[06/01 6:00 PM] संतोष कुमार प्रजापति: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
दिनांक - 06/01/2020
कुण्डलिया (35)
विषय- छाया
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छाया सिर माँ - बाप की, है सुख का आधार l
इन्हें खुशी हरदम रखो, कभी न समझो भार ll
कभी न समझो भार, समय अनुकूल रहेगा l
यश फैले चहुँ ओर, नहीं पथ शूल रहेगा ll
कह 'माधव कविराय', जनक जिस घर हर्षाया l
रचे कई प्रतिमान, मिली ईश्वर की छाया ll
कुण्डलिया (36)
विषय- निर्मल
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किसका मन निर्मल रहे, इस कलयुग में यार I
निर्मल ही निर्मल कहाँ, बिछा रहे हैं खार ll
बिछा रहे हैं खार, हमें गुल ही दिखते हैं l
बने हुए हमदर्द, अधोगति वे लिखते हैं ll
'माधव' हाँके डींग, वही मौके पर खिसका l
रखो फूँक कर पाँव, भरोसा है अब किसका ll
रचनाकार का नाम-
सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
महोबा (उ.प्र.)
[06/01 6:03 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुंगध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर हेतु
दिनाँक - 06.01.2020 (सोमवार )
(35)विषय - छाया
छाया तरुवर से मिले, वन से रिश्ता जोड़।
स्वच्छ रहे पर्यावरण,इससे मुँह मत मोड़।।
इससे मुँह मत मोड़,साथियों वचन निभाना।
छाया हो भरपूर, आज से पेड़ लगाना।।
कहे विनायक राज, बदलती इससे काया।
सुख मिलता है बैठ,मिले जब तरुवर छाया।।
(36)विषय - निर्मल
निर्मल गंगा नीर से, मिटे सकल संताप।
पापनाशिनी सुरसरी, रक्षा करना आप।।
रक्षा करना आप, मैल को दूर हटाना।
रहे प्रदूषण मुक्त, सभी को है समझाना।।
कहे विनायक राज,बहे नित गंगा कलकल।
इसकी रहे ख्याल, सदा पावन हो निर्मल।।
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[06/01 6:03 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
••••••••••••••••••••••••••••बाबूलालशर्मा
. *कलम की सुगंध छंदशाला*
. कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
. दिनांक - ०६.०१.२०२०
कुण्डलियाँ (1)
विषय- *छाया*
छाया अम्बर की मिले , शैय्या धरती मात!
पवन सुनाये लोरियाँ, प्राकृत दे सौगात!
प्राकृत दे सौगात, करे तरु शीतल छाया!
छाया कुहरा शीत, मदन बासंती भाया!
शर्मा बाबू लाल , गीत छाया जो गाया!
छाया छायावाद, मनुज चाहे घर छाया!
. ••••••••••••
कुण्डलियाँ (2)
विषय- *निर्मल*
निर्मल तन मन वचन हो, जैसे गंगा नीर!
पवन निर्मला भूमि हो, सागर नद सर तीर!
सागर नद सर तीर, भाव भाषा मय कविता!
निर्मल शासन लोक, रोशनी चंदा सविता!
शर्मा बाबू लाल, खेत सर रहे न निर्जल!
सृष्टि धरा ब्रह्मांड, रहे जनमानस निर्मल!
•. •••••••••••
रचनाकार -✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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[06/01 6:06 PM] धनेश्वरी देवाँगन 'धरा': *कुँडलिया शतक वीर हेतु*
35). छाया
छाया बरगद पेड़ की , लगे पिता के तुल्य।
मिले सदा ही आसरा , होवे बड़ा अमूल्य ।।
होवे बड़ा अमूल्य , सुहागन बाँधे धागा ।
रहे विष्णु का वास ,भाग्य सेवा से जागा ।।
सुनो "धरा" की बात , बुजुर्गों सा है साया ।
मिले सुरक्षा नित्य , सदा हो शीतल छाया ।।
36). निर्मल
निर्मल मन के भाव हों , बहे सदा रस धार ।
स्वच्छ स्वस्थ हो धारणा , उत्तम रहे विचार ।।
उत्तम रहे विचार , शुद्ध होवे मन दरपन ।
रहे नैन में नेह ,प्राण कर परहित अरपन ।।
सुनो "धरा" की बात ,नदी सम हो मन चंचल ।
सरस हृदय के भाव ,भावना सुन्दर निर्मल ।।
*धनेश्वरी देवांगन धरा*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*
[06/01 6:06 PM] चमेली कुर्रे सुवासिता: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुण्डलिया शतकवीर*
दिनांक- 06/01/2020
कुण्डलिया- ( *35*)
विषय- *छाया*
छाया चलती साथ में , बन कर के हमराह।
देह उसे पहचानती , संग चले हर राह।।
संग चले हर राह , बहुत ये लगता प्यारा।
अगर छोड़ दे हाथ , लगे अधुरा जग सारा ।।
सुवासिता के प्राण, करे है हरदम माया।
सुख दुख में साथ,सदा ही देती छाया।।
कुण्डलिया -( *36*)
विषय - *निर्मल*
निर्मल बालक मन रहें, भेद भाव से दूर।
खुद रूठे खुद मानते , खेल खेल में चूर।।
खेल खेल में *चूर*, *चूर* शीशे सा होते ।
होते वृद्ध *रंज*, *रंज* हो बच्चें रोते ।।
सुवासिता मन *राग*, *राग* कर देते अविरल
मन हर लेती *बात*, *बात* के बालक निर्मल।।
*चूर*-थक कर शिथिल हो जाना
छोटे छोटे तुकड़े में बट जाना
*रंज* - दुख
नाराज़
*राग*- संगीत के लय
प्रेम
*बात*- कथन, प्रसंग
🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[06/01 6:08 PM] सरला सिंह: *************************************
*06/01/20*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन - सोमवार*
*दिनांक-06/01/20*
*विषय: छाया*
*विधा कुण्डलियाँ*
*35-छाया*
तेरी छाया में पली,काया मिली अनूप।
माया तेरी ही रही ,बढ़ा रंग औ रूप ।
बढ़ा रंग औ रूप, ज्ञान तुमसे ही आया।
चलने की औकात,मात तुमसे ही पाया।
कहती सरला आज,बात सुन ले मां मेरी।
करना इतना मात ,मिले नित दरसन तेरी।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
*06/01/20*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
*दिन - सोमवार*
*दिनांक-06/01/20*
*विषय: निर्मल*
*विधा कुण्डलियाँ*
*36-निर्मल*
ऐसा निर्मल है सखी, माता का दरबार,
आये जो इक बार है,आये फिर हरबार।
आये फिर हर बार,करे दरबार की फेरी।
ममता का इक छांव, रहे तलाश मां तेरी।
सरला कहती आज, नहीं कोई मां जैसा।
सबकी रखती लाज, लगे सबको ही ऐसा।
*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
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[06/01 6:08 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु
कुंडलियाँ -35
दिनांक -6-1-20
विषय -छाया
छाया बन कब तक रहूँ, बिटिया तेरे साथ l
संग नहीं कोई चले, छूटे सबका हाथ l
छूटे सबका हाथ, पार खुद करना पड़ता l
खेना पड़ता नाव, तभी जीवन है बढ़ता l
कहती सुनो सरोज, रखो तुम सबसे मायाl
रहना सबके साथ, साथ कब रहती छायाl
कुंडलियाँ -36
दिनांक -6-1-20
विषय -निर्मल
निर्मल अपना मन रखो, निर्मल सदा विचार l
निर्मल बनके तुम रहो, निर्मल हो आचार l
निर्मल हो आचार,बहो निर्मल नद बनकर l
निर्मल सी हो धार,प्रेम बन बरसो जमकर l
कहती सुनो सरोज,
नहीं हो मन में हल चल l
होगा प्रभु का वास, रखो तन मन सब निर्मल l
सरोज दुबे
रायपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏
[06/01 6:11 PM] डॉ मीता अग्रवाल: *कलम की सुगंध छंद शाला*
कुंड़लिया छंद शतकवीर हेतु
6/1/2020
*(35)छाया*
छाया लगे सुहावनी, वट पीपल औ आम।
वृक्ष लगे वरदान है,पवन चलत दे दाम।
पवन चलत दे दाम,लगे है बड सुखदाई।
धरा रहे जी मगन, छाय मौसम तरुणाई ।
कहती मधुर विचार,सृष्टि में फैली माया।
फागुन गाए फाग,बसंती रितु की छाया।
*(36)निर्मल *
बहता निर्मल नीर है, कल कल छल-छल धार।
झरना झर झर है बहे,ऊँचे पर्वत पार।
ऊँचे पर्वत पार,ढलक ढल बहती धारा।
दुग्ध से झरते झाग,मोहती है मन सारा।
कहती मधुर विचार,नीर गति कानों कहता।
गति ही तरक्की द्वार,जीव गति जल सा बहता।
*मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
[06/01 6:15 PM] अनिता सुधीर: शतकवीर हेतु
35
छाया
झगड़े होते देखता ,घर का बरगद पेड़ ।
छाया भी तुम बाँट लो,बँटी खेत की मेड़।
बँटी खेत की मेड़,उठी घर में दीवारें ।
बरगद हुआ निराश ,तले रहते थे सारे।
उसकी टूटी आस ,करें छाया पर रगड़े।
सूख गया वो आज,नहीं सह पाया झगड़े ।
36
निर्मल
निर्मल मन में वास है,काशी काबा पीर।
मंदिर मस्जिद ढूँढते,बसें राम उर तीर।
बसें राम उर तीर,सदा रखिये मन चंगा।
मन में सारे तीर्थ, रहे कठवत में गंगा ।
जीवन समिधा डाल,खरच होता ये प्रतिपल।
रखिये शुद्ध विचार, रहेगा जीवन निर्मल ।
अनिता सुधीर
[06/01 6:17 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 05.01.2020 (रविवार ) की समीक्षा उपरांत संशोधित कुंडलियाँ
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33- विजयी
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हर्षित मन में हैं छिपे, देखो विजयी भाव।
बुझे-बुझे से जो रहे, उनमें दिखा अभाव।
उनमें दिखा अभाव, सहज कुछ समझ न पाते।
मन का हाल खराब , इसे अवसाद बताते।
"अटल" इसी में डूब, बहुत हो जाते चर्चित।
खुद को लेते मार, नहीं जो रहते हर्षित।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
34- भारत
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भारत अपना देश है, हमको है अभिमान।
देश धर्म पर जो हुआ, वह अनुपम बलिदान।
वह अनुपम बलिदान, अमरता को वह पाता।
थाम तिरंगा हाथ, मृत्यु तक वह मुस्काता।
"अटल" लगे जयकार, यही इस दिल की चाहत।
विश्व गुरू बन जाय, पुनः अपना यह भारत।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
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06.01.2020 (सोमवार ) की ताजा कुंडलियाँ
35-छाया
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छाया हो माँ-बाप की, चिंता की क्या बात ?
कदम-कदम पर शुभ घड़ी, दिन हो या फिर रात।
दिन हो या फिर रात, मौज में बीते जीवन।
इनका हुआ अभाव, बड़ा मुश्किल है पल-छिन।
"अटल" बड़ा है भाग्य, मिली जिसको यह माया।
करे हमेशा याद, छिने जिससे यह छाया।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
36- निर्मल
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निर्मल तन-मन में छिपा, खुश रहने का राज।
खुश रहकर जो भी करें, सफल समझिए काज।
सफल समझिए काज, अंत में मिलता है धन।
यश भी बढ़ता जाय, करे हर कोई वंदन।
"अटल" बनो जलधार, बहे जो होकर अविरल।
सबकी प्यास बुझाय, रखो अन्तर्मन निर्मल।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[06/01 6:20 PM] वंदना सोलंकी: नमन🙏
सादर समीक्षार्थ
6-1-2020
माँ जैसा कोई नहीं
दोहा छंद
1)
माँ जैसा कोई नहीं,मही गगन के बीच।
देती आँचल छाँव वह,रखती उर में भींच।।
2)
माँ जैसा कोई नहीं,होती ईश समान।
उसकी महिमा प्रभु करें,पूजे ज्यों भगवान।।
3)
माँ जैसा कोई नहीं, बच्चों की है मित्र।
संतति को संस्कार दे,गढ़कर उनका चरित्र।
4)
माँ जैसा कोई नहीं,हो कोई भी काल।
बच्चों के कटु बोल को,हँसकर देती टाल।
5)
माँ जैसा कोई नहीं,
देती वो आशीष।
उसके पांव पखारिये, रख चरणों में शीश।।
-वंदना सोलंकी©स्वरचित
[06/01 6:21 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक--6/1/20
35
छाया
छाया तरुवर की सदा,छाए चारों ओर।
चहके चिड़िया नीड़ में,उजली सुंदर भोर।
उजली सुंदर भोर,रहे हरियाली धरती।
कलियाँ बनती फूल,महक जीवन में भरती।
कहती अनु सुन आज,बड़ी सुंदर यह माया।
चलो लगाएं पौध,मिले तरुवर की छाया
36
निर्मल
निर्मल बहती जो नदी,दलदल बनती आज।
मानव कारण है बना,करके उलटे काज।
करके उलटे काज,बना प्रकृति का दुश्मन।
जंगल हुए उजाड़, बढ़े उतने ही व्यसन।
कहती अनु यह देख,धरा होती है निर्जल।
रोको महाविनाश,नदी फिर बहती निर्मल।
अनुराधा चौहान
[06/01 6:23 PM] डॉ मीना कौशल: छाया सुन्दर देखकर,मानव यूँ इठलाय।
झूठी शौकत शान में,मन ये बहता जाय।।
मन ये बहता जाय,दिखावे के चक्कर में।
कुसंस्कार घुल रहा,मिला जल ज्यों शक्कर में।।
फैल रही फल -फूल ,रही पश्चिम की माया।
भूल रहा अस्तित्व,मनुज खुद अपनी छाया।।
निर्मल
निर्मल बहती थी नदी,अपशिष्टों का राज।
मानव तूने कर दिया,ऐसा कैसा काज।।
ऐसा कैसा काज,अमल जल मैल हो गये।
जीवनदायक मधुर,सुवारि कसैल हो गये।।
करिये ऐसा काज,बहे फिर सरिता अविरल।
मज्जन शुचि जलपान,हेतु हो तटिनी निर्मल।।
डा.मीना कौशल
[06/01 6:25 PM] +91 94241 55585: कुण्डलिनी
निर्मल
निर्मल पावन मन रहे ,रहे सदा नेह सार।
गुंजे अंबर में वहां ,धरा बने वो प्यार ।
धरा बने वो प्यार , जगत प्रेम का आधार।
जंतु पक्षी सब साथ ,मिलता प्यारा संसार ।
जीवन सुंदर जान ,भले बुरे को पहचान ।
भगवन पर है आस, वही मन पावन निर्मल ।
कुण्डलिनी
छाया
छाया मिलता है जहां ,रोपे बरगद पेड़।
घने वनों में है मिले, जंगल राजा शेर
जंगल राजा शेर, भक्षण करता मांस ढेर
माता ममता भरी, करती है प्रेम अपार ।
ममता छाया मिले, रहे मां पितु का साया
फले फूलते रहे, मिले नेह घनी छाया
धनेश्वरी सोनी बिलासपुर
[06/01 6:26 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक- 05/01/2020
*विजयी*
कुन्ती आशीर्वाद दे,करना नित सद्कर्म।
पुत्रों तुम विजयी बनो,स्थापित करना धर्म।
स्थापित करना धर्म,प्रजा का यह सिंहासन।
नीतिपूर्ण आचार,न्याय का करना शासन।
कहती रुचि करजोड़,माथ में लगा विभूती।
हाथ शीश पर फेर,कृपा बरसाती कुन्ती।
*भारत*
अनुपम भारत भूमि यह, गौरव मय इतिहास।
कहलाता है विश्व गुरु,हृदय अटल विश्वास।
हृदय अटल विश्वास,विविध धर्मो का संगम।
भारत कर्म प्रधान,ज्ञान को माना उत्तम।
कहती रुचि करजोड़,शून्य का जो था उद्गम।
सकल मही परिवार,सोच भारत का अनुपम।
दिनाँक - 06/01/2020
*निर्मल*
निर्मल गंगा वाहिनी,करती नित कल्याण।
शुचिता जगत तरंगिणी,हरती सबके त्राण।
हरती सबकी त्राण,पतित पावनी कहाती।
माता सम व्यवहार,हृदय सद्भाव जगाती।
कहती रुचि करजोड़,न समझो खुद को निर्बल।
गंग मातु की धार,रहे नित यूँ ही निर्मल।
*छाया*
छाया को तरसे मनुज,जंगल बचा न पेड़।
धूल धूसरित गाँव में,बरगद खड़ा अधेड़।
बरगद खड़ा अधेड़,सोचता मानव की गति।
मार कुल्हाणी पैर, करे कैसी ये उन्नति।
कहती रुचि करजोड़,प्रकृति की बदली काया।
पर्यावरणी कोप,न मिलता अविरल छाया।
✍सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[06/01 6:31 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनांक 6 जनवरी 2020
कलम की सुगंध छंद शाला।
कुंडलिया शतक वीर
विषय ..(.33) *छाया*
छाया माता-पिता की , मन को दे आराम ।
करे शांत मन को सहज , तुष्ट - पुष्ट निष्काम ।।
तुष्ट- पुष्ट निष्काम, जगत ज्यों जेष्ठ दुपहरी ।
लगे न तन को घाम , पिता - माँ छाया गहरी ।
कहे "निगम" कविराज , थके जब मन अरु काया ।
सबकी होती चाह , मिले कुछ पल को छाया ।।
विषय( 34) *निर्मल*
निर्मल शशि सोहे गगन , निर्मल -जन संसार ।
निर्मलता हर दृष्टि से , सहज दृश्य . आधार ।।
सहज दृश्य आधार, मलिनता किसको भाती।
पूनम की भी रात , स्वच्छता पाठ सिखाती।
कहे "निगम" कविराज, न पालो मन में छल-मल।
पाता जन उत्कर्ष , सदा जो रहता निर्मल ।।
रचनाकार ..
कृष्ण मोहन निगम
सीतापुर
जिला सरगुजा (छत्तीसगढ़)
[06/01 6:36 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
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*कुण्डलियाँ(३५)*
*विषय-छाया*
छाया में जिनकी पले, पकड़ चले जो हाथ।
वृद्ध हुए माँ-बाप तो, संतति छोड़े साथ।
संतति छोड़े साथ,गोद उनकी वो भूले।
भूले आँचल छाँव,अहम में फिरते फूले।
कहती'अभि'निज बात,समय कैसा ये आया।
बोझ बने माँ-बाप,खटकती उनकी छाया।
*कुण्डलियाँ(३६)*
*विषय-निर्मल*
निर्मल मन के भाव हों,उत्तम हो आचार।
मन-वाणी संयम सदा,सुंदर रखो विचार।
सुंदर रखो विचार, कलुष मत मन में घोलो।
प्रेममय व्यवहार,वचन तुम मीठे बोलो।
कहती'अभि'निज बात,भाव मन के हो कोमल।
जग-जीवन आधार,भावना मन की निर्मल।
*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*
[06/01 6:39 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*
सोमवार-6-1-2020
*35)*छाया*
धरती दुल्हन सी लगे,हरियाली चहुँ ओर।
छाया मिलती पेड से,लगे धूप में भोर।
लगे धूप में भोर,पथिक की थकन मिटाए।
प्राणवायु हो शुद्व,मेह घन श्याम बुलाए।
सुन वन्दू मन भाव,हवा गरमी को हरती।
वृक्ष रोप पथ मेड़,बनाओ स्वर्गिक धरती।।
*36)*निर्मल*
दाता के दरबार में,सब जन एक समान।
निर्मल मन के लोग ही,पाते जग में मान।
पाते जग में मान,सरल मन सबको भाते।
निज स्वारथ में लिप्त,मनुज दिल जीत न पाते ।।
सुन वन्दू हिय भाव,लगे वो जैसे माता।
ममता समता पास,मनो वो जीवन दाता।।
*रचनाकार-वंदना सोलंकी*
*नई दिल्ली*
[06/01 6:45 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय ---- *छाया , निर्मल*
दिनांक --- 6.1.2020....
(37) *छाया*
छाया प्रभुवर की रहे , मिलता आशीर्वाद ।
सब मंगल होगा सदा , नहीं कभी बर्बाद ।
नहीं कभी बर्बाद , हमेशा अर्चन आशा ।
मन में हो भगवान , सदा वंदन की भाषा ।
बाणी पानी देश , लगे है थोड़ी माया ।
रखो इसे संभाल , देत जीवन में छाया ।।
(38) *निर्मल*
निर्मल मन रखना सदा , सुंदर हो आचार ।
मीले मीत मन से तभी , हो अच्छा व्यवहार ।
हो अच्छा व्यवहार , सदा हो मीठी बाणी ।
मन में होगा प्यार , नहीं होता है हानी ।
कह कुमकुम कविराय , नहीं बनना तुम निर्बल ।
भजेंगे राम नाम , रहेगा तन मन निर्मल ।।
🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 6.1.2020....
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[06/01 7:04 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुंडलिया शतकवीर हेतु*
कुंडलिया (33) 5.1.2020
विषय- *विजयी*
मन पर विजयी जो हुआ, नर वह संत समान।
अंकुश अंतस् पर रखे, होती जय आसान।।
होती जय आसान, शत्रु ये मन के वधिए।
काम क्रोध मद लोभ, मोह मत्सर को तजिए।।
लो प्रांजलि अपनाय, देखिए सम्मुख तनकर।।
कहते उसे महान, हुआ जो विजयी मन पर ।।
कुंडलिया (34)
विषय- *भारत*
माटी भारत देश की, संदल स्वर्ण सुगंध।
ज्यों प्राणों का देह से, अनुपम है अनुबंध।।
अनुपम है अनुबंध, स्वर्ग से सुंदर धरती।
क्रीड़ा करते अंक, प्रेम यह निश्छल करती।।
प्रांजलि रखना आन, चली आयी परिपाटी।
अमिय अवनि अनमोल, प्राण यह पावन माटी।।
*दिनाँक- 6.1.2020*
कुंडलिया (35)
विषय- *छाया*
छाया पीपल नीम की, होती सुंदर भोर।
छोड़ शहर के शोर को, चलो गाँव की ओर।।
चलो गाँव की ओर, मनोरम है हरियाली।
हरे- भरे हैं खेत, बाग की छटा निराली।।
कितना सुंदर दृश्य, देख मन है हरषाया।
हवा मिलेगी शुद्ध, पेड़ की शीतल छाया ।।
कुंडलिया (36)
विषय- *निर्मल*
निर्मल नाता नेह का, वसुधा पर वरदान।
माँ ईश्वर का रूप है, बड़भागी संतान।।
बड़भागी संतान, मिला यह प्रेम निराला।
अमरित जिसके वक्ष, पिलाती जीवन प्याला।।
है ममता की छाँव, हृदय होता है कोमल।
पावन है वह गोद, नेह का नाता निर्मल।।
______पुष्पा गुप्ता "प्रांजलि"
[06/01 7:20 PM] नवनीत चौधरी विदेह: कलम की सुगंध
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक--6/1/20
*छाया* *३५*
छाया दु:खों की घनी, जीवन का प्रतिरूप |
प्रखर सूर्य की साँझ को, ज्यों ढल जाती धूप |
ज्यों ढल जाती रूप, सुखों की छँटती बदली |
जीवन है सुखधाम, अरे मत रो तू पगली |
कह विदेह नवनीत, झुकी अब अपनी काया |
भला करो हे राम, घनी दु:खों की छाया ||
*निर्मल* *३६*
निर्मल काया देव-सी, तुम ही हो सुखधाम |
कान्हा तुम, तुम ही सखे, हो मेरे श्री राम |
हो मेरे श्री राम, सुपावन जीवन दर्शन |
दिव्य तुम्हारा धाम, करूँ मैं पूजा-अर्चन |
कह विदेह नवनीत, टाट बन जाए मखमल |
पांचजन्य की गूँज,देव-सी काया निर्मल ||
*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा, ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
[06/01 7:34 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
6/01/2020:: सोमवार
छाया
छाया बरगद सम सुनो, मिलती कहीं न और
पशु,खग अरु मानव सभी, पा जाते हैं ठौर
पा जाते हैं ठौर, पथिक न पाये निराशा
पत्तों में भी होय, रोज़गारी की आशा
बूढ़ा बरगद रोय, काट क्यूँ हमको ढाया।
मिटा रहे अस्तित्व, मिले अब कैसे छाया।।
निर्मल
धारा निर्मल गङ्ग की, शिव धारी सिर मौर।
उद्गम है गंगोत्री, गंगा-सागर ठौर।।
गंगा-सागर ठौर, तीर्थ है ये अलबेला।
लगता है हर साल, यहाँ माघी पर मेला।।
स्वागत करता सिंधु, न तब वो होता खारा।।
पा जाती तब ठौर, गङ्ग की निर्मल धारा।।
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
[06/01 7:40 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
दिनाँक -06 /01/2020
दिन - सोमवार
35 - कुण्डलिया (1)
विषय - छाया
**************
छाया में माँ बाप के ,खुशियों का भंडार ।
मिलता है सौभाग्य से ,इनका पावन प्यार ।
इनका पावन प्यार ,विध्न को मार भगाता ।
देव तुल्य ही जान ,यही हैं जीवन दाता ।
ममता प्रेम दुलार ,इन्हीं से सबने पाया ।
मिलता है बिन मोल , नेह की निर्मल छाया ।
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36 -कुण्डलिया (2)
विषय - निर्मल
***************
पावन निर्मल नीर पर , निर्भर यह संसार ।
पुण्य पुनीता बह रही , कलकल करती धार ।
कलकल करती धार ,जगत की है कल्याणी ।
जग का कर कल्याण ,सिखाती प्रीत निभानी ।
परोपकारी जीव ,लगे सब को मनभावन ।
शुद्ध बुद्धि व्यवहार , रखो मन निर्मल पावन ।।
*********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★
[06/01 7:42 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक -06/01/2020
छाया (35)
छाया जब माँ की मिले, होते सारे काम।
माँ की ममता को कभी, करना मत बदनाम।।
करना मत बदनाम, वही तो जग में लाई।
सहकर पीड़ा आप, तुझे जीवन दे पाई ।
कह राधेगोपाल, तुझे है माँ ने जाया।
होते सारे काम, मिले जब माँ की छाया।।
निर्मल (36)
निर्मल पावन है यहाँ, गंगा जी का नीर।
करके पूजा जाप को, बदलें सब तकदीर।।
बदलें सब तकदीर, डाल मत कूड़ा करकट।
हरती सबकी पीर,सफाई कर दे झटपट।
कह राधेगोपाल, अरे आ निर्धन निर्बल।
गंगा जी का नीर, सदा है पावन निर्मल
राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[06/01 7:47 PM] कुसुम कोठारी: कमल की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
६/१/२०
कुसुम कोठारी।
कुण्डलियाँ (३५)
विषय- छाया
छाया गहरी शांत है , सूरज जैसा रंग ,
प्यारे लगते पथिक को ,उष्ण राह में संग
उष्ण राह में संग , खिले रहते मन भावन ,
कृष्ण चूड़ तुम नाम , तुम्ही संत और सावन ,
कहे कुसुम ये बात, है रूप अनुपम पाया ,
आ राही तू बैठ, सरस गुलमोहर छाया ।
कुण्डलियाँ (३६)
विषय-निर्मल
बिखरे नभ सारंग है , निर्मल श्वेत वलक्ष ,
नीलांबर से झांकते , भागे भोर अलक्ष ,
भागे भोर अलक्ष , व्योम आंगन में खेले
मेघों के ये माल ,थाप समीर की झेले ,
कहे कुसुम ये बात ,विभा में आभा निखरे ,
शुक्ल हय के सवार , पवन प्रहार से बिखरे ।
कुसुम कोठारी।
[06/01 7:47 PM] डा कमल वर्मा: कलम की सुगंध छंद शाला
प्रणाम
दिनांक 6-1- 2020
कुंडलियाँ37
विषय_ छाया
छाया पालक की रहे,नित बच्चे के साथ।
बिन उनके इस बाल का,कौन पकड़ता हाथ।।
कौन पकड़ता हाथ,बड़ी दुर्गत होती है। होते उन्हें अनाथ,देख नियति रोती है।।
कहे कमल हे मात,सभी तेरी है माया।
रखना बालक शीश,सदा पालक की छाया।।
कुंडलियाँ38
विषय निर्मल
सारे बाल स्वभाव से,रहते निर्मल भाव।
साफ निरागस ही रहे,रचतें धूल प्रभाव।
रचते धूल प्रभाव,सने गंदी बातों में,
निर्मल कब रह पाय,शत्रु छह के दांतो में।
कहे कमल भगवान,बचे तब कोई न्यारे।
सब धूमिल हो जाय,धूल से भव के सारे।
कृपया समीक्षा करें। 🙏🏻
डॉक्टर श्रीमती कमल वर्मा
[06/01 7:54 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध शतक वीर कुंडलिनी छंद
दिन-सोमवार/6-1-2020
विषय-शब्द- छाया/निर्मल
(33) छाया
सीता ने धारण किये ज्यों ही वल्कल चीर।
दशरथ जी के नयन से, फूटा झरना नीर।।
फूटा झरना नीर, राम को तपसी देखा।
बोले राजा हाय! लिखा क्या विधि ने लेखा।
कह प्रमिला कविराय, महल अब हो गया रीता।
छाया दुःख अपार , सँग गये लक्षमण सीता।।
(34) निर्मल
मनका ,मनका फेर ले सुमिरन कर हरि नाम।
निर्मल मन से जो जपे, पूरण हों सब काम।।
पूरण हो सब काम, संत दर्शन हो जाये।
मिटे आपदा घोर, सदा सुख संपति आवे।।
कह प्रमिला कविराय , हित करो तुम जन- जन का।
झूठ मूठ मत फिरो, डाल तुलसी की मनका।।
प्रमिला पान्डेय
[06/01 7:55 PM] रामलखन शर्मा अंकित: जय माँ शारदे
कुंडलियाँ
15. छाया
छाया भी देती नहीं, कभी किसी का साथ।
एक समय वो छोड़कर, चल देती है हाथ।।
चल देती है हाथ, सभी स्वारथ के नाते।
बस अपना किरदार, यहाँ पर सभी निभाते।।
कह अंकित कविराय, यही है प्रभु की माया।
कर देती जो दूर, मनुज से उसकी छाया।।
16. निर्मल
निर्मल मन से कीजिये, परम् तत्व का ध्यान।
उसके आगे है विवश, सभी ज्ञान विज्ञान।।
सभी ज्ञान विज्ञान, नहीं उसको पा सकता।
जो पलभर में प्रेम, विवश होकर आ सकता।
कह अंकित कविराय,सभी को देता सम्बल।
मिलता है वो किन्तु, उसे जो रहता निर्मल।।
------ राम लखन शर्मा ग्वालियर
[06/01 8:16 PM] डॉ अर्चना दुबे: *कुंडलिया शतकवीर प्रतियोगिता*
*दिनांक- 05/01/2020*
*विजयी*
कितना प्यारा देश है, मेरा हिन्दुस्तान ।
गाये विजयी विश्व का, गीत बने पहचान ।
गीत बने पहचान, कर्म हो उच्च हमारा ।
देश रखें सम्भाल, हमें प्राणों से प्यारा ।
'रीत' कहे करजोरि, सभी कर्तव्य निभाये ।
लिखों नया इतिहास, गीत जन गण मन गायें ।
*भारत*
अपने भारत देश पे, मुझको है अभिमान ।
बच्चा बच्चा कर रहा, जन गण मन का गान ।
जन गन मन का गान, सफलता मंजिल चूमे ।
सदा सत्य की जीत, खुशी से जन जन झूमें ।
'रीत' गा रही गीत, हुए पूरे सब सपने ।
सारा जग है एक, सभी भाई है अपने ।
*दिनांक - 06/01/2020*
*छाया*
छाया मनभावन लगे, बैठे मिल सब साथ ।
आम, नीम, अमरूद के, पेड़ लगा निज हाथ ।
पेड़ लगा निज हाथ, बाग की छटा निराली ।
देख मनोरम दृश्य, धरा की ये हरियाली ।
'रीत' कहे मनभाव, प्रकृति ने बदली काया ।
सुख दुख में समभाव, साथ में रहती छाया ।
*निर्मल*
निर्मल पावन धार है, गंगा माँ का नीर ।
करते पूजा पाठ जो, सवर जाय तकदीर ।
सवर जाय तकदीर, पियों गंगा का पानी ।
हरती सबकी पीर, कहो जै मातु भवानी ।
'रीत' रही समझाय, नहीं कहना अब निर्बल ।
पावन बहती धार, नदी का जल है निर्मल ।
*डॉ. अर्चना दुबे 'रीत'*✍
*मुम्बई*
[06/01 8:25 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद
6-1-2020
35
छाया
तरुवर से छाया मिले, आजा मेरे गाँव ।
पीपल बरगद नीम है,नहीं जलेंगे पाँव ।
नहीं जलेंगे पाँव, यहाँ पग पग हरियाली ।
देखो सरसों धान ,सींचता है कृष माली ।
मंदिर मस्जिद आन,जहाँ अल्ला अरु रधुवर।
मीरा कहती देख, गाँव की मेरे तरुवर ।।
निर्मल
36
निर्मल मन रखना सदा, ज्यों गंगा का नीर ।
वाणी में मधुरस धुले होवे कभी न पीर।
होवे कभी न पीर, पीर औरों का हरना ।
दुखियों के अश्रु पोछ, नेक ही काम है करना ।
कलकत्ता हरिद्वार, बहे पावन गंगा जल
मीरा तू भी आज, रखे मन पावन निर्मल ।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[06/01 8:27 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
(35)
विषय-छाया
छाया को मत जानिये ,छोटा-मोटा आप।
छाया का छाया हुआ, वैभव और प्रताप।
वैभव और प्रताप, बड़ी गरमी में शीतल।
मात पिता का रूप,रहे सिर छाया पलपल।
दुनिया छोड़े साथ ,चली जाए सब माया।
रहे अंत तक साथ ,नहीं छोड़े हैं छाया ।
(36)
विषय-निर्मल
बहती नदियाँ हैं सभी, भर के निर्मल नीर।
कल कल के स्वर में व्यथा, छलक रही है पीर।
छलक रही है पीर, बड़ा विषाद है भारी।
सूख रहा है वारि, नदी मानव से हारी।
निकली हिम से साफ,सदा नीरा थी रहतीं।
सूख गई है धार, बनी नाला अब बहतीं
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[06/01 8:33 PM] सुशीला साहू रायगढ़: 🌷*कलम की सुगंध छंदशाला*🌷
*कुंण्डलियाँ शतकवीर हेतु मेरी रचना*
~~~~~~~~~~~~~~~
*37----छाया--06/01/2020*
छाया तो माँ की मिले,बड़े सुकुन की बात।
ममता की आँचल तले,करे सुरक्षा मात।।
करे सुरक्षा मात ,हरे विपदा ये ममता।
बिछाय फूलों पाँव,खेल बालपन समता।।
कह शीला निज बात,करे माँ सबको माया।
चले माँ साथ-साथ ,बिछाये सुमनों छाया।।
*38--------निर्मल*
निर्मल मन पूजा करें,राधा मोहन श्याम।
तन मन से प्रभु नाम लें,जग मेंआठों याम।
जग में आठों याम,सरस मन सबको भाता।
सद्गुण दिल में वास,भाव विभोर कर पाता।।
कह शीला ये बात,कभी न रहे मन निर्बल।
करते प्रभु को याद,भाव मन में हो निर्मल।।~~~~~~~~~~~~~~~
*सूशीला साहू शीला*
*रायगढ़ छ.ग.*
[06/01 8:46 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कुंडलिया शतक-वीर प्रतियोगिता, 2020. दिनांक 06/01/2020,दिन --सोमवार।*
*35--छाया*
छाया आँचल की मिले, माँ का निश्छल प्यार।
जगती में सबसे बड़ा,यह प्रभु का उपहार।।
यह प्रभु का उपहार, भाग्य से ही मिल पाता।
सुख देता भरपूर, कष्ट सब दूर भगाता।
धूप-छाँव का खेल, यही है प्रभु की माया।
कभी दुखों की धूप, कभी है सुख की छाया।।
~~~~~~~~~
*36..निर्मल*
मन निर्मल रखिये सदा, सद्गुण हों भरपूर।
सज्जन का हो साथ नित, छल-प्रपंच से दूर।
छल-प्रपंच से दूर, प्रेम से हरि-गुण गावें।
छोड़ तामसी वृत्ति, सरल जीवन अपनावें।
करें सदा सत्कर्म, सफल हो जाये जीवन।
मन से मिटें विकार, स्वच्छ हो अपना तन, मन।
~~~~~~
*विद्या भूषण मिश्र "भूषण", बलिया, उत्तरप्रदेश।*
~~~~~~~~~~
[06/01 8:47 PM] रवि रश्मि अनुभूति: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '
🙏🙏
33 ) छाया
************
छाया हूँ मैं मातु की , सघन घनी हूँ छाँव ।
पीहर में भी ठौर हो , थिरक रहे हैं पाँव ।।
थिरक रहे हैं पाँव , हृदय मेरा हर्षाये ।
बाबुल के घर रीत , प्यार की सदा निभाये ।।
प्यारा है पी द्वार , पिता का घर भी भाया ।।
आँसू बहते आज , छोड़ अब अपनी छाया ।।
(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
6.1.2020 , 12:34 पी.एम. पर रचित ।
34 ) निर्मल
************
रहता मन निर्मल सदा , स्वच्छ रहे आकाश ।
अपने सपने भी सुनो , भर लो बाहूपाश ।।
भर लो बाहूपाश , ज़िंदगी खूब सँवारो ।
सदा रहे अपनत्व , सदा झरने - सा बहता ।
उज्ज्वल मन यह स्वच्छ , रहे यूँ झरना रहता ।।
%%%%%%%
(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
6.1.2020 , 6:51 ए.एम.पर रचित ।
******
[06/01 8:57 PM] गीतांजलि जी: *कुण्डलिया शतकवीर*
(३५) विजयी
विजयी हो कर लौटना, बोली सीता मात।
हरना निज शर से सभी, करते खल जो घात।
करते खल जो घात, वनी ऋषि मुनि सद्जन की।
शांति करें जो भंग, सघन ससुमन इस वन की।
खर दूषण दो भ्रात, सुने दुष्ट जो दिग्जयी।
बल से उनको मार, पते, तुम होना विजयी।
(३६) भारत
भारत की भव्य सभ्यता, भद्र भाव भरपूर।
पलते पावन गोद में, सुजन सुसंस्कृत शूर।
सुजन सुसंस्कृत शूर, सदा शुचि शुभ सत साधक।
मंगल मग के मीत, अथक अविरत आराधक।
स्वार्थ सिद्धि को त्याग, सतत सश्रम सेवारत।
लक्ष्मण, बोलें राम, स्वर्ग से सुंदर भारत।
(३७) छाया
छाया पेड़ कदम्ब की, बैठे सारे ग्वाल।
करें प्रतीक्षा कान्ह की, कब आएं गोपाल।
कब आएं गोपाल, चलें सब कब वृन्दावन।
भूखी हैं गौमात, मिले कब उनको भोजन।
यमुना में कब कूद, करें शीतल निज काया।
कब मुरली की तान, सुने वन घन की छाया।
(३८) निर्मल
निर्मल नद गोदावरी, कलकल बहती प्रात।
बैठे तट पर ध्यान में, संग सिया श्रीराम।
संग सिया श्रीराम, करें संध्या अंतर्मन।
असुर न कोई पास, खड़े पहरे पर लक्ष्मण।
ऋषि मुनि के संग, बहे ज्ञान-गंग भी अविरल।
शुचि दिन शुभ हर रात, करें मन तन को निर्मल।
गीतांजलि ‘अनकही’
[06/01 8:59 PM] महेंद्र कुमार बघेल: कुंडलिया शतक वीर 4/1/2020
31. वीणा
साधक बनकर छेड़िए,वीणा की यह तार।
भाव राग अरु सुर सजे, निकले सब उद्गार।
निकले सब उद्गार,साधकर मन का विचलन।
छनकर आये सार,सफल हो यास परिकलन।
तय कर अपना लक्ष्य,बनो सच्चा आराधक।
छेड़ो वीणा तार,श्रेष्ठ कहलाओ साधक।।
32. नैतिक
सच्चा साथी आपका, उत्तम नैतिक भाव।
अच्छा जीवन के लिए ,इसका करो चुनाव।
इसका करो चुनाव, आचरण में अपना लो।
सबके प्रति समभाव,इसे अब रीति बना लो।
मिले घरों में सीख,समझ जाये हर बच्चा।
उत्तम नैतिक भाव, आपका साथी सच्चा।।
कुण्डलियाॅ:- 5/1/2020
33.विजयी
भाईचारा शांति को ,करते जो अवरुद्ध।
विजयी बनकर अब हमें, लड़ना होगा युद्ध।
लड़ना होगा युद्ध,प्रदूषण बीमारी से।
बढ़ते भ्रष्टाचार,भूख अरु बेगारी से।
गलत धारणा तोड़, आप सब बनो सहारा।
विजयी भव की नाद,निभा कर भाईचारा।।
34 भारत
भारत अपना देश है, हम इसके संतान।
इसकी रक्षा के लिए, हुए कई बलिदान।
हुए कई बलिदान, किसी को आॅच न आये।
दुश्मन का धड़ काट,यहां से मार भगाये।
यह है अंतिम सार,शांति का गढ़ें इमारत।
हम इसके संतान, देश है अपना भारत।।
महेंद्र कुमार बघेल
[06/01 10:27 PM] कमल किशोर कमल: नमन मंच
06.01.2020
कुंडलियाँ प्रतियोगिता हेतु
37-छाया
छाया बनकर घूमते,खुद के अपने कर्म।
जैसा बोता आदमी,सजा दिलाती धर्म ।
सजा दिलाती धर्म,आइना बनकर दिखती।
खोया पाया मान,सभी में हँसती रहती।
कहे कमल कविराज,भूल जा जग की माया।
भाग रहा है बहुत,भागती जाती छाया।
38-
निर्मल
निर्मल जल का पान कर,चलो प्रभाती चाल।
रोग -शोक सब दूर हो,हे धरती के लाल।
हे धरती के लाल,शुद्धता बहुत जरूरी।
है दूजी भगवान,चढ़ाओ पावन पूढ़ी।
कहे कमल कविराज,जीव का जीवन परिमल।
आना जाना यहाँ,नेह का जीवन निर्मल।
कवि-कमल किशोर "कमल"
हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
[06/01 10:37 PM] सुशीला जोशी मुज़्ज़फर नगर: *कलम की सुगंध कुंडलियाँ प्रतियोगिता*....
6-1-2020
35--- *छाया*
छाया माँ की बेटियाँ , माँ पर जान निसार
आगे पीछे फिर रहीं, सगरी बात बिसार
सगरी बात बिसार , मात का संग निभावे
सारा प्यार उडेल , काम मे हाथ बटावे
माँ के लक्षण लेय , सुता जन्मे बन साया
मात अवस्था देख , बेटियाँ बनती छाया ।
36-- *निर्मल*
निर्मल मन को राखिये , बिना वैर के भाव
निर्मलता से है भरा , हर भारत का गाँव
हर भारत का गाँव ,दूर सब कपट छलों से
निर्मल धारे वेश , खेत जोतते हलों से
निर्मल जल की धार , करे है बहती कलकल
बिना वैर के भाव , हृदय रहता है निर्मल
सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर
सभी आदरणीयों को बहुत बहुत बधाई हो
ReplyDeleteसुन्दर संकलन सर जी
ReplyDeleteसुंदर रचनाएँ ...सभी को बधाई 💐💐💐
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