:02 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु
कुंडलियाँ -59
दिनांक -20-1-20

विषय -जाना

जाना सबको छोड़ के, मायावी संसार l
काहे माया से बँधा, करता है तकरार l
करता है तकरार, जगत में गर तू आयाl 
 थोड़ा कर उपकार, दिया जो वो ही पाया l
कहती सुनो सरोज,
नेक कारज से पानाl सबसे तू सम्मान,
छोड़ दुनिया तब जानाl

कुंडलियाँ -60
दिनांक -20-1-20

विषय -करना

करना जीवन में अभी, हितसाधन के काम l
करते जाना है सदा,  करना है आयाम l
करना है आयाम,दिया  तूने है दाता l
मुझको ये उपहार,
मदद करना है भाता l
कहती सुनो सरोज, सदा संकट को हरनाl
सीखूँ मैं ये काम,  अभी मुझको है कुछ  करना l

सरोज दुबे 
रायपुर छत्तीसगढ़ 
🙏🙏
[20/01 9:14 PM] राधा तिवारी खटीमा: सुधारोप्रांत
कलम की सुगंध 
 शतक वीर हेतु कुंडलियां 
20/01/2020

करना (55)
करना मत चोरी कभी, कहना मत तुम झूठ।
 अपने प्यारे मीत से, मत जाना तुम रूठ ।।
मत जाना तुम रूठ, समझ लो दुनियादारी।
 काम बने सब नेक, समझ मत ये लाचारी।
 कह राधेगोपाल, सभी के दुख भी हरना।
 श्रम करलो दिन रात, कभी चोरी मत करना।।

 जाना (56)
 जाना आना रीत है, जीवन के दिन चार।
 सबसे करलो प्रीत को, जो जीवन आधार।।
 जो जीवन आधार,  मेहनत करलो पल पल।
छूते हैं जब नीर ,तभी करता है हलचल ।
कह राधेगोपाल, सभी कुछ खोना पाना ।
जीवन के दिन चार, अरे है सबको जाना।।

राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा 
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[20/01 9:17 PM] शिवकुमारी शिवहरे: Title: जाना

Date: 20 Jan 2020

Note:
जाना

जाना है सबको सभी,एक दिन दुनिया छोड़।
कर्म सदा करते चलो, प्रभु से नाता जोड़।
प्रभु से नाता जोड़,छोड़के दुनिया सारी।
लोभ मोह को त्याग, सभी से करले यारी।
जीवन बने उद्देश्य, सदा तुमने है माना।
दुनिया जाये छोड़,एक दिन सभी को जाना।

शिवकुमारी शिवहरे




Date: 19 Jan 2020

Note:
सबका

दाता सबका एक है, रुप भये अनेक।
रूप अलग है पूजते,मन केवल है एक।
मन केवल है एक,सदा करते है पूजा
मंगल मूरत रूप, प्रभु बिन कोई न दूजा।
प्रभु हदय आगार, हमारा सबका नाता।
सबके दाता राम, सबका एक है दाता।

शिवकुमारी शिवहरे


Title: मेरा

Date: 19 Jan 2020

Note:
मेरा

मेरी हरि अरजी सुनो,सब जग सर्जनहार
तुम बिन कोई नही,स्वारथ का संसार।
स्वारथ का संसार, हे ईश्वर के अविनाशी
लीजे मोहे उबार,हे प्रभु विश्वेशर काशी।
रखलो मेरी लाज,सदा  चरणों मे  तेरी
सुमर सदा हरि नाम, हरिअर्ज सुनो अब मेरी

शिवकुमारी शिवहरे


Title: धागा

Date: 18 Jan 2020

Note:
(No Text Provided..

धागा

धागा रेशम प्रेम का,राखी का त्यौहार।
प्रेम रिश्तों से जुड़ा, भाई बहिन का प्यार।
भाई बहिन का प्यार,सदा से बहिना आती।
ये रेशम की डोर,हमेशा राखी लाती।
एक पेड़ के फूल,धागा प्रेम के पागा।
समय न डाले धूल, रेशम प्रेम का धागा

शिवकुमारी शिवहरे


Title: आँगन

Date: 20 Jan 2020

Note:
आँगन

सूना आँगन सा लगे,सूना घर का द्वार
बेटी की जब हो विदा,रोता है परिवार।
रोता हे परिवार,विदा बेटी की होती।
लगी आँसू की धार,माता लिपटकर रोती।
पापा का तो प्यार, रहे माता से है दूना।
आँगन का चौबार, लगे बेटी बिन सूना।

शिवकुमारी शिवहरे


Title: गहरा

Date: 19 Jan 2020

Note:
गहरा

गहरी नदियाँ है भरी, गहरा सागर नीर।
रत्न गहराई मे मिले , बनो गहर गंभीर
बनो गहर गंभीर , गहरा कुआँ का पानी।
मीठा गहरा नीर, सखी  दुनिया ने मानी।
बारिस की ये बूँद ,गिरी पातों पर ठहरी।
गहरा मीठा नीर, भरी  है नदियाँ  गहरी।


शिवकुमारी शिवहरे
[20/01 9:32 PM] गीतांजलि जी: कुण्डलिया शतकवीर - संशोधित

(५९) जाना 

जाना कपि तुम सिंधु तर, लंका नगरी द्वीप। 
राक्षस हैं बसते जहाँ, रावण जहाँ महीप।।
रावण जहां महीप, बली बहु मिथ्या-चारी।
ढूँढो जा उस स्थान, सती सिय मात हमारी।।
जाम्बवंत वर वृद्ध, कहें सुन प्रिय हनुमाना।
ले कर प्रभु का नाम, कर्म सब करते जाना।।

(६०) करना 

करना आ कर नाथ हे, मेरा भी उद्धार।
पड़ी दुष्ट के हाथ हूँ, स्वर्णिम कारागार॥
स्वर्णिम कारागार, प्रिया तव पत्नी प्यारी।
घेरें मुझको देव, असुरियाँ अति भयकारी॥
आ न सके यदि आप, पते, निश्चित मम मरना।
खायेंगे खल भून, राम, देरी मत करना॥

गीतांजलि

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