Tuesday 7 January 2020

कुण्डलियाँ छंद...विनती,भावुक

[07/01 6:00 PM] सरोज दुबे: कलम की सुगंध शतकवीर हेतु 
कुंडलियाँ -37
दिनांक -7-1-20

विषय -विनती

विनती तुमसे प्रभु करूँ, सदा करूँ सद काम l
जीवन में आगे बढूँ, लेकर तेरा नाम l
लेकर तेरा नाम, दूर संकट कर देनाl
पहुँचाना निज धाम, पीर मेरी हर लेना l
कहती सुनो सरोज, करूँ मैं कैसे गिनती l
तेरे सब  उपकार, जोड़ कर बस करुँ विनती l

कुंडलियाँ -38
दिनांक -7-1-20

विषय -भावुक

होना तुम भावुक नहीं, जादा हे इंसान l
भावुकता में ही गईं, कितनों की हैं जान l
कितनों की हैं जान, दुखी मन भावुक होता
फँसे मोह के पाश, नहीं रातों को सोता l
कहती सुनो सरोज, मगर जीवन को मत खोना 
रखो हृदय में हर्ष, नहीं तुम भावुक होनाl

सरोज दुबे 
रायपुर छत्तीसगढ़ 
🙏🙏🙏
[07/01 6:06 PM] बोधन राम विनायक: *कलम की सुगन्ध छंदशाला*
कुण्डलियाँ - शतकवीर सम्मान हेतु-
दिनाँक - 07.01.2020 (मंगलवार)

(37)विषय- विनती

विनती है प्रभु आपसे,रखना मेरा ध्यान।
नेक राह पर मैं चलूँ,मिले मान सम्मान।।
मिले मान सम्मान,सदा तेरा गुन गाऊँ।
पूजन अर्चन नाथ,करूँ माँगू जो पाऊँ।।
कहे विनायक राज,प्रार्थना करते गिनती।
हे प्रभु दीन दयाल,सुनो अब मेरी विनती।।


(38)विषय- भावुक

होना तुम भावुक  नहीं, पा कर मेरा प्यार।
रहना   खुश  संसार  में,हरदम  मेरे  यार।
हरदम मेरे यार, नहीं  दुख  की  हो साया।
मन में रख विश्वास,मिलेगी सुख की छाया।।
कहे विनायक राज,आसरा तुम मत खोना।
सुखमय हो संसार,कभी भावुक मत होना।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
[07/01 6:09 PM] नवनीत चौधरी विदेह: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु मेरी रचना*
*दिनाँक-०७/०१/२०२०*
*--विषय-----विनती*
*३७*

विनती मैं तुमसे करूँ, परमपिता भगवान |
तुम सागर हो ज्ञान के, मैं बालक नादान  |
मैं बालक नादान, मुझे देना हे भगवन |
मुट्ठी भर तो ज्ञान , सजे मेरा मन उपवन |
कह विदेह नवनीत, नहीं करता मैं गिनती |
परमपिता भगवान, करूँ मैं तुमसे विनती ||

*विषय:-भावुक*
*३८*


भावुक मन मेरा प्रवण, कब करता किल्लोल |
रखता हूँ हर बात को, सदा हृदय से तोल |
सदा हृदय से तोल, हमेशा निश्छल रहता |
मन मेरा अनमोल,रोज पानी-सा बहता |
कह विदेह नवनीत, चला मुझ पर भी चाबुक |
जीवन है संग्राम, प्रवण मेरा मन भावुक ||


*नवनीत चौधरी विदेह*
*किच्छा, ऊधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
[07/01 6:17 PM] गीता द्विवेदी: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलिया शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
दिनांक-06

(35)
विषय-छाया

छाया है बादल अभी, आ जाए जब धूप।
तब अम्बर पर देखना, दिनकर रूप अनूप।।
दिनकर रूप अनूप, वही वासर का स्वामी।
पर तरुवर की छाँव , दिखे बैठे पथगामी।।
होते हैं दिन रात, यही ईश्वर की माया।
जो देता है धूप, उसी से बनती छाया।।

(36)
विषय-निर्मल

नारी मन निर्मल नदी, नीरज ममता जान।
मानव पलता छाँव में,दे देवी सम मान।।
दे देवी सम मान, चुका ऋण कुछ तो उसका।
पाले वो निज रक्त, बना भू आँचल जिसका।।
होता अत्याचार, विवश होती जब भारी।
लेती दुर्गा रूप, मिटाती दानव नारी।।

सादर प्रस्तुत🙏🙏
गीता द्विवेदी
[07/01 6:26 PM] सुकमोती चौहान रुचि: कलम की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक- 07/01/2020

*विनती*

विनती हरदम मैं करूँ,हे गिरिधर गोपाल।
बड़ी कारुणिक है दशा,गौ माता बेहाल।
गौ माता बेहाल,आज उजड़ी गोशाला।
सूखे चारागाह,कहाँ से मिले निवाला।
कहती रुचि करजोड़,नहीं गोधन की गिनती।
मिले सदा सम्मान,करूँ हरदम ये विनती।


*भावुक* 

पावन होती मित्रता,जान द्वारिकाधीश।
पग के कंटक देखकर,भावुक हैं जगदीश।
भावुक हैं जगदीश,नयन जल से पग धोते।
देख सखा संताप,आज भवतारण रोते।
कहती रुचि करजोड़,दृश्य ये अति मनभावन।
धन्य सुदामा भाग्य,मित्रता सबसे पावन।

✍सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
[07/01 6:28 PM] अटल राम चतुर्वेदी, मथुरा: 07.01.2020 (मंगलवार)

37-  विनती
***********
विनती है प्रभु आपसे, रखिए सबकी लाज।
जिनकी नीयत साफ हो, रुकें न उनके काज।
रुकें न उनके काज, सफलता वह सब पायें।
मिले पूर्ण सम्मान, जहाँ जब भी वह जायें।
"अटल" न भूलें आप, रखें सज्जन की गिनती।
दुर्जन की हो हार, आपसे है प्रभु विनती।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏

38-   भावुक
***********
भावुक भी होते रहें, देख जगत के दृश्य।
खेल समय जब खेलता, बदले हैं परिदृश्य।
बदले हैं परिदृश्य, रंक राजा हो जाते।
राजा भिक्षुक बने, माँगने मन्दिर आते।
"अटल" समय का खेल, लगाता सबको चाबुक।
देख परायी पीर, जरूरी होना भावुक।
🙏अटल राम चतुर्वेदी🙏
[07/01 6:32 PM] इंद्राणी साहू साँची: कलम की सुगंध छंदशाला

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनाँक - 07/01/2020
दिन - मंगलवार
37 -कुण्डलिया (1)
विषय - विनती
**************
विनती ईश्वर से करूँ ,
                    भव सागर से तार ।
मैं अपराधी जन्म का ,
              नख शिख भरा विकार ।
नख शिख भरा विकार ,
                कहाँ पूजन कर पाऊँ ।
मुझमें क्या सामर्थ्य ,
                  तुम्हें कैसे दिखलाऊँ ।
पाप सम्भवा जान ,
                  तुच्छ में मेरी गिनती ।
शरण लगा लो नाथ ,
                  यही है मेरी विनती ।।
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38 - कुण्डलिया (2)
विषय - भावुक
****************
माता भावुक हो रही ,
                  देख पुत्र का प्यार ।
उनकी खुशियों के लिए ,
                   देती तन मन वार ।
देती तन मन वार ,
          सभी सुख त्यागे अपना ।
पुत्र बने आधार ,
              देखती है वह सपना ।
चुन लेती है शूल ,
                फूल से जोड़े नाता ।
धरती जैसी धीर ,
                  धारती है हर माता ।।
*********************************
✍️इन्द्राणी साहू "साँची"✍️
   भाटापारा (छत्तीसगढ़)
★★★★★★★★★★★★★★★★
[07/01 6:38 PM] आशा शुक्ला: कलम की सुगंध छंदशाला
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
07 /01 /2020




(37)
विषय-विनती
विनती सुन लो हे प्रभू,,जोड़ूँ दोनों हाथ।
करदो मुझ पर भी कृपा, ईश्वर दीना नाथ ।
ईश्वर दीनानाथ, दया इतनी सी कर दो।
सरल भक्ति का भाव , ह्रदय में  मेरे भर दो।
जीवन हो निष्पाप, रहीं  साँसें पल गिनती।
वारूँ तुझ पर जान ,यही बस  मेरी विनती


(38)
विषय-भावुक

भोला होता है बड़ा,भावुक मन निष्पाप।
दूजे को सुख- छाँव दे,आप सहे दुख -ताप।
आप सहे दुख ताप,छला जग में वह जाता।
लेकर मन पर चोट , शरण ईश्वर की आता।
कह आशा निज बात, भला क्यों मन है डोला?
समझ जगत का सार,अरे मानव तू भोला।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
[07/01 6:38 PM] अनुराधा चौहाण मुम्बई: कलम की सुगंध
कुण्डलियाँ शतकवीर
दिनाँक--7/1/20

37
भावुक

सीता सीते जानकी,लेते सिय का नाम।
भ्राता लक्ष्मण साथ में,भावुक होते राम।
भावुक होते राम,मिली न सिया सुकुमारी।
पूँछे पंछी फूल,कहाँ हैं जनक दुलारी।
देखा राम का दुख,दिवस भी दुख में बीता।
मुरझा गया उपवन,हर लिया रावण सीता।

(38)
विनती

राधे राधे बोल के,मिल जाते घन श्याम।
करले इस संसार में,विनती आठों याम।
विनती आठों याम,बड़ी है लीला प्यारी।
मीरा चाहे श्याम,लगन राधा की न्यारी।
नटखट है गोपाल,हाथ में मुरली साधे।
चाहत कान्हा दरश,बुलाओ राधे राधे।

अनुराधा चौहान
[07/01 6:39 PM] बाबूलाल शर्मा बौहरा: 👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.           *कलम की सुगंध छंदशाला*
.           कुण्डलिया शतकवीर हेतु
.              दिनांक - 07.01.2020
.                      👀👀
कुण्डलियाँ (1) 
विषय-  *विनती*
विधना  विपदा वारि  वन, वायु  वंश वारीश!
वृक्ष वटी  वसुधा वचन, विनती  वर  वागीश!
विनती  वर वागीस, वरुण  वन वन्य विहारी!
वृहद विप्लवी विघ्न, विनय वंदन  व्यवहारी!
वंदउँ विमल विकास, वाद  विज्ञानी विजना!
वरदायी  विश्वास, वरण  वर विनती विधना!
.                 👀👀

कुण्डलियाँ (2) 
विषय-  *भावुक*
भावे  भजनी  भावना, भोर भास  भगवान!
भले भलाई भाग्य भल,भावुक भाव भवान!
भावुक  भाव  भवान, भजूँ  भोले भण्डारी!
भरे  भाव  भिनसार, भाष  भाषा  भ्रमहारी!
भय भागे भयभीत, भ्रमित भँवरा  भरमावे!
भगवन्ती   भरतार, भगवती   भोला   भावे!
.                  👀👀👀
रचनाकार..✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
[07/01 6:44 PM] राधा तिवारी खटीमा: कलम की सुगंध छंदशाला 
कुंडलियाँ शतकवीर हेतु
दिनांक -07/01/2020


विनती (37)

विनती है मेरी यही, सुन लो दीनानाथ।
 पग पग पर मेरे रहे, सदा आप ही साथ।
 सदा आप ही साथ, करो सब की रखवाली।
 बन के रहना आप, सदा बगिया का माली।
 कह राधेगोपाल, दया की करती गिनती।
 सुन लो दीनानाथ, यही है सब की विनती।।

 भावुक (38)

 भावुक हो जाते सभी, देख  दीन लाचार।
 देकर उनको दान को, करना शुभ व्यवहार।
 करना शुभ व्यवहार, दिखा दो तुम मानवता।
 वह भी अपने मीत, करो मत तुम दानवता।
 कह राधेगोपाल, न हो हाथों में चाबुक।
 देख दीन लाचार ,सभी हो जाते भावुक।।

राधा तिवारी "राधेगोपाल"
खटीमा 
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
[07/01 6:47 PM] पुष्पा विकास गुप्ता कटनी म. प्र: कलम की सुगंध छंदशाला
*कुंडलिया शतकवीर हेतु*

दिनाँक- 7.1.2020
कुंडलिया(37)
विषय- *विनती*

विनती बारम्बार मैं, करती कृपा निधान।
भावी भारतवर्ष में, सब हों एक समान।।
सब हों एक समान, दूर हों सारे संकट।
आपस में हो प्रेम, न हों अब झगड़े झंझट।।
कह प्रांजलि करजोर, गिनो सब उल्टी गिनती।
और नहीं अपराध, करँ मैं सबसे विनती।।


कुंडलिया (38)
विषय- *भावुक*

भावुक करते दृश्य हैं, पग-पग पर लहुपात।
बिगड़े  यों  हालात है, घर के भीतर घात।।
घर भी भीतर घात, विरोधी होते अपने।
छात्रों  में  छलछंद, एकता के टूटे सपने।।
है  भविष्य  भयभीत, समय  ये सबसे  नाजुक।
कुटिल काल की चाल, दृश्य करते हैं भावुक ।।

_____पुष्पा गुप्ता प्रांजलि
[07/01 6:53 PM] अभिलाषा चौहान: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु*
***********************************कुण्डलियाँ(३७)*
*विषय-विनती*

विनती करती द्रौपदी,सखा रखो अब लाज।
भरे भुवन के बीच में, लुटती हूँ मैं आज।
लुटती हूँ मैं आज ,देखते मुनि अरु ज्ञानी।
पहने चूड़ी वीर,मरा आँखों का पानी।
कहती अभि निज बात,द्रौपदी घड़ियाँ गिनती।
बढ़ता जाता चीर,सखा ने सुन ली विनती।
*कुण्डलियाँ(३८)*
*विषय-भावुक*

कलियाँ नुचती देख के,भावुक मन है आज।
दानवता हावी हुई, कैसा बना समाज।
कैसा बना समाज,अजब है गोरखधंधा।
ऐसी कैसी भूख,बना आँखों से अंधा।
कहती 'अभि' निज बात,लहू से रँगती गलियाँ।
गिद्ध लगा के घात,नोंचता नन्हीं कलियाँ।

*रचनाकार-अभिलाषा चौहान*
[07/01 7:04 PM] सरला सिंह: *************************************


*कुण्डलिया शतकवीर के लिए विषय* 

*07.01.2020 (मंगलवार)*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिन - मंगलवार* 
*दिनांक-07/01/20*
*विषय: विनती*
*विधा कुण्डलियाँ*

*37-विनती*

 सारे मिल विनती करें,दो दर्शन रघु नाथ।
 आओ फिर तुम धरा पर,धरो शीश पर हाथ।
 धरो शीश पर हाथ,करो मत अब तुम देरी।
 व्याकुल सब हैं आज,लगा लो तुम अब फेरी।
 कहती सरला आज,प्रभू कितनों को तारे।
 तारो हम को नाथ, करें विनती हम सारे।।

 *डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
 *दिल्ली*

07/01/20*
*कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ शतकवीर हेतु*

*दिन - मंगलवार* 
*दिनांक-07/01/20*
*विषय: भावुक*
*विधा कुण्डलियाँ*

*38-भावुक*

 होता भावुक मन बड़ा,जैसे कोमल‌ फूल,
 छोटी छोटी बात भी,लगता इसको शूल।
 लगता इसको शूल,इसे मत चोट लगाना।
 सबका रखना मान,सभी को सुख पहुचाना।
 सरला कहती बात, दुखी मन है जब रोता।
 जीवन की यह रीत,उसे भी दुख है होता।

*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*
[07/01 7:08 PM] कृष्ण मोहन निगम: दिनाँक 7 जनवरी 2020 
*कलम की सुगंध छंद शाला*
 कुंडलियां शतक वीर प्रतियोगिता ।

विषय ..  *विनती*
विनती,  विनय , सुशीलता ,  दान- दया सहकार ।
ये  विशेष  गुण साधु के , समझें   क्या  मक्कार ।।
समझें   क्या  मक्कार , सरलता   मन की  सुंदर ।
विनती   का   प्रतिसाद ,   प्राप्त   करता है अंतर ।।
"निगम"   पराया   कौन ,  कौन निज करो न गिनती ।
बढे़    परस्पर    प्रीति ,   करो  सब   प्रभु से विनती  ।।

विषय ....    *भावुक*
भावुक - मन , सीधे - सरल , लोगों की पहचान ।
जग के   वक्र स्वभाव  का , इन्हें   नहीं अनुमान ।।
 इन्हें     नहीं    अनुमान ,  छले  प्रायः    ये  जाते ।
अपने     मन  के  भाव , नहीं   ये     कभी  छुपाते ।।
कहे "निगम"  कविराज ,  कुटिल जग मारे  चाबुक।
 सहते पर - हित मार ,     बेचारे    मन  के   भावुक ।।

 रचनाकार 
कृष्ण मोहन निगम 
सीतापुर
 जिला सरगुजा (छत्तीसगढ़)
[07/01 7:10 PM] अमित साहू: कलम की सुगंध~कुण्डिलयाँ शतकवीर

31-वीणा (04/01/2020)
वीणा तंत्रीवाद्य है, रूप रंग प्राचीन।
चार तार से सुर सधे, है यह साज महीन।।
है यह साज विचित्र, रूप इसके बहुतेरे।
कंपन से संगीत, घड़ा सम गोला घेरे।।
कहे अमित कविराज, त्रितंत्री यह तन  झीणा।
प्रभु छेड़े निज हाथ, श्वासमय जीवन वीणा।।


32-नैतिक
नीमन नैतिक नीतिगत, कुशल रखें व्यवहार।
नियमित नियमी जो नहीं उनको है धिक्कार।।
उनको है धिक्कार, नियम जो नित ही तोड़ें।
शिक्षा सुंदर सीख, नित्य ही मन से जोड़ें।।
नैतिकता आधार, मनुज नैत्यिक इस जीवन।
सदाचार सतकाम, रखें अंतर्मन नीमन।।


33-विजयी (05/01/2020)
विश्वविजेता भाव यदि, निश्चित ही विजयेश।
उर विजीष की कामना, विजया हम विश्वेव।।
विजया हम विश्वेश, सर्वदा विजयी वरफल।
उर में हो उत्साह, विजय श्री संभव  प्रतिपल।।
कहे अमित कविराज, बनें संशय उच्छेता।
तन-मन विजयानंद, भाव यदि विश्वविजेता।।


34-भारत
भारत भावन राष्ट्र है, कहलाता जो हिंद।
तीन ओर सागर घिरा, मध्य खिला अरविंद।।
मध्य खिला अरविंद, शीर्ष पर धवल हिमालय।
सुंदर स्वर्ग समान, सभी का यही समालय।।
जन्मभूमि जग श्रेष्ठ, रहे मन सदैव आरत।
भारतीयता भाव, भावता मेरा भारत।।

कन्हैया साहू 'अमित'
[07/01 7:23 PM] वंदना सोलंकी: *कलम की सुगंध छंदशाला*
*कुंडलियाँ  शतकवीर हेतु*
मंगलवार-7-1-2020

*37)*भावुक*

भावुक दिल की स्वामिनी,मैं हूँ भोली नार।
चतुराई जानूं नहीं,दिल भीतर है प्यार।
दिल भीतर है प्यार,जिसेब भरपूर लुटाऊं।
पर ये रखना याद,न शोषण मैं सह पाऊं।
सुन वन्दू की बात,नहीं नारी मैं नाजुक।
सबसे बढ़कर मान,भले ही दिल है भावुक।

*38)*विनती*

सविनय विनती मैं करूँ,सुन लेना धर ध्यान।
आज से पहल नई हो,गाओ नित नव गान।
गाओ नित नव गान,बरस नूतन है आया,
बांटों खुशी अपार,यही संदेशा लाया।
पुलकित वन्दू आज,कर रही कब से गिनती।
करें सभी शुभकाम,यही है सविनय विनती।

*रचनाकार-वंदना सोलंकी*
*नई दिल्ली*
[07/01 7:26 PM] अर्चना पाठक निरंतर: कलम की सुगंध 
 कुंडलिया शतक वीर हेतु


वीणा
-------
वीणा की सुन माधुरी, होती भाव विभोर।
शोभे माँ की हाथ में, विनती करूँ निहोर।।
विनती करूँ निहोर,करो पूरी अभिलाषा।
उभरे मन के भाव,तान सुन मन की भाषा।।
अवसाद सभी छोड़,गणगौर भाये मीणा।
फिर से छेड़ो तान,मुदित हो उर सुन वीणा।।
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  नैतिक
-------------
नैतिक मूल्य घटाइये,आधुनिकता पुरजोर।
अपनी संस्कृति चाहिए,चढ़े शिखर गुर शोर।।
चढ़े शिखर गुर शोर,गलत घमंड मत  ढोना।
सफलता रही दौड़,बाद में पड़ता रोना।।
हर पल है बेचैन,हुआ मानव अब भौतिक।
मिल रहा नहीं चैन,कहाँ समाज के नैतिक।।
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अर्चना पाठक निरंतर
[07/01 7:29 PM] प्रमिला पाण्डेय: कलम की सुगंध प्रतियोगिता
दिन-मंगलवार/7-1-2020
 विनती/भावुक

(37)भावुक
 भावुक  मन से कर रहे,  बेटी विदा विदेह।
   मोह फंद में जकड़कर, भये विदेह -विदेह।
 भये विदेह -विदेह,  देह से धीरज छूटा।
  चली सिया ससुराल , अश्रु का झरना फूटा।।
 कह प्रमिला कविराय , नवत हैं राम जी झुक- झुक।
 जोड़ें  दोनो हाथ,  भये मन दशरथ भावुक।।

(38)विनती

      विनती  सुन लो नाथ अब, दीन बंधु भगवान।
  डूब रहा भव सिंधु में ,  लोभी देह मकान।
 लोभी देह मकान,  मोह ,ममता को घेरे।
        अंहकार के बंध,  खोल दो प्रभु तुम मेरे।।
 कह प्रमिला  कविराय, नही पापों की गिनती।
  बार- बार करुं विनय,  प्रभु सुनो मेरी   विनती।।
 प्रमिला पाण्डेय
[07/01 7:30 PM] +91 94241 55585: शतक वीर सम्मान के लिए कुंडलियां

 विषय ....विनती

  विनती करती है सखी ,गोपी नंदन द्वार ।
 चलती माखन है लिए ,मथुरा सरिता पार ।
  मथुरा सरिता पार ,गागर फूटता सारा ।
  राधा प्यारी मान ,कान्हा वह है प्यारा ।
   गोपी राधे नाथ, बरसाने की राधिका ।
  कहती गुल करजोरि, करती विनती साधिका ।

                      भावुक

 भावो  में जो है बहे ,भावुक उसका नाम ।
 दया प्रेम रखता चले ,भाव भरे हैं राम ।
 भाव भरे हैं राम ,कलयुग में आधार ।
  राधा कहती श्याम ,जपो कन्हैया गिरधर  । 
  सदाचार पढ देख ,मिले उदाहरण अनेक ।
  बहती नदियां साथ, सागर दिखाता भावो ।

               श्रीमती धनेश्वरी सोनी गुल बिलासपुर
[07/01 7:35 PM] रजनी रामदेव: शतकवीर प्रतियोगिता हेतु
7/01/2020:: मंगलवार

विनती
विनती है कर जोड़ के, सेवक हिन्द प्रधान।
अनुशासन के हाथ में , थामो जरा कमान।।
थामो जरा कमान, जल रहा सारा भारत।
असमाजिक ये तत्व, कर रहे इसको गारत।।
अरबों का नुकसान, नही अब कोई गिनती।
नही रहो खामोश,यही अब तुमसे विनती।।

भावुक
कलयुग ऐसा आ गया, भावुक होता कौन।
सत्य प्रताड़ित हो रहा, झूठ खड़ा है मौन।।
झूठ खड़ा है मौन, दायरे  उसके अपने।
दिखा रहा वो ठाठ, दिखा मनभावन सपने।।
कहती रजनी आज, चाह में सबकी सतयुग।
भावुक बनता मूर्ख, आ गया ऐसा कलयुग।।
                     रजनी रामदेव
                       न्यू दिल्ली
[07/01 7:43 PM] प्रतिभा प्रसाद: *कुंडलियाँ*
विषय  ----   *विनती , भावुक*
दिनांक  --- 7.1.2020....

(39)              *विनती*

प्रभुवर से विनती यही ,  मिले सदा ही ज्ञान ।
जगत का कल्याण करें ,  सदा संग हो ध्यान ।
सदा संग हो ध्यान , कर्म करना है भारी ।
अपना धर्म न भूल , रहे विनती यूँ जारी ।
कह कुमकुम करजोरि , भूल मत जाना गिनती ।
प्रभुवर का हो ध्यान , सदा करना ‌है विनती ।।


(40)                  *भावुक*

भावुक मन की वेदना , मनवा होत अधीर ।
तन मन सब तपने लगा , तोड़ दिया जंजीर ।
तोड़ दिया जंजीर , लगा मन पंक्षी उड़ने ।
पग चूमे तकदीर , संग सब रिश्ता  जुड़ने ।
सोची दिल में बात ,  चले मत कैसी चाबुक ।
सदा करो कल्याण , नहीं रखना मन भावुक ।।


🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
        दिनांक  7.1.2020....

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[07/01 7:50 PM] शिवकुमारी शिवहरे: कुनबा

कुनबा मेरा है बड़ा, मिलकर रहते साथ।
चाचा ताऊ है सभी,सिर पर रहता हाथ।
सिर मे रहता हाथ,करें दुख सुख की बातें।
बीते है दिन जात,  बीतती जाती  रातें।
रहे हमारे साथ ,  हमारा प्यारा धनुबा।
मिलकर रहते साथ, हमारा बड़ा है कुनबा।

     शिवकुमारी शिवहरे
[07/01 7:51 PM] शिवकुमारी शिवहरे: बाबुल

बाबुल की वह लाड़ली ,आज चली ससुराल।
 बेटी नाजों से पली,धीमी होती चाल।
धीमी होती चाल,सदा वो लौटी आती
होता दुखित अपार ,पिया का धर वो जाती।
कहे शिवा ये आन ,बेटियाँ होती व्याकुल।
बाबुल की है मान, सदा को छोड़ी  बाबुल।

      शिवकुमारी शिवहरे
[07/01 7:52 PM] चमेली कुर्रे सुवासिता: कुनबा

कुनबा मेरा है बड़ा, मिलकर रहते साथ।
चाचा ताऊ है सभी,सिर पर रहता हाथ।
सिर मे रहता हाथ,करें दुख सुख की बातें।
बीते है दिन जात,  बीतती जाती  रातें।
रहे हमारे साथ ,  हमारा प्यारा धनुबा।
मिलकर रहते साथ, हमारा बड़ा है कुनबा।

बाबुल

बाबुल की वह लाड़ली ,आज चली ससुराल।
 बेटी नाजों से पली,धीमी होती चाल।
धीमी होती चाल,सदा वो लौटी आती
होता दुखित अपार ,पिया का धर वो जाती।
कहे शिवा ये आन ,बेटियाँ होती व्याकुल।
बाबुल की है मान, सदा को छोड़ी  बाबुल।

      शिवकुमारी शिवहरे

     शिवकुमारी शिवहरे
[07/01 7:53 PM] शिवकुमारी शिवहरे: पनघट
गौरी गागर ले चली, पनघट पर ले जाय।
चार सहेली आ मिली,खड़ी वहीं बतियाय।
खडी़ वहीं बतियाय,घर को हो गई देरी।
सब देख रहे है राह, रात हुई है अँधेरी।
बता रही वो आन,मिली गाँव की छौरी।
मिलके हो रही बात, ये समझा रही गौरी।

  शिवकुमारी शिवहरे
[07/01 7:53 PM] शिवकुमारी शिवहरे: सुधार किया

उपवन

उपवन फूलों से भरा,छाने लगी बहार।
बेला ,चंपा मोंगरा, फूलों की बौछार।
फूलों की बौछार, भरी फूलो से डाली।
देते है उपहार, तोड़ फूलों  को मालीे।
सखी करे श्रृंगार  ,लगा फूलों का  मधुवन।
लगते सुंदर फूल , भरो फूलों से उपवन।

    शिवकुमारी शिवहरे
[07/01 7:57 PM] अनुपमा अग्रवाल: कलम की सुगंध छंदशाला 

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 07.01.2020

कुण्डलियाँ (35) 
विषय-छाया
कैसा कलियुग छा रहा,छाया पापी चोर।
साथ धर्म का छोड़ते,खाली करते शोर।
खाली करते शोर,दिखावा करती दुनिया।
पाखंडी का राज, सुरक्षित हो कब मुनिया।
सुन लो अनु मन पीर,धरा पर कलियुग ऐसा।
मन पर छाया भार,दिखाये पल अब कैसा।।


कुण्डलियाँ (36)
विषय-निर्मल
काया कंचन केसरी,मन में छाया पाप।
पापी मन को पूजता,निर्मल मन को ताप।
निर्मल मन को ताप,यही कहते हैं सारे।
फिर भी ऐसा हाल,फिरे हैं मारे मारे।
कहती अनु मन बात,बड़ी पापी की माया।
धर्म कर्म सब भूल,सभी संवारें काया।।


  

रचनाकार का नाम-

अनुपमा अग्रवाल
[07/01 7:59 PM] पाखी जैन: 07/01/2020


कलम की सुगंध --छंदशाला 
शतकवीर हेतु कुंडलियाँ
35--
*छाया*

छाया अंधेरा यहाँ, मौन दर्द क्यों आज ।
खुशियाँ सारी देश की, चुरा ले गया राज।
चुरा ले गया राज, न अब बजती शहनाई।
कैसा  भ्रष्टाचार,नियति भी अब हरजाई।
"पाखी" बिगड़ा देश,नाचती छल,बल,माया।
वही सिकंदर होय,पड़े जिस पर यह छाया।

36-
*निर्मल*
निर्मल तन मन राखिये, पावन बने शरीर।
पाप-शाप सब नष्ट हों, तभी मिटेगी पीर
तभी मिटेगी पीर ,शुद्ध अंतर्मन  करता
देता मन को धीर ,शोक मन के सब भरता
पाखी  है बेदाग, हृदय अब तो अमल- विमल
मन से खेले फाग, रहे तनमन जब निर्मल।

37--
*विनती*

विनती--कुंडलिया

पाखी विनती कर रही ,मुझे न मानो खास
धूल धरा की मैं बनी, आप कुसुम आकाश 
आप कुसुम आकाश, शीष पर धूल न चढ़ती।
रखी मुहब्बत आस, बिना फल हो वो मिटती
माना मधुर  स्वभाव, वारुणी कभीन चाखी 
नष्ट  हुए  सब ख्वाब, नींद को तरसे पाखी। 
*दो हैं विनती पर कृपया बतायें कौनसा सही है।*

*विनती*

विनती--कुंडलिया

पाखी विनती कर रही   ,मानो मुझे न खास
पाखी जग की धूल है, तुम प्रसून आकाश ।
तुम प्रसून आकाश ,चरण रज शीष न चढ़ती।
सूखी रेत निचोड़ , मीन वो जल बिन मरती।
मेरा मधुर  स्वभाव,न मदिरा उर में राखी ।
सपन बने अंगार, रात दिन तड़पे पाखी।
*मनोरमा जैन "पाखी"*
[07/01 8:00 PM] महेंद्र कुमार बघेल: कुंडलिया शतकवीर:-
 06/01/2020

35. छाया

छाया शीतल पेड़ की ,सबको दे आराम ।
हो चाहे अतिशय तपन, आग उगलते घाम।
आग उगलते घाम ,धरा की ताप बढ़ाते ।
घर तरुवर प्रतिबिंब,जीव को छाॅव दिलाते ।
ताप शीत का खेल, सभी ईश्वर की माया ।
सबको दे आराम ,पेड़ की शीतल छाया।।


36.निर्मल 

निर्मल जल की धार सी, नीर क्षीर हो ज्ञान ।
नियमित सतत प्रवाह रख, तज सारे अभिमान।
तज सारे अभिमान,चित्त हो
सबका सुंदर।
समदर्शी समभाव,सदाशय मन के अन्दर।
पारगम्य रख सोच,हृदय हो सबका निश्छल।
खुले बंद सब द्वार, सभी का मन हो निर्मल।।

कुण्डलियाॅ:- 07/01/2020

37. विनती

विनती है प्रभु आपसे, रोज अनेकों बार।
सबके जीवन में सदा,आये खुशी हजार।
आये खुशी हजार,दूर हो सब बेगारी।
निर्धारित हो लक्ष्य,नहीं अब मारामारी ।
पगडंडी में कौन,तनिक करलो ये गिनती।
करो वेदना दूर,सुनो दुखियों की विनती।।

38 भावुक

भावुक होकर आप भी, कर लो तनिक विचार।
बन जाये बिगड़े सभी,हो ऐसा  उपकार।
हो ऐसा उपकार,दीन को अपना मानो।
दूर करो सब भेद,यहाॅ सबको पहचानो।
सोच समझ लो तथ्य,कथ्य है अतिशय नाजुक।
मन में रख संवेग,आप भी होकर भावुक।।

महेंद्र कुमार बघेल
[07/01 8:03 PM] भावना शिवहरे: माँ के उपवन में खिले, ममता के ही  फूल!
काँटे संग गुलाब के, वहाँ नही है शूल!!
 वहाँ नहीं है शूल,प्रीत का सागर उमड़े
 कभी नीति नहि होय,माँ से हि संसार जुड़े 
 दमके वही आँगन, उजाला करती द्वारे!
मिट जाते संताप,  चरण पढ़ माँ  तुम्हारे!!

भावना शिवहरे
[07/01 8:04 PM] विद्या भूषण मिश्र 'भूषण': *कुंडलिया शतक वीर प्रतियोगिता। दिनांक--07/01/2020, दिन मंगलवार*

~~~~~~~~~
*37--विनती*
~~~~~~~~~
मेरी विनती है यही, हे प्रभु  कृपा-निधान।
दिन दूनी बढ़ती रहे, भारत माँ की शान।
भारत माँ की शान, विश्व भी लोहा माने।
झुके न इसका शीश, कभी जाने अनजाने।
बने विश्व गुरु देश, कृपा हो इस पर तेरी।
यह मेरा भगवान, यही है माता मेरी।।
~~~~~~~~

~~~~~~~~~~~~~~
*.38--भावुक*
~~~~~~~
आयी विपदा देश पर, भावुक है मन आज।
गद्दारी से झुक गया,भारत माँ का ताज।
भारत माँ का ताज, झुकायेंगे ये सारे।
दुश्मन जैसे नित्य, लगाते हैं ये नारे।
देशभक्त हों एक, शत्रु की करें दवाई।
फैले सुखद प्रकाश, टले जो विपदा आयी।।
~~~~~~
*-- विद्या भूषण मिश्र "भूषण"--*
~~~~~~~~~~~~~

*सादर समीक्षार्थ🙏🙏*
[07/01 8:05 PM] चमेली कुर्रे सुवासिता: कलम की सुगंध छंदशाला 
*कुण्डलिया शतकवीर*

दिनांक- 07/01/2020
कुण्डलिया- ( *विनती*

विनती ये प्रभु वर सुनो, मागे हम वरदान। 
रसना रस से हो भरी, बोले गीता ज्ञान।।
बोले गीता ज्ञान , मार्ग भटको को देती।
भ्रमित हुऐ जब पार्थ , सकल चिन्ता हर लेती।।
सुवासिता हिय मध्य , बसी आकृति क्यों छिन्ती। 
यही रही है सोच , सुनो गे कब तुम विनती।।
कुण्डलिया -( *38*)
विषय - *भावुक*

होते है भावुक सभी , बहे आँख से नीर। 
चिंता करते हर पहर , कहे किसे ये पीर ।।
कहे किसे ये पीर , सोचते मन ही मन में ।
जीव सभी निर्जीव , पीर सहते है तन में।।
सुवासिता दे ध्यान , जगत में क्यों सब रोते। 
हर्ष सहित ये काज , सरलता से सब होते ।।

     🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर (छत्तीसगढ़)
[07/01 8:06 PM] अनंत पुरोहित: कलम की सुगंध छंदशाला
कार्यक्रम शतकवीर कुण्डलियाँ हेतु
अनंत पुरोहित 'अनंत'

दिन मंगलवार 31.12.2019

33) विनती

वनिता विनती वारदे, वांछावटी स्वरूप 
कंचन काया काट के, कर काली का रूप
कर काली का रूप, काट खलकर्मी कामी
दिग्विजया दावाग्नि, दहो दुर्जन दुष्कामी
कह अनंत कविराय, पापहारिणी पुनीता
दुष्टों का कर दाह, संत की तारक वनिता

34) भावुक

कविवर भावुक भावना, लिया शब्द आकार
शब्दाश्वों पर बैठ के, घूम लिया संसार
घूम लिया संसार, न कोई कोना छूटा
राम नाम को थाम, भक्तिरस प्रभु की लूटा
कह अनंत कविराय, जहाँ दुर्गम है रविवर
पहुँच वहाँ चौंकाय, यही होता है कविवर 

35) छाया

छाया सर पर हो सदा, बड़े बड़ों का हाथ 
राही को जैसे मिले, वट बरगद का साथ
वट बरगद का साथ, सदा रक्षा है देता
गर्मी वर्षा मनुज, यहाँ आश्रय है लेता
कह अनंत कविराय, ज्ञान इनसे है पाया
मिलता अनुभव लाभ, रहे घर इनकी छाया

36) निर्मल

निर्मल अविरल ज्ञान की, महिमा अपरंपार 
गुरु मुख से मिलता सदा, बहती है रस धार
बहती है रस धार, शिष्य अनुभव है पाता
पाकर अनुभव ज्ञान, जगत से पार लगाता
कह अनंत कविराय, मीन जैसा हो बिन जल
होता वैसा हाल, शिष्य बिन गुरु के निर्मल 

*रचनाकारः* 
अनंत पुरोहित 'अनंत'
[07/01 8:16 PM] कन्हैया लाल श्रीवास: कलम की सुगंध......कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

        *विषय...............छाया*
          विधा............... कुण्डलियाँ
★★★★★★★★★★★★★★★★
छाया  मिलता  नीम की,शीतलता दे छाँव।
फल निबौर तरु पर लगे,सजे मोतियन गाँव।
सजे मोतियन गाँव,सायं चौपाल सजती।
हरिमुख मुखिया ज्ञान,न्याय का पाली लगती।
सेवन कर ले पत्र ,रोग दूर करें भाया।
देता वृक्ष उपहार, मिलता नीम की छाया।
★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
[07/01 8:19 PM] डॉ अर्चना दुबे: *कुंडलिया शतकवीर प्रतियोगिता*
*दिनांक - 07/01/2020*

*विनती*

विनती करती आप से, सुनलो कृपा निधान ।
मेरी भव बाधा हरो, हम बच्चे नादान ।
हम बच्चे नादान, करो मत अब प्रभु देरी ।
मिलती खुशी अपार, नाम की माला फेरी ।
'रीत' भजे रघुनाथ, भक्त में मेरी गिनती ।
देखों हूँ लाचार, देर भइ सुनलो विनती ।

*भावुक*

भावुक अब होना नहीं, सदा रखूंगी ध्यान ।
छोटी छोटी बात से, सबको लो पहचान ।
सबको लो पहचान, छला जग में वह जाता ।
रखना हरदम याद, दर्द है याद दिलाता ।
'रीत' हुई बेचैन, बहुत लगते हो नाजुक ।
देख नयन से नीर, हृदय होता है भावुक ।

*डॉ. अर्चना दुबे 'रीत'*✍
[07/01 8:38 PM] नीतू ठाकुर 'नीत': कलम की सुगंध छंदशाला 

कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु

दिनांक - 07.01.2020

विषय-छाया
छाया माता स्नेह की,देती हर्ष अपार।
माता पथ दर्शक बने, मिटते सभी विकार।।
मिटते सभी विकार,गुणों का पोषण करते।
देते मन को धीर, हृदय में साहस भरते।।
माता का आशीष , बने टपके जब माया।
बनते नाजुक बीज, वृक्ष देते जो छाया।।

विषय-निर्मल
काया निर्मल देख कर,भ्रम मत पालो मीत।
सोना पीतल एक सा, परखे पाए जीत।।
परखे पाए जीत, आधुनिक युग है पापी।
मन में भरता द्वेष,किसी विधि जाय न नापी।।
जीवन का यह सार,समझ कब मन को आया।
होते भ्रमित हजार, देख कर सुंदर काया।।


रचनाकार का नाम- नीतू ठाकुर 'नीत'
[07/01 8:40 PM] शिवकुमारी शिवहरे: बाबुल

बाबुल की वह लाड़ली ,आज चली ससुराल।
 बेटी नाजों से पली,धीमी होती चाल।
धीमी होती चाल,सदा वो लौटी आती
होता दुखित अपार ,पिया का घर वो जाती।
कहे शिवा ये आन ,बेटियाँ होती व्याकुल।
बाबुल की है मान, सदा को छोड़ी  बाबुल।

      शिवकुमारी शिवहरे
[07/01 8:44 PM] अमित साहू: कलम की सुगंध~कुण्डिलयाँ शतकवीर

35-छाया (06/01/2020)
छाया बनती है सहज, पहुँचे नहीं प्रकाश।
वस्तु रोकता रोशनी, फिर तो छाँह सकाश।
फिर तो छाँह सकाश, बनें सबकी परछाई।
सबकुछ हो अस्पष्ट, कालिमा दे दिखलाई।।
चले अमित दिन रात, यहाँ सहगामी साया।
अन्धकार अनुहार, कहे जन उसको छाया।।


36-निर्मल 
कलिमल कल कलिकाल की, करता है कलिकान।
कर्म करे जब कलियुगी, नहिँ फिर वह इंसान।।
नहिँ फिर वह इंसान, हृदय में पाप समाया।
भले गौर हो वर्ण, यदपि कालिख सी काया।।
कहे अमित कविराज, रखें मन को निर्मल।
कर्म करें बस उच्च, कलंकित करे न कलिमल।।


37-विनती (07/01/2020)
विनती है प्रभु आपसे, दें ऐसा वरदान।
विनयी होकर सर्वदा, रखूँ हृदय व्यवदान।।
रखूँ हृदय व्यवदान, बनूँ मैं विमद विधानी।
विनत विमल व्यवहार, विशारद अरु विज्ञानी।।
विद्या वैभववान, नाम से होवे गिनती।
विज्ञ अमित विज्ञात, यही है प्रभु जी विनती।


38-भावुक
भावन होती भावना, भावुकता के भाव।
भावुक होते जन वही, हिय जिनके विद्राव।।
हिय जिनके विद्राव, जन्य वो अति विद्रावक।
प्रेम भाव गंभीर, भावदर्शी मनभावक।।
कहे अमित कविराज, भावबंधन यह पावन।
भावसृष्टि भावाट, भावगति भासित भावन।

कन्हैया साहू 'अमित'
[07/01 8:44 PM] कुसुम कोठारी: कमल की सुगंध छंदशाला
कुण्डलियाँ शतकवीर हेतु
७/१/२०
कुसुम कोठारी।

कुण्डलियाँ (३७ )

विषय-विनती

विनती है माँ पाद में , झांकी देख निहाल ,
तेरी छवि को देखके  ,झुकता है मुझ भाल ।
झुकता है मुझ भाल ,  बुद्धि से भर दे झोली ,
गाऊं मैं गुणगान ,बोल के मीठी बोली ,
कहे कुसुम कर जोड़,  बैन अंतर से सुनती 
वीणा शोभित हाथ  ,  शुभ्र वसना सुन विनती ।।

कुण्डलियाँ (३८  )

विषय-भावुक 

कैसी बेड़ी में फँसा ,भावुक मन अनजान ,
अविनाशी ये जीव है , मानो अरे सुजान ,
मानो अरे सुजान , परख लो करनी अपनी ,
छोड़  सकल ही राग , ब्रह्म की माला जपनी ,
सदा भावना शुद्ध , रहे पावन  बस ऐसी 
मुक्त रहें हर प्राण , पाँव में बेड़ी कैसी ।।

कुसुम कोठारी।
[07/01 8:55 PM] केवरा यदु मीरा: शतक वीर कुंडलिया छंद 
7-1-2020
(37)
विषय - भावुक 

भावुक होते आज पितु, माता हुयी उदास ।
पिता समान ससुर मिला, मइया जैसी सास।।
मइया जैसी सास, सदा तुम सेवा करना।
दोनों कुल की आन,सीख यह दिल पे धरना ।।
घर को स्वर्ग बनाय, लाड़ली नाता नाजुक ।
हुयी बिदाई आज, मात पित दोनों भावुक ।।

(38)
विषय - विनती

विनती तुमसे मात हे, देना यह वरदान ।
बिटिया अब तड़पे नहीं, आज बचाओ आन।।
आज बचाओ आन, कालिका  धरके खप्पर ।
हाथ लिये तलवार, काट दो माता छिन भर।।
करते अत्याचार, लगादो अब तुम गिनती ।
मीरा करत पुकार, अंबिके सुनलो विनती ।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम
[07/01 9:26 PM] डा कमल वर्मा: आदरणीय शिवकुमार जी,
 पनघट_
 26
पनघट का आपका सुंदर चित्र चित्रित किया। 
उपवन में तो फूलों की बहार ले आईआप
 अच्छी रचनाएंँ। 
 घर को हो गई देर१२मात्रा।
 'यह' समझा रही गोरी
दो मात्राएं हुई तीन चाहिए
 बाकी सुंदर रचना।
[07/01 9:26 PM] डा कमल वर्मा: डॉ श्रीमती कमल वर्मा द्वारा समिक्षा
 आदरणीय अनुपमा अग्रवाल 
जी कलयुग का बहुत सुंदर चित्रण।
 तीसरे चौथे सम चरण मे त्रिकल चाहिये।2/2तृटी2
 आदरणीय मनोरमा जी अच्छी 
रचनाएंँ।
 विनती पर आपकी दोनो रचना अच्छी है। 
नाचती पचास है। त्रिकल चाहिए। 
वैसे ही विनती में वारुणी। त्रिकल चाहिए। 
2/2तृटी 2
 चढ़ती तथा मिटती  अच्छा दुकान तो नहीं है।
[07/01 9:27 PM] डा कमल वर्मा: समिक्षक
डॉ श्रीमती कमल वर्मा
आ. विद्या भूषण जी, देशभक्ति से भरी आपकी रचनाएँ सुंदर। 
सम चरणों में त्रिकल की तृटी है। 2/2तृटी1.
आदरणीय चमेली जी को रे
 आपकी दोनों रचनाएंँ बहुत सुंदर है।
माँगे,√
मागे×
भावुक मे सम चरणों को त्रिकल से शुरु करे।
२/२ बाकी रचना खूब सूरत।
[07/01 9:28 PM] डा कमल वर्मा: समिक्षक डॉ श्रीमती कमल वर्मा
आ. अनंत जी सुंदर रचनाएँ। 2/2तृटी0
दूसरी रचनाएँ तृटी 0.उत्तम अनुप्रास अलंकार । 
आ. कन्हैया लाल जी सुंदर रचना नीम का वृक्ष। 
सायं4मात्रा, 
तीन त्रिकल एक साथ। 
देता वृक्ष उपहार 12.
तुकांत देखिये। तृटी 2

आ. अर्चना जी सुंदर रचना 2/2
तृटी 0
[07/01 9:38 PM] गीतांजलि जी: *कुण्डलिया शतकवीर - संशोधित* 

२७) विनती 

विनती कर जोड़े करूँ, हे हरि मंगल मूल। 
मानस मम से झड़ गिरे, जन्म जन्म की धूल। 
जन्म जन्म की धूल, धुले *पा वन* शुचि *पावन*।
नगर ग्राम से दूर, बसूँ पा मन रुचि भावन।
न ऐश्वर्य का पूर, नहीं धन जन की गिनती। 
ऐसा जीवन, देव, वरूँ मैं करके विनती।

(२८) भावुक 

शबरी भोली भीलनी, मुनि मतंग सुन बात। 
भावुक भावों भर भजे, भव भय भंजन भ्रात।
भव भय भंजन भ्रात, राम लक्ष्मण धनुधारी। 
श्यामल गौर शरीर, दुखी जन के अघहारी। 
चुनचुन लाती बेर, पके फल पीले गठरी। 
भोग लगाते राम, चखा जिन पहले शबरी। 

गीतांजलि ‘अनकही’

3 comments:

  1. उम्दा संकलन बन रहा है कुंडलिया छंद का 👌👌💐बधाई कलम की सुगंध परिवार को ।

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  2. बहुत सुन्दर संकलन सर

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  3. अति उत्तम संकलन
    आदरणीय विज्ञात जी को ढेरों शुभकामनाएं और बधाई

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